मौन के पीड़ा की अनुभूति देखिये।
सदाचार का भ्रष्टो से सहानुभूति देखिये। ।
विश्वास आहत हो रहा है लोक तंत्र का
पदों औ क़दों की प्रतिभूति देखिये। ।
हेमराज हंस
बघेली साहित्य -का संग्रह हास्य व्यंग कविता गीत ग़ज़ल दोहा मुक्तक छंद कुंडलिया
*लोकगीत * दार महँगी है खा ल्या बलम सुसका। दार महँगी । भाव सुनत मा लागय ठुसका।। दार महँगी ।। किधनव बनाउब पान...