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गुरुवार, 23 अक्टूबर 2025

उनही काजू कतली औ हमरे निता फूटा

       बघेली कविता 

उनही  काजू   कतली औ  हमरे निता  फूटा। 

लें  का  हो  ता लइ  ल्या  नहीं  हेन  से  फूटा।।  


रात  दिन  हम धींच कुटाई। 

खुदय गिरी औ तुहीं उचाई।।  

महुआ  हम  बीनी  औ  तुम  लाटा  कूटा। 


घरय  जइ ता  धाबय  टोरिया। 

हरबिन मोर थथोलय  झोरिया।।  

बपुरी   बहुरिगै   लिहे     मन   टूटा।


मालकिन कहय बाह करतूती। 

येसे   नीक  लगा  ल्या  भभूती। । 

जेही मान्यन मगरोहन वा ता निकरा खूंटा। 

उनही  काजू   कतली औ  हमरे निता  फूटा। । 

हेमराज हंस 

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