पहिले जब खड़े होकर लघु शंका करना निषिद्ध माना जाता था। तब की बात है।एक बालक खड़े होकर लघुशंका कर रहा था। गांव के एक बुजुर्ग ने देखा तो उसे समझाया बेटा एेसा नही करना चाहिये।वह बालक अनसुना करके चलते बना।दूसरे दिन पुन: उसी स्थिति में देख कर बुजुर्ग ने सोचा कि इस बालक के पिता जी से ओरहन दिया जाय।शायद अपने बाप की बात मान ले। वे उस बालक के पिता जी से ओरहन देने जा रहे थे तो वे देखते हैं कि उस लड़के का बाप घूम घूम कर लघुशंका कर रहा था।वे अपना हांथ सिर पर रख कर वापस आ गये। हे!!शारदा माई रक्षा करें
बघेली साहित्य -का संग्रह हास्य व्यंग कविता गीत ग़ज़ल दोहा मुक्तक छंद कुंडलिया
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