बघेली कविता htpp;//baghelihemraj.blogspot.in
काल्ह मिला एक ठे प्रत्याशी।
मिलनसार कर्मठ मृदु भाषी। ।
ईमानदार औ खूब जुझारू।
पिये रहा घुटकी भर दारू। ।
छरकाहिल जे रहा काल्ह तक
देखतै हमही सघराय लग।
तन से मुरइला मन से नाग। ।
मुँह मा लये बिदुरखी बासी।
काल्ह-----------------
व विकास कई करै न बात।
लगा गिनामै जात औ पात। ।
बाम्हन ठाकुर काछी पटेल।
राजनीत कस ख्यालै खेल। ।
पिछड़ा पन्द्रह और पचासी।
काल्ह ------------------
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