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गुरुवार, 23 फ़रवरी 2023

औ कोऊ आंसू ढारत अउलाद का तरसा थै।।

 राजनीत चढाथी जब जब पाप मा।
तब नेतागीरी  सेराथी सिताप मा।।
तुलसी के मानस कै सदा होई आरती
पै उइ  न हेरे मिलिहैं  कउनौ़ किताप मा।


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 कोउ  दहिना  कोउ    बइता   हेरा   थें।
चचरी   मचामै    का   रइता    हेरा थें। ।
उनखर   सोच  बड़ी   प्रगत  शील   ही
धानमिल के जुग मा कोनइता हेरा थें। ।   
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किसान बिचारा   खाद     का    तरसा   थै।
निर्बल  बपुरा  फरिआद    का   तरसा थै।।  
कोऊ जीबन  काटा रहा है  बृद्धाआश्रम मा
औ कोऊ आंसू ढारत  अउलाद का तरसा थै।।
 

हम समाज के मिल्लस कै आसा  करी  थे।
ता अपना हमरे ऊपर इस्तगांसा  करी थे।।
बहुरुपियव लजाय जाय अपना का देख के
निकहा नाटक नेरुआ  औ  तमासा करी थे। ।  
 
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 तसला ता मिला खूब तसल्ली नहीं मिली।
हमरे खिआन पनही का तल्ली नहीं मिली।।
 
कउड़ा ताप    ताप   के   गुजारी   रात   हम  
जाड़े मा कबौं ओड़य का पल्ली नहीं मिली। ।
 
रक्छा  के   इंतजाम   केर   दाबा   बहुत    हें
घर से जो निकरी बपुरी ता लल्ली नहीं मिली। ।
 
वा  नामी  धन्ना  सेठ    है  धरमात्मा   बहुत
पै दुआरे मा गरीब का  रुपल्ली नहीं मिली।।
 
रिकॉड  मा गुदाम लबालब्ब भरी  हय हंस
जब जांच भै त एकठे छल्ली नहीं मिली।।
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आहट  पाके प्यास की गढ़ता घड़ा कुम्हार
तृष्णा को तृप्ती मिले शीतल जल की धार
गढ़ते  गढ़ते गढ़ गया जीवन का सोपान
समय चाक पर चल रहा  माटी का दिनमान
पानी जब बिकने लगा बोतल पाउच बंद
प्यासे को मिलता नही मटके सा आनंद
प्यास बुझाने के घड़े गढ़े जो माटी पूत
आंसू पीकर जी रहा बन कर एक अछूत
हेमराज हंस


खेत बिका कोलिया गहन  बिकिगा झुमका टाप।
पट्टीदार   बिदुराथें   सिसकै  बिटिअय   बाप।


लेखन जब करने लगा कागद लहूलुहान।
ब्रह्म शब्द तक रो पड़ा धरा रह गया ज्ञान।।

सोमवार, 23 नवंबर 2015

bagheli poem गरीबन के निता सब मनसेरुआ हें।

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गरीबन के निता सब मनसेरुआ हें। 
बिचारे के खटिआ मा तीन ठे पेरूआ हें। । 
चाह रजन्सी रही होय य की लोकतंत्र 
मंहगाई गुंडई पकरिन ओकर चेरुआ हें। । 
 वा सदमा से भनेजिन बिहोस परी ही 
मामा कहा थें संच मा भइने बछेरुआ हें। । 
जब से महँग भै दार ता लपटा खई थे
उनखे  निता चुकंदर हमहीं रेरुआ हें । । 
उनखे सुची रास मा गउर धरी ही 
सत्तर साल से हंस के गोहूँ मा गेरुआ हें। । 
हेमराज हंस  

रविवार, 16 अगस्त 2015

bagheli kavitaआबा मुखिया जी स्वागत है

आबा  मुखिया जी स्वागत है 

आबा मुखिया जी स्वागत है। 
 शारद मइया कै धर्म भूमि। 
य 'बाबा 'जी कै कर्म भूमि। । 
भुइ गोलामठ औढरदानी कै  । 
सम्पत तेली बलिदानी कै। । 
मुड़िया बाबा के धूनी मा 
बंदन अभिनन्दन शत शत है। । 
आबा मुखिया जी स्वागत है। । 
हेन ही मिल्लस कै परिपाटी। 
पुरवा ,ओइला ,गणेश घाटी। । 
औ रामपुर के राधा किशना। 
दर्शन से मिटै धृणा तृष्णा। । 
बड़ा अखाडा मा मनस्वनी 
कै पयस्वनी निकरत है। । 
आबा ---------------------
या विंध्य द्धार लेशे है कलश। 
पानी लये कलकल बहै टमस। । 
जब से ठगि के गें हें कुम्भज। 
ता विंध्य का निहुरा है गुम्मच  । । 
गुरू अगस्त के निता झुका है 
या अटल  झुकेही  का ब्रत है। । 
आबा मुखिया ----------------

हेमराज हंस -9575287490 













शुक्रवार, 19 जून 2015

KAVI HEMRAJ HANS राजनीति में डिगरी की जरुरत नही होती।


राजनीति में डिगरी की जरुरत नही होती। 
जंगल में सिगड़ी की जरुरत नही होती।।
हेमराज हंस  9575287490 

BAGHELI KAVITA विद्या के मंदिर मा बरती हई लछमी की बाती। कइसन देस या पढ़ी लिखी सरस्वतिव सकुचातीं। । हेमराज हंस

बघेली कविता 

विद्या के मंदिर मा बरती हई लछमी की बाती। 
कइसन देस या पढ़ी लिखी सरस्वतिव सकुचातीं। । 
हेमराज हंस 

बुधवार, 21 जनवरी 2015

बघेली  कविता htpp;//baghelihemraj.blogspot.in

काल्ह मिला एक ठे प्रत्याशी। 
मिलनसार कर्मठ मृदु भाषी। । 
ईमानदार औ खूब जुझारू। 
पिये रहा घुटकी भर दारू। । 
छरकाहिल जे रहा काल्ह तक 
देखतै हमही सघराय लग। 
तन से मुरइला मन से नाग। । 
मुँह मा लये बिदुरखी बासी। 
काल्ह-----------------
व विकास कई करै न बात। 
लगा गिनामै जात औ पात। । 
बाम्हन ठाकुर काछी पटेल। 
राजनीत कस ख्यालै खेल। । 
पिछड़ा पन्द्रह और पचासी। 
काल्ह ------------------

 

दार महँगी है खा ल्या बलम सुसका। दार महँगी ।

        *लोकगीत  * दार महँगी  है  खा ल्या बलम सुसका। दार महँगी  ।    भाव     सुनत  मा    लागय   ठुसका।। दार महँगी  ।।     किधनव  बनाउब  पान...