बघेली मुक्तक
----------------------------http.//baghelisahitya.com
हम जानिथे अपना कै मजबूरी ही।
धंधा करय का है ता राजनीत जरुरी ही। ।
सत्तर साल होइगे देस का आज़ाद भये
गाँव तरसै पानी का अपना के मुँह मा अंगूरी ही। ।
बघेली साहित्य -का संग्रह हास्य व्यंग कविता गीत ग़ज़ल दोहा मुक्तक छंद कुंडलिया
जे मंदिर कै हमरे खंडित मरजाद कइ रहे हें। पबरित परसाद भंडासराध कइ रहे हें।। उनहीं पकड़ के सीधे सूली मा टांग द्या हमरे धर...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें