मुक्तक
उई अच्छे दिन का घटिआ बताउथें।
बुलन्द दरबाजा का टटिआ बताउथें। ।
जे बात करत रहें हैलोजन के अजोर कै ,
पता चला तार मा कटिआ फसाउथें। ।
हेमराज हंस
बघेली साहित्य -का संग्रह हास्य व्यंग कविता गीत ग़ज़ल दोहा मुक्तक छंद कुंडलिया
*लोकगीत * दार महँगी है खा ल्या बलम सुसका। दार महँगी । भाव सुनत मा लागय ठुसका।। दार महँगी ।। किधनव बनाउब पान...