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बुधवार, 21 जनवरी 2015

बघेली  कविता htpp;//baghelihemraj.blogspot.in

काल्ह मिला एक ठे प्रत्याशी। 
मिलनसार कर्मठ मृदु भाषी। । 
ईमानदार औ खूब जुझारू। 
पिये रहा घुटकी भर दारू। । 
छरकाहिल जे रहा काल्ह तक 
देखतै हमही सघराय लग। 
तन से मुरइला मन से नाग। । 
मुँह मा लये बिदुरखी बासी। 
काल्ह-----------------
व विकास कई करै न बात। 
लगा गिनामै जात औ पात। । 
बाम्हन ठाकुर काछी पटेल। 
राजनीत कस ख्यालै खेल। । 
पिछड़ा पन्द्रह और पचासी। 
काल्ह ------------------

 

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