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रविवार, 6 नवंबर 2022

बाबूलाल दाहिया

 बघेली कविता के जेष्ठ और श्रेष्ठ कवि
         (39 वी क़िस्त)
       श्री हेमराज 'हंस '
     आज यदि पुरानी कविताओ से नई कविताओ का तुलनात्मक अध्ययन किया जाय तो ऐसा लगता है कि नए युवा कवियों के कहन में और तीखा यथार्थ व कविताओ में ज्यादा पैना पन है।
  मनुष्य के क्रमिक विकास को यदि देखे तो उसने जो भी  अनुभव और अनुसंधान किया उसे नई पीढ़ी को बताया। नई पीढ़ी ने उसकी समीक्षा की। परिस्थिति जन्य कारणों से जो छोड़ने लायक था उसे छोड़ा और शेष में अपना अनुभव तथा अनुसंधान जोड़ती चली गई।
          ठीक उसी प्रकार हमारे युवा कवियों ने पुराने कवियों की कविताए तो पढा ही उनने चार कदम आगे बढ़ते हुए यह भी सोचा कि अब हमें वर्तमान परिस्थितियों को देखते और क्या क्या लिखना चाहिए  जो आज के समाज के माप डंडों में खरा उतरे ?
      ऐसे ही सम्भावनाओ से युक्त आज हम जिस कवि से आप की भेट करा रहे है  वे है श्री हेमराज त्रिपाठी 'हंस' श्री हंस सतना जिले के मैहर ब्लाक के भेड़ा गाँव के निवसी है।
     उनने मुक्तक ग़जल दोहे घनाक्षरी आदि अनेक बिधाओ में अपनी बघेली कविताए लिखी है।
आइये सब से पहले उनके कुछ मुक्तक देखिये।


फलाने कै भंइसी निकहा पल्हाथी,
लगाथै आँगनबाड़ी कै दरिया वा खाथी।
गभुआर बहुरिगें धांधर खलाये ,
सरकारी जोजना ठाढ़े बिदुराथी।।


नल तरंग बजाऊ थें बजबइया झांझ के,
देस भकती चढा थी फलाने का सांझ के।
उनही ईमानदार कै उपाधि दीन गै,
जे आंधर बरदा बेंच दइन काजर आंज के।।


सनीचर का पता अढइया से पुंछत्या हय,
सांन्ती का पाठ लड़इया से पुंछत्या हय।
भोपाल से चला औ चउपाल मां हेराय गा,
बिकास का पता मड़इया से पुंछत्या हय।।


या बिपत के धरी मां तुमहूं भजामैं आय गया।
तरबार फरगत के जघा पायल मजामै आय गया।
अबहिन एक किसान कै लहास उची ही दुवरा से,
तुम खेती क लाभ का धंधा बतामैं आय गया।।


समाज मा दहेज कै जबर दुकान होथी।
नींद नही आबै जब बिटिया सयान होथी।।
उंइ देस से कहिन तै कि भागबत सुनबाउब
हेन किसानन के घर मा गरुड़ पुरान होथी।


       अगली कड़ी में आप श्री हेमराज हंस जी का एक घनाक्षरी छन्द देखे।


उंइ कहा थें देस से गरीबी हम भगाय देब,
गरीबी य देस कै लोगाई आय नेता जी।
गरीबी भगाय के, का खुदै तुम पेटागन मरिहा,
तोहई पालैं निता, बाप माई आय नेता जी।।
गरीबी के पेंड़ का मंहगाई से तु सींचे रहा ,
तोंहरे निता कल्प बिरिक्ष नाई आय नेता जी ।
भांसन के कबीर से अस्वासन के अबीर से ,
तोहरे बोलिआंय का भउजाई आय नेता जी।।


    अब  लगे हाथ श्री हंस जी के दोहो के भी तीखे तेवर देखे ?
राखी टठिया मा धरे बहिनी तके दुआर।
रक्षाबंधन के दिना उंइ पहुंचे ससुरार।।


बड़ी जबर साहुत हिबै जातिबाद के हेत।
तउ बिटिया के बाप का बिकगा सगला खेत।।


 जेही सब मानत रहें जादा निकहा सूध।
ओखे डब्बा मा मिला सबसे पंच्छर दूध।।


जबसे कुरसी मा चढा आपन मूसर चंद।
अपने का मानैं लगा बड़ा बिबेकानंद ।।


भृष्टाचार का होइ रहा देस मा यतर निदान।
जइसा जींस क पहिर के काटै फसल किसान।।


 उनकी एक ग़जल का जायका लेना भी उपयुक्त रहेगा?


बारजा बचा हय ओरिया कहां ही,
चंदा मामा दूध कै खोरिया कहां ही।
रासन कारड हलाबत तिजिया चली गै,
कोटा बाली चिनी कै बोरिया कहां ही।।
नोकरी लगबामै का कहि के लइ गया तै,
वा गरीब कै बड़मंसी टोरिया कहां ही ।
आजादी के अस्वमेघ कै भभूत परी ही ,
लिंकन के लोकतंत्र कै अंजोरिया कहां ही।।
वा परदूसन कै पनही पहिरे मुड़हर चलागा,
गांव के अदब कै ओसरिया कहां ही ।
 घर के सुख संच कै जे जपत रहें माला ,
वा पिता जी कै लाल लाल झोरिया कहां ही।।
    इस तरह श्री हेमराज त्रिपाठी ,हंस ,ने बघेली की अनेक बिधाओ में अपने हास्य ब्यङ्ग और तीखे तेवर की कविताए लिखी है।    

 ✍️  बाबूलाल  दाहिया

 धन्न  बिंध्य  कै  भूमि  या  धन्न श्री बाबूलाल।
गदगद माटी होइ रही गाँव गली चउपाल।।
 
बघेली केर बिश्वबिद्यालय रिमही केअक्कास ।
बोली   माता  सारदा   बाह   बेटा    सब्बास। ।  

धन्न  पिथौराबाद  का  बनगा  एक  मिसाल।
बसकट कै सुभकामना लेब श्री बाबूलाल।।

दार महँगी है खा ल्या बलम सुसका। दार महँगी ।

        *लोकगीत  * दार महँगी  है  खा ल्या बलम सुसका। दार महँगी  ।    भाव     सुनत  मा    लागय   ठुसका।। दार महँगी  ।।     किधनव  बनाउब  पान...