जाति बाद के मथरे परंगत नहीं परै।
राबन के बहकाये मा अंगद नहीं परै।।
चाह जउन जात के होंय नेता जी
पै गरीबन के साथ उनखर पंगत नहीं परै।।
हेमराज हंस
चमचा गीरी जेखे कलम कूंची मा नहीं।
वाखर नाव अपना के सूची मा नहीं।।
देस कै जनता जाना थी नीक के
जउन मेंछा मा ही शान वा पूंछी मा नहीं ।।
हेमराज हंस
हम फुर कही थे ता कान उनखर बहा थै।
पता नही तन मा धौं कउन रोग रहा थै। ।
तन से हें बुद्ध मन से बहेलिया
पंछी अस पीरा य लोकतंत्र सहा थै ।।
हेमराज हंस
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