औ उनखे घर मा जनाउर पइदा होंय ।।
एक बूंद पानी न बरखै खेत मा
औ सीधे धान नही चाउर पइदा होंय।।
बघेली साहित्य -का संग्रह हास्य व्यंग कविता गीत ग़ज़ल दोहा मुक्तक छंद कुंडलिया
*लोकगीत * दार महँगी है खा ल्या बलम सुसका। दार महँगी । भाव सुनत मा लागय ठुसका।। दार महँगी ।। किधनव बनाउब पान...