बघेली साहित्य -का संग्रह हास्य व्यंग कविता गीत ग़ज़ल दोहा मुक्तक छंद कुंडलिया
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मंगलवार, 30 अप्रैल 2024
हम मजूर बनिहार बरेदी आह्यन लेबर लगुआ।
सोमवार, 29 अप्रैल 2024
पइ महलन के कोंख से आये सब दिन बुद्ध।।
पूंछ रही ही दलन से, लोक सभा कै ईंट।
रविवार, 28 अप्रैल 2024
गरीबन के खातिर सब मनसेरुआ हें।
शनिवार, 27 अप्रैल 2024
छंद के लिखइया नारा लिखय लगें
शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024
मैहर मा चमकत रहैं, राम नरेश आदित्य।
पीरा गावय मा कबव, करय कसर न शेष।
आंसू के राज कुमार हैं, कबिबर रामनरेश
।।
जिनखे लेखन मा हबै, शब्दन कै मरजाद ।
कविता सीधे हिदय से, करै करुन संबाद।।
पयसुन्नी अस सब्द का, जे पूजय दिनरात।
कबिता उनखे निता ही, जीबन कै जरजात।।
गीत ग़ज़ल कै आरती , दोहा कविता छंद।
आंखर आंखर आचमन, अंतस का आनंद।।
शब्द ब्रह्म का रुप है, वर्ण धरै जब भेष।
मइहर मा एक संत हैं, पंडित रामनरेश।।
लगय कटाये घाट अस, सब्दन का लालित्य।
मैहर मा चमकत रहैं, राम नरेश आदित्य।।
रविवार, 21 अप्रैल 2024
जउन मेंछा मा ही शान वा पूंछी मा नहीं ।।
बुधवार, 10 अप्रैल 2024
खखरी भुंडी तक किहिन,मानस का अपमान
जीबन के हर पक्ष का,जे दे सरल निदान।
खखरी भुंडी तक किहिन,मानस का अपमान।।
लगी रही जब देस मा, गरिआमै कै रयाव।
ता न किहा आलोचना, औ न दीन्हया ठयाव।।
डेंगू अउर मलेरिया, कह्या तु ऊल जलूल।
वा तोहरे अपमान का, सकब न हरबी भूल।।
हेमराज हंस
हिंआ कांगरेसी करैं, भाजपा केर प्रचार।
देखा अपने देस मा, प्रेम औ भाइपचार।
हिंआ कांगरेसी करैं, भाजपा केर प्रचार।।
हेमराज हंस
मंगलवार, 9 अप्रैल 2024
नास्तिक का पुरानिक बताऊ थें
उइ बात बड़ी ठोस औ प्रमानिक बताऊ थें।
सामाजिक जहर का टानिक बताऊ थें।।
जब उनही देखाय लाग दाई का माइक
ता उइ घोर नास्तिक का पुरानिक बताऊ थें। ।
हेमराज हंस
सोमवार, 8 अप्रैल 2024
नये साल सम्बत् का आजु शुभ पर्व है।
शनिवार, 6 अप्रैल 2024
सगले अइगुन माफ
लोकतंत्र के ओंठ
भले लगा लें जोर सब, उनही दई तिलाक।
करके चूर घमंड का, टोरिहै राम पिनाक।।
चाहे कोउ तिनगै भले, झूरै भांजै तेंग।
जे पूजिस ही अबध का अबकी पाई नेग।।
यतर करी मतदान हम, लगै अउर का ईर।
पूरे भारत मा बनै, आपन बूथ नजीर।।
देस हमीं जीबन दइस, औ सुबिधा चउकेठ।
हंस हमूं मतदान कइ,बनी नागरिक ठेठ।।
सब झंझट का छोड़ि के करी बोट भर पूर।
निकहा प्रत्याशी चुनी जात पात से दूर।।
लोकतंत्र आपन हबय, दुनिआ का लकटंट।
जनतै लड़िअमफूस ही ,जनता ही श्री मंत।।
अपना से बिनती हिबय, डारी सब जन बोट।
जिव निछोह बिदुरा सकैं, लोकतंत्र के ओंठ ।।
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बघेली लोक साहित्य जब से मूड़े मा कउआ बइठ है। अशगुन लये बऊआ बइठ है। । इंदिरा आवास कै क़िस्त मिली ही वा खीसा मा डारे पउआ बइठ ...
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पहिले जब खड़े होकर लघु शंका करना निषिद्ध माना जाता था। तब की बात है।एक बालक खड़े होकर लघुशंका कर रहा था। गांव के एक बुजुर्ग ने देखा तो उसे...
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BAGHELI SAHITYA बघेली साहित्य : bagheli kavita नाती केर मोहगरी ''आजा'' जुगये आस कै... : बघेली कविता www.baghelisahitya.co...
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दार महँगी है खा ल्या बलम सुसका। दार महँगी ।
*लोकगीत * दार महँगी है खा ल्या बलम सुसका। दार महँगी । भाव सुनत मा लागय ठुसका।। दार महँगी ।। किधनव बनाउब पान...