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गुरुवार, 6 नवंबर 2025
गुरुवार, 23 फ़रवरी 2023
औ कोऊ आंसू ढारत अउलाद का तरसा थै।।
राजनीत चढाथी जब जब पाप मा।
तब नेतागीरी सेराथी सिताप मा।।
तुलसी के मानस कै सदा होई आरती
पै उइ न हेरे मिलिहैं कउनौ़ किताप मा।
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कोउ दहिना कोउ बइता हेरा थें।
चचरी मचामै का रइता हेरा थें। ।
उनखर सोच बड़ी प्रगत शील ही
धानमिल के जुग मा कोनइता हेरा थें। ।
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किसान बिचारा खाद का तरसा थै।
निर्बल बपुरा फरिआद का तरसा थै।।
कोऊ जीबन काटा रहा है बृद्धाआश्रम मा
औ कोऊ आंसू ढारत अउलाद का तरसा थै।।
हम समाज के मिल्लस कै आसा करी थे।
ता अपना हमरे ऊपर इस्तगांसा करी थे।।
बहुरुपियव लजाय जाय अपना का देख के
निकहा नाटक नेरुआ औ तमासा करी थे। ।
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तसला ता मिला खूब तसल्ली नहीं मिली।
हमरे खिआन पनही का तल्ली नहीं मिली।।
कउड़ा ताप ताप के गुजारी रात हम
जाड़े मा कबौं ओड़य का पल्ली नहीं मिली। ।
रक्छा के इंतजाम केर दाबा बहुत हें
घर से जो निकरी बपुरी ता लल्ली नहीं मिली। ।
वा नामी धन्ना सेठ है धरमात्मा बहुत
पै दुआरे मा गरीब का रुपल्ली नहीं मिली।।
रिकॉड मा गुदाम लबालब्ब भरी हय हंस
जब जांच भै त एकठे छल्ली नहीं मिली।।
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आहट पाके प्यास की गढ़ता घड़ा कुम्हार
तृष्णा को तृप्ती मिले शीतल जल की धार
गढ़ते गढ़ते गढ़ गया जीवन का सोपान
समय चाक पर चल रहा माटी का दिनमान
पानी जब बिकने लगा बोतल पाउच बंद
प्यासे को मिलता नही मटके सा आनंद
प्यास बुझाने के घड़े गढ़े जो माटी पूत
आंसू पीकर जी रहा बन कर एक अछूत
हेमराज हंस
खेत बिका कोलिया गहन बिकिगा झुमका टाप।
पट्टीदार बिदुराथें सिसकै बिटिअय बाप।
लेखन जब करने लगा कागद लहूलुहान।
ब्रह्म शब्द तक रो पड़ा धरा रह गया ज्ञान।।
सोमवार, 23 नवंबर 2015
bagheli poem गरीबन के निता सब मनसेरुआ हें।
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गरीबन के निता सब मनसेरुआ हें।बिचारे के खटिआ मा तीन ठे पेरूआ हें। ।
चाह रजन्सी रही होय य की लोकतंत्र
मंहगाई गुंडई पकरिन ओकर चेरुआ हें। ।
वा सदमा से भनेजिन बिहोस परी ही
मामा कहा थें संच मा भइने बछेरुआ हें। ।
जब से महँग भै दार ता लपटा खई थे
उनखे निता चुकंदर हमहीं रेरुआ हें । ।
उनखे सुची रास मा गउर धरी ही
सत्तर साल से हंस के गोहूँ मा गेरुआ हें। ।
हेमराज हंस
रविवार, 16 अगस्त 2015
bagheli kavitaआबा मुखिया जी स्वागत है
आबा मुखिया जी स्वागत है
शुक्रवार, 19 जून 2015
KAVI HEMRAJ HANS राजनीति में डिगरी की जरुरत नही होती।
राजनीति में डिगरी की जरुरत नही होती।
जंगल में सिगड़ी की जरुरत नही होती।।
हेमराज हंस 9575287490
BAGHELI KAVITA विद्या के मंदिर मा बरती हई लछमी की बाती। कइसन देस या पढ़ी लिखी सरस्वतिव सकुचातीं। । हेमराज हंस
बघेली कविता
बुधवार, 21 जनवरी 2015
बघेली कविता htpp;//baghelihemraj.blogspot.in
बुधवार, 31 दिसंबर 2014
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पहिले जब खड़े होकर लघु शंका करना निषिद्ध माना जाता था। तब की बात है।एक बालक खड़े होकर लघुशंका कर रहा था। गांव के एक बुजुर्ग ने देखा तो उसे...
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श्री शिवशंकर सरस जी
श्री शिवशंकर सरस जी, बोली के चउमास। उनसे छरकाहिल रहैं, तुक्क बाज बदमास।। सादर ही सुभकामना, जनम दिना कै मोर। रिमही मा हें सरस जी , जस पा...

