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मंगलवार, 30 अप्रैल 2024

हम मजूर बनिहार बरेदी आह्यन लेबर लगुआ।

हम मजूर बनिहार बरेदी आह्यन लेबर लगुआ।
करी मशक्क़त तनमन से हम गरमी जाड़े कदुआ। ।

माघ पूस कै ठाही हो चह नव तपा कै दुपहरिया।
सामान भादौ के कादौ मा बे पनही बे छतरिया। ।
मिलब कहू हम पाथर फोरत करत कहूं  हरवाही।
खटत खेत खरिहान खान म कबहूं  ताके पाही। ।
हम कहू का काम निकारी औ काहू के बंधुआ।
हम मजूर------------------------------------
''कर्म प्रधान विश्व करी राखा ''कहि गें तुलसी दास।
कर्म देव के  हम  विश्कर्मा  देस  मा पाई त्रास। ।
शोषक चुसि रहे हे हमही अमर बेल की नाइ।
अउर चुहुकि के करै फराके गन्ना चीहुल घाई। ।
दुधिआ दातन मा बुढ़ाय गा हमरे गाँव का गगुआ।
हम मजूर ------------
हम पसीना से देस का सीच्यन हमरै किस्मत सूखी।
देस कोष मा  भरयन  लक्ष्मी घर कै "लक्ष्मी" भूखी। ।
घूंट घूँट अपमान पिअत हम गढ़ी प्रगति कै सीढ़ी।
मन तक गहन है बेउहर के हेन रिन मा चढ़ गयीं पीढ़ी। । 
फूंका  परा है हमरे घर मा तउ हम गाई फगुआ। ।
हम मजूर ------------
हमिन बनायन लालकिला खजुराहो ताज महल।
हमिन बनायन दमदम पालम सुघर जिहाज महल। ।
हमहिंन बाँध्यन नदिया नरबा तलबा अउर तलइया।
हमिन बनायन धमनी चिमनी लखनऊ भूल भुलइया। ।
हम सिसकत सीत ओसरिया माहीं धइ के सोई तरुआ।
हम मजूर------------------------------------
बिन खाये के गंडाही का है छप्पन जेउनार।
कनबहिरे भोपाल औ दिल्ली को अब सुनै गोहर। ।
जब जब माग्यन उचित मजूरी तब तब निथरा खून।
पूंजी  पति के  पॉय तरी  है देस का श्रम कानून। ।
 काल्ह मारे गें सुकुल, तिबारी, दत्ता, नियोगी, रघुआ।
हम मजूर ---------------------------------
 भले ठेस ठेठा कराह से हाँकी आपन अटाला।
पै हम करब न घात देस मा भ्रष्टाचार घोटाला। ।
जे खून पसीना अउंट के माड़ै रोटी केर पिसान।
हमी उराव है अइसन माई बाप कै हम संतान। ।

हमरे कुल मा पइदा नहि होंय डाकू गुंडा ठगुआ।
हम मजूर बनिहार बरेदी आह्यन लेबर लगुआ। । 
           हेमराज हंस भेड़ा  मैहर 

शनिवार, 27 अप्रैल 2024

छंद के लिखइया नारा लिखय लगें

छंद   के लिखइया   नारा  लिखय लगें । 
समुद्र का उदुआन इंदारा लिखय लगें ।।

अँगना  मा रोप जेखर  करी थे आरती
घर के बैद तुलसी का चारा लिखय लगें ।।

भें जबसे प्रगतिशील औ सभ्भ नागरिक
ता अपने परंपरा का  टारा  लिखय लगें।।

नफरत का बिजहा जेखे बिचार मा भरा 
रगे सिआर  भाई  चारा   लिखय  लगें।।
 
उइ  जानकार  पांड़े  जहिया  से  बने हें 
तब से आठ चार का ग्यारा  लिखय लगें।।

भूंखा कलेउहा गातै हंस बिनिया बिनै का
उइ ओही टंटपाली आबारा  लिखय लगें।।
हेमराज हंस 

बुधवार, 13 मार्च 2024

BAGHELI KAVITA


                           बिटिया
ठुम्मुक ठुम्मुक जाथी  इस्कूलै  ड्रेस पहिर के बइया रे।
टाँगे  बस्ता  पोथी  पत्रा  बिटिया   बनी     पढ़इया रे। ।

खेलै   चन्दा,   लगड़ी,  गिप्पी,  गोटी,  पुत्ता  -पुत्ती  ।
छीन भर मा  मनुहाय जाय औ छिन भर माही कुट्टी। ।
बिट्टी  लल्ला   का   खिसबाबै   ''लोल  बटाइया  रे''। ।

ठउर   लगाबै   अउजै  परसै  करै चार  ठे त्वारा।
कहू  चढ़ी  बब्बा  के कइयां  कहु अम्मा के क्वारा। ।
जब  रिसाय  ता  पापा  दाकै  पकड़  झोठइया रे।

बिन बिटिया के अंगना अनमन घर बे सुर कै बंसी।
बिटिया दुइ  दुइ कुल  कै होतीं  मरजादा  बड़मंसी। ।
हमरे   टोरिअन   काही    खाये    जा   थै  दइय रे।

भले  नही  भइ  भये  मा  स्वाहर पै न माना अभारु।
लड़िका  से  ही ज्यादा  बिटिया  ममता भरी मयारू। ।
पढ़ी   लिखी  ता  बन  जई  टोरिया  खुदै  सहय्याँ रे।

कन्यन कै होइ रही ही हत्या बिगड़ि  रहा अनुपात।
यहै  पतन जो  रही 'हंस ' ता  कइसा  सजी बरात। ।
मुरही   कोख  से   टेर   लगाबै   बचा  ले मइया रे। ।
*************************************
✍️हेमराज हंस -- भेड़ा  मैहर 

शनिवार, 29 अप्रैल 2023

लगथै उनखर उतरिगा जादू।

 लगथै  उनखर उतरिगा  जादू।
हेरा  आन  गुनिया  अब   दादू।।

कब तक सूख   पेड़ का द्याहा  
पुन  पुन पानी  पुन  पुन खादू।।

बजरंगी का  कब तक छलिहै
कालनेम   बन  ज्ञानी  साधू ।।

एक न मानिस हिरना कश्यप
खुब समझा के हार कयाधू।।

हेन जन जन के कंठहार हें 
ओछी जात के आल्हा धांधू।। 


शनिवार, 8 अक्तूबर 2022

सगली दुनिया हिबै अचंभित

सगली दुनिया हिबै अचंभित ,दइके नाक रुमाल। 
सत्य अहिंसा के धरती मा , करुणा होय हलाल। । 

छाती पीट -पीट के रोबै, साबरमती कै धारा। 
अब ता बरनव के घर माही। धधक रहें अंगारा। । 
कोउ बता द्या राजघाट मा ,गांधी जी से हाल। 

जहाँ कै माटी सत्य अहिंसा केर विश्वविद्यालय। 
वहै धरा मा  बहै खून ,औ मार  काट का परलय। । 
गौतम गाँधी के भुइ माही बसे हमै  चंडाल। 

भारत माता के बिटियन के मरजादा का बीमा। 
अब ता उनखे बेसर्मी कै नहि आय कउनौ सीमा। । 
बड़मन्सी कै बोली ब्वालै बड़ बंचक बचाल। 

काल्ह द्रोण मागिन तै अउठा ,आज लइ लइन जान। 
बिद्या कै पबरित परिपाटी तक होइगै बलिदान। । 
रह्यान कबौ हम बिश्व गुरु पै आज गुरू घंटाल। 

शहरन माही आजादी के होथें मङ्गलचार। 
आजव भारत के गॉवन का दमै पबाई दार। । 
सामंती के दुनाली से कापि रही चउपाल।
 

रविवार, 15 अप्रैल 2018

कवि सम्मेलन रामपुर बघेलान

संचालन रवि जी सतना
सांड़ नरसिंहपुरी
कविता तिवारी
लक्ष्मण सिंह नेपाली
हेमराज हंस
आलम सुल्तानपुरी
सवा

रविवार, 10 अप्रैल 2016

bagheli kavitaसरासरीहन लबरी हिबै मोबाइल मा।

बघेली 
सरासरीहन लबरी हिबै मोबाइल मा। 
सुन्दर कानी कबरी हिबै मोबाइल मा। । 

क्याखर कासे प्यार की बातैं होती हैं 
दबी मुदी औ तबरी हिबै  मोबाइल मा। । 

विस्वामित्र मिसकॉल देख बिदुराय लगें 
अहा !मेनका परी हिबै  मोबाइल मा। । 

नई सदी के हमूं पांच अपराधी हन 
जाति गीध कै मरी हिबै  मोबाइल मा। । 

कोउ हल्लो कहिस कि आँखी भींज गयीं 
कहू कै खुश खबरी हिबै  मोबाइल मा। । 

अब ता दण्डकवन से बातें होती हैं 
श्री राम कहिन कि शबरी हिबै  मोबाइल मा। । 

''हँस ''बइठ हें भेंड़ा भिण्ड बताउथें 
सरासरीहन लबरी हिबै मोबाइल मा। 
हेमराज हँस 

मंगलवार, 2 फ़रवरी 2016

शौचालय बनवाबा भाई शौचालय बनवाबा। BAGHELI KAVITA

शौचालय बनवाबा 

शौचालय बनवाबा भाई  शौचालय बनवाबा। 
अपने घर के बड़मंशी का बहिरे न बगवाबा। । 
                                हमरी  बहिनी बिटिया बहुअय बपुरी जांय बगारे। 
                                यहैं तकै झुकमुक ब्यारा का वहै उचै भिनसारे। । 
                                घर के मरजादा का भाई अब न यतर सताबा। 
                                शौचालय बनवाबा भाई  शौचालय बनवाबा। । 

फिरंय लुकाये लोटिया बपुरी  मन मा डेरातीं आप। 
निगडउरे मा बीछी चाबै चाह खाय ले सांप। । 
सबसे जादा चउमासे मा  हो थें जिव के क्याबा। 
शौचालय बनवाबा भाई  शौचालय बनवाबा। । 

                              तजी  सउख मोबाइल कै औ भले न देखी  टीबी। 
                              शौचालय बनवाई  घर मा अपना हन बुधजीबी। । 
                              सरकारव कइ रही मदद औ कुछ अपने से लगाबा। 
                            
शौचालय बन बनवाबा भाई  शौचालय बनवाबा। । 

जब घर मा शौचालय होइ ता ही घर कै सज्जा। 
तब न खेत बगारे बागी अपने  घर कै लज्जा। । 
करा  कटौती अउर खर्च कै निर्मल घर बनवाबा। 
शौचालय बनवाबा भाई शौचालय बनवाबा। । 

                            शौचालय बनवाय घरे मा चला गंदगी पहटी। 
                           पाई साँस जब शुद्ध हबा हरहजा रोग न लहटी। । 
                          चला 'हंस 'सब जन कोऊ मिल के य संकल्प उछाबा। 
                          शौचालय बनवाबा घर मा शौचालय बनवाबा। । 

    @ हेमराज हंस -----9575287490

शनिवार, 5 दिसंबर 2015

हे !महा दोगला हे अकही !!अकहापन कै पूंजी तुम।

हम करी चेरउरी चुगल खोर तुम सुखी रहा य देस मा। 
 तुम बइठे नक्कस काटा औ सब जन रहैं कलेष मा। । 
हे अकरमन्न हे कामचोर सब काँपैं तोहरे दांव से। 
कड़ी मशक्कत के कर्ता तक भागै तोहरे नांव से। । 
तुमसे सब है कारबार जस धरा धरी है शेष मा। 

हे चापलूस चउगिर्दा हेन तोहरै तोहार ता धाक हिबै। 
तोहरेन चमचागीरी से हमरे नेतन कै नाक हिबै। । 
तुम कलजुग के देउता आहू अब माहिल के भेष मा। 

हे !महा दोगला हे अकही !!अकहापन कै पूंजी तुम। 
बड़ा मजा पउत्या है जब आने कै करा नमूजी तुम। । 
गद्गद होय तोहार आत्मा जब कोउ परै कलेस मा। 

तुम  'मनगवां के कुकूर कस ' चारिव कइती छुछुआत फिरा। 
मुँह देखी मा म्याऊ म्याऊ औ पीठ पीछ गुर्रात फिरा। । 
सगले हार तोहार असर है देस हो य परदेस मा। 

केत्तव होय मिठास चाह छिन भर मा माहुर घोर द्या। 
तुम भाई हितुआ नात परोसी का आपुस मा फोर द्या। । 
तोहरे भीरुहाये मा पति -पत्नी तक चढ़ गें केस   मा। 

हे मंथरा के भाई तुम जय हो हे नारद के नाती। 
नाइ दुआ करत बागा बे डाक टिकस कै तुम पाती। । 
हे राम राज के 'धोबी 'तुम घुन लाग्या अवध नरेश मा
हम करी चेराउरी चुगल खोर तुम सुखी रहा य देस मा। । 
 हेमराज हंस

गुरुवार, 15 अक्तूबर 2015

मातु शारदे 

हे मातु शारदे सम्बल दे तै निर्बल छिनी मनंगा का। 
मोरे देस कै शान बढ़ै औ बाढ़ै मान तिरंगा का। । 

दिन दिन दूना होय देस मा लोक तंत्र मजबूत। 
घर घर बिटिया विदुषी हो औ लड़िका होय सपूत। । 
विद्वानन से सभा सजै औ पतन होय हुरदंगा का। 

'वसुधैव कुटुम्बम 'केर भावना बसी रहय सबके मन मा। 
औ परबस्ती निता ललायित रहै कामना जन जन मा। । 
देस प्रेम कै जोत जुगै  कहूँ मिलै ठउर न दंगा का। 

खेलै पढ़ै बढ़ै विद्यार्थी रोजी मिलै जवानन का। 
रोटी औ सम्मान मिलै घर घर बूढ़ सयानन का। । 
'रामेश्वरम मा चढ़त रहै जल गंगोतरी के गंगा का। 
हेमराज हंस -----9575287490  


शुक्रवार, 18 सितंबर 2015

हमरे टोरिअन काही खाये जा थै दइया रे।

             बिटिया 

ठुम्मुक ठुम्मुक जाथी  स्कूले ड्रेस पहिर के बइया रे। 
टाँगे बस्ता पोथी पत्रा बिटिया बनी पढ़इया रे। । 

खेलै चन्दा, लगड़ी, गिप्पी, गोटी, पुत्ता -पुत्ती  । 
छीन भर मा  मनुहाय जाय औ छिन भर माही कुट्टी। । 
बिट्टी लल्ला का खिसबाबै ''लोल बटाइया रे''। । 

ठउर लगाबै अउजै परसै करै चार ठे त्वारा। 
कहू चढ़ी बब्बा के कइयां कहु अम्मा के क्वारा। । 
जब रिसाय ता पापा दाकै पकड़ झोठइया रे। 

बिन बिटिया के अंगना अनमन घर बे सुर कै बंसी। 
बिटिया दुइ दुइ कुल कै होतीं मरजादा बड़मंसी। । 
हमरे टोरिअन काही  खाये जा थै दइया रे। 

भले नही भइ भये मा स्वाहर पै न माना अभारु। 
लड़िका से ही ज्यादा बिटिया ममता भरी मयारू। । 
पढ़ी लिखी ता बन जई टोरिया खुदै सहय्याँ रे। 

कन्यन कै होइ रही ही हत्या बिगड़ि  रहा अनुपात। 
यहै पतन जो रही 'हंस ' ता कइसा सजी बरात। । 
मुरही कोख से टेर लगाबै बचा ले मइया रे। । 
हेमराज हंस --9575287490 
(आकाशवाणी रीवा से प्रसारित )         

शुक्रवार, 29 मई 2015

भारत देस हमारै आय रहय का नहि आय बखरी। ।

बघेली कविता 

आजादी से अजुअव तक वइसै फटी ही कथरी। 
भारत देस हमारै  आय रहय का नहि आय बखरी। । 
देखा एक नजर जनतै पुन देखा आपन ठाठ। 
दस दस मोटर तोहरे दुअरा हमरे टुटही खाट। । 
कब तक हम अपना का ढोई लहकै लाग है कन्धा। 
तुहिन बताबा राजनीत अब सेवा आय कि धन्धा। । 
   क्रमशः ------------------------
हेमराज हंस ----9575287490  

शनिवार, 23 मई 2015

bagheli kavita नाती केर मोहगरी ''आजा'' जुगये आस कै बाती।

बघेली कविता www.baghelisahitya.com

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शहर मा  जाके रहय लाग जब से आपन गाँव। 
भरी दुपहरी आँधर होइगै लागड़ होइ गै छाँव। । 

 गाँवन कै इतिहास बन गईं अब पनघट कै गगरी। 
 थरी कोनइता मूसर ज्यतबा औ कांडी कै बगरी। । 
              गड़ा बरोठे किलबा सोचइ पारी आबै माव  । 

हसिया सोचै अब कब काटब हम चारा का ज्यांटा। 
सोधई दोहनिया मा नहि बाजै अब ता दूध का स्यांटा। । 
काकू डेरी माही पूंछै दूध दही का भाव। 

 दुर्घट भै बन बेर बिही औ जामुन पना अमावट। 
''राजनीत औ अपराधी ''अस सगली हाट मिलावट। ।
      हत्तियार  के  बेईमानी मा डगमग जीवन नाँव। 

जब से पक्छिमहाई बइहर गाँव मा दीन्हिस खउहर। 
उन्हा से ता बाप पूत तक करै फलाने जउहर। । 
नात परोसी हितुअन तक मां एकव नही लगाव।  

कहै जेठानी देउरानी के देख देख के ठाठ  । 
हम न करब गोबसहर गाँव मा तोहरे बइठै काठ। । 
हमू चलब अब रहब शहर मा करइ कुलाचन घाव। 

नाती केर मोहगरी ''आजा'' जुगये आस कै बाती। 
बीत रहीं गरमी कै छुट्टी  आयें न लड़िका नाती। ।    
खेर खूंट औ कुल देउतन का अब तक परा बधाव। 


ममता के ओरिया से टपकें अम्माँ केर तरइना। 
फून किहिन न फिर के झाँकिन दादू  बहू के धइन.। । 
यहै रंझ के बाढ़ मां हो थै लउलितियन का कटाव। 
शहर मा जाके ----------------------------------------
हेमराज हंस --9575287490   


















 

शहर मा जाके बसय लाग जब से आपन गाँव ----

कविता 

शहर   मा जाके बसय लाग जब से आपन गाँव  --------------------------------------------------
दुर्घट भै बन बेर बिही औ जामुन पना अमावट। 
राजनीत औ अपराधी अस सगली हाट  मिलावट। । 
बेईमानन के बेईमानी मा डगमग जीवन नाव। 
 

शनिवार, 2 मई 2015

धन्न धन्न सौ बेर धन्न या देश कै पावन माटी। ।

शहीदन कै वंदना 

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धन्न धन्न सौ बेर धन्न य देस कै पावन माटी। 
हमरे पुरखन का प्रताप औ भारत कै परिपाटी। । 
कहय लाग भारत माता धन्न बहिनी डोर कलाई का। 
जे सीमा मा संगीन लये दइन जीवन देस भलाई का। । 
धन्न कोख महतारी कै जे पूत दान दइन मूठी मा। 
मातृभूमि के देस प्रेम का दूध पिआइन घूंटी मा। । 
धन्न धन्न वा छाती का जेहि एकव है संताप नही। 
बलिदान पूत भा देस निता धन्न धन्न वा बाप कही। । 

धन्न धन्न वा येगुर काहीं  वा सेंदुर कै मांग धन्न। 
ज्याखर भा अहिवात अमर वा नारी केर सोहाग धन्न। । 

उई भाईन कै बांह धन्न मारिन सुबाहु मरीची अस। 
बइरी वृत्तासुर मरै का जे बन गें वज्र दधीची अस। । 
औ अपने अपने रक्तन से वन्दे मातरम उरेह दइन.। 
जब भारत माता मागिस ता उई हँसत निछावर देह दइन। । 

बोली हर हर महादेव कै बोल ऊचें सरहद्दी मा। 
औ बैरिन का मार भगाइन खेलै खेल कबड्डी मा। । 
धन्न उई अमर जबानन का जेहिं कप्फन मिला तिरंगा का। 
जब राख फूल पहुंची प्रयाग ता झूम उचा मन गंगा का। । 
ताल भैरवी देश राग तब गूंजी घाटी घाटी। 
धन्न धन्न सौ बेर धन्न या देस कै पावन माटी। । 

गरजै लगे  सफ़ेद शेर औ बांधव गढ़ के हिरना। 
फूली नही समतीं बीहर औ केवटी के झिरना। । 
बीर सपूतन के उरांव मा डुबी गइया बछिया। 
बीर पदमधर के बलिदानव का खुब सुमिरै बिछिया। । 

बीर विंध्य कै सुनै कहानी नानी मुन्ना मुन्नी। 
गद्गद होइ गें चित्रकूट औ धार कुड़ी पयसुन्नी।।
अमरकंटक मा बिह्वल रेवा सुन के अमर कहानी। 
विंध पूत सीमा मा जाके बने अमर बलिदानी। । 
 
कलकल करत चली पछिम का दुश्मन कई दहाड़ी। 
सीना तानै'' नरो'' ''पनपथा'' औ" कैमोर' पहाड़ी। । 
तबहिंन हिन्द महा सागर मा बड़ बडबानाल धंधका। 
दुश्मन के भें ढ़ील सटन्ना हिन्दू कुश तक दंदका। ।  

गोपद बनास टठिया साजै औ सोन करै पूजा पाती। 
औ रेवा खुद धन्न होइ गई कइ के उनखर सँझबाती। । 
हे !उनखे तरबा का धूधुर हमरे लिलार का चन्दन बन। 
ओ कवि !तहू दे खून कुछू तबहिन होइ उनखर वंदन। । 
देस भक्ति जनसेवा बाली ही जिनखर परिपाटी। 
धन्न धन्न सौ बेर धन्न या देश कै पावन माटी। । 

हेमराज हंस 9575287490 

















 

शुक्रवार, 1 मई 2015

हम मजूर बनिहार बरेदी आह्यन लेबर लगुआ।



बघेली कविता 





मजूर   [बघेली कविता ]



हम मजूर बनिहार बरेदी आह्यन लेबर लगुआ।
करी मशक्क़त तनमन से हम गरमी जाड़े कदुआ। ।
माघ पूस कै ठाही हो चह नव तपा कै दुपहरिया। 
सामान भादौ के कादौ मा बे पनही बे छतरिया। ।
मिलब कहू हम पाथर फोरत करत कहू हरवाही।
खटत खेत खरिहान खान म काहू ताके पाही। ।
हम कहू का काम निकारी औ काहू के बंधुआ।

''कर्म प्रधान विश्व करी राखा ''कहि गें तुलसी दास। 
कर्म देव के हम विश्कर्मा देस मा पाई त्रास। । 
शोषक चुसि रहे हे हमही अमर बेल की नाइ। 
अउर चुहुकि के करै फराके गन्ना चीहुल घाई। । 
दुधिआ दातन मा बुढ़ाय गा हमरे गाँव का गगुआ। 
हम पसीना से देस का सीच्यन हमरै किस्मत सूखी। 
देस कोष मा भरयन लक्ष्मी घर कै लक्ष्मी भूखी। । 
घूंट घूँट अपमान पिअत हम गढ़ी प्रगति कै सीढ़ी। 
मन तक गहन है बेउहर के हेन रिन मा चढ़ गयीं पीढ़ी। । 
फूका परा है हमरे घर मा तउ हम गाई फगुआ। । 
हम मजूर ------------

हमिन बनायन लालकिला खजुराहो ताज महल। 
हमिन बनायन दमदम पालम सुघर जिहाज महल। । 
हमहिंन बाँध्यन नदिया नरबा तलबा अउर तलइया। 
हमिन बनायन धमनी चिमनी लखनऊ भूल भुलइया। । 
हम सिसकत सीत ओसरिया माहीं धइ के सोई तरुआ। 
कहै क त गंगा जल अस है पबरित हमार पसीना। 
तउ ''कर्मनाशा ''अस तन है पीरा पाले सीना।।
बड़े लगन से देश बनाई मेहनत करी आकूत। 
मेहनत आय गीता रामायन हम हन तउ अछूत। । 
छुआछूत का हइया दाबे देस समाज का टेटुआ। 
हम मजूर ---
बिन खाये के गंडाही का है छप्पन जेउनार। 
कनबहिरे भोपाल औ दिल्ली को अब सुनै गोहर। । 
जब जब माग्यन उचित मजूरी तब तब निथरा खून। 
पूंजी पति के पॉय तरी है देस का श्रम कानून। । 
न्याय मांगे मा काल्ह मारे गें दत्ता नियोगी रघुआ। 
हम मजूर ---------------------------------
 भले ठेस ठेठा कराह से हाँकी आपन अटाला। 
पै हम करब न घात देस मा भ्रष्टाचार घोटाला। । 
जे खून पसीना अउंट के माड़ै रोटी केर पिसान। 
हमी उराव है अइसन माई बाप कै हम संतान। । 
हमरे कुल मा पइदा नहि होंय डाकू गुंडा ठगुआ। 
हम मजूर बनिहार बरेदी आह्यन लेबर लगुआ। । 
 हेमराज हंस ----------9575287490  bagheli sahitya

सोमवार, 20 अप्रैल 2015

हम तोहरे गर का हार बन्यन पै तुम गर फांसी अस।

बघेली 

हम तोहरे गर का हार बन्यन पै तुम गर फांसी अस। 
तुम राहू केतू बन बइठया औ हम पुनमासी अस। । 
                 हेमराज हंस  

रविवार, 19 अप्रैल 2015

अपनेन देस के माटी मा हम कब तक रहब अछूत। ।

अछूत 

जुगन बीति गें पुरखन पीढ़ी पियत य माहुर घूंट। 
अपनेन देस के माटी मा हम कब तक रहब अछूत। । 
    एक दइव की हम सन्तानै कहै पुरान औ वेद। 
   तब काहे का छुआ छूत औ जातपांत का खेद।।
      इसुर ता सब के बांधे है लाल रंग का सूत।  
      अपनेन देस के…… ……… 
हमिन रची देवालय का औ मूरत हमिन बनाई। 
औ जब पूजा करय जई ता भीतर घुसै न पाई। । 
हमरे पुजहाई टठिया का पंडित कहैं अछूत। 
  अपनेन देस के.............. 
रामराज भें उदय राज ता खूब मचाया हल्ला। 
पै समाज के या कुरीत का किहा न एकव तल्ला। ।
कइसा  रुकी धरम परिवर्तन या तोहरे करतूत। 
 अपनेन देस के…… ……… 
धरम कै चिन्ता ही ता पहिले छुआछूत का म्याटा। 
आन कै फूली पाछू झांक्या देखा आपन टयाँटा।।
  ''ईश्वर अंसही कछु नहि भेदा ''तुलसी कै कहनूत। । 
अपनेन देस के माटी मा हम कब तक रहब अछूत। ।
       हेमराज हंस ----9575287490 



मंगलवार, 24 फ़रवरी 2015

हम सरबरिया बाम्हन आह्यन

हम सरबरिया बाम्हन आह्यन 

हम सरबरिया  बाम्हन आह्यन मिलब साँझ के हाउली मा। 
मरजादा का माजब  धोऊब नरदा नाली        बाउली मा। । 
होन मेल     जोल भाई  चारा कै        साक्षात्  हिबै तस्बीर। http.//baghelisahitya.blogspot.com
नक्सल्बादी असम समिस्या औ नहि आय झंझट कश्मीर। । 
अगड़ा पिछड़ा आरछन का लफड़ा  बाला  नहि  आय  भेद। 
जात -पात अउ छुआछूत के ऊंच -नींच  के नहि आय खेद। । 
समता मिलै हँसत बोलत होन पैग भजिआ लपकाउरी मा। । 

एक नाव एक भाव मा बइठे   मिलिहै राजा रंक औ फक्कड़।
बड़े -बड़े परदूसन प्रेमी मिलिहै  सुलगाये  धुँआ औ धक्कड़। । 
रक्शा बाले  -नक्शा बाले   शिक्षा   स्वस्थ्य    सुरक्षा   बाले। 
बने  पुजारी   सरस्वती  के अद्धी   पउआ    बोतल   घाले। । 
बड़े शान से भाषन झारत  मद्ध निषेध  के रैली मा। । 

भले दये अदहन  चुलबा  मा  ताकै  टोरबन  कै  महतारी। 
औ हमार या अमल  सोबाबै रात के लड़का बिना बिआरी। । 
हमही चाही रोज साँझ के मुर्ग मुसल्लम पउआ अद्धी। 
शहर गॉव मा  लूट मार कई देइ ढ़ील कनून कै बद्दी। । 
हम बिन सून  ही राजनीत जस खरिहान कुरईली मा। । 

महुआ रानी पानी दय दय हमही बनै दिहिस लतखोर। 
पहलमान अस अकड़ रहे हन भले हबै अंतस कमजोर।।
बीस बेमारी  चढ़ी  है  तन  मा तउ नही या छूटै ट्याव। 
मदिरा तजा विक्ख की नाइ डिग्गी पीटा गांव -गांव। । 
नही  पी जयी  या  समाज  का बगाई कौरी कौरी मा। 
चला करी प्रण आइस  भाई कोउ जाय न हौली  मा। । 
 

                                                                               
       हेमराज     फलाने                                                                    
                                                                              
















बंदन है जयराम जी, बिन्ध्य के बानी पूत।।

जेखे  आंखर  बने  हें,  जनता  के स्वर दूत। बंदन  है  जयराम जी, बिन्ध्य  के बानी पूत।।  सादर  ही  शुभ कामना बरिस गाँठ के हेत। करत रहै लेखनी सद...