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बुधवार, 12 मार्च 2025

कइसन होरी खेलै जनता रोरी हबै न रंग

          होरी

कइसन  होरी  खेलै   जनता रोरी हबै न रंग।।

पानी तक ता दुरघट होइगा कइसा घोटै भंग।।


दांती टहिआ कलह दंभ का हिरना कश्यप राजा।

राजनीत होलिका बजाबै नफरत बाला  बाजा।।

 प्रहलाद प्रेम भाईचारा कै नहिआय कहूं उमंग ।


महंगाई बन के आई ही हमरे देस मा हुलकी।

तब कइसन के चढै करहिआ कइसन बाजै ढोलकी।।

भूंखे पेट बजै तब कइसा या खंझनी मृदंग।।


फूहर पातर भासन लागैं होरी केर कबीर।

छूंछ योजना कस पिचकारी आश्वासन का अबीर।।

लकालक्क खादी कुरथा मा भ्रष्टाचारी रंग।


कुरसी बादी राजनीत मिल्लस का चढाबै फांसी।

आपन स्वारथ सांटै खातिर पंद्रा अउर पचासी।।

जने जने की आंखी  भींजीं दुक्ख सोक के संग।।

कइसन  होरी  खेलै   जनता रोरी हबै न रंग।।

हेमराज हंस  - भेड़ा मैहर 

भाई चारा मा रगा , चला लगाई रंग।

 भाई चारा  मा रगा , चला लगाई रंग। 
अपने भारत देस मा बाढय प्रेम उमंग।। 
 
अकहापन  औ  इरखा राई चोकरा नून। 
होरी मा जरि जाय सब बैर बिरोध कै टून।।
 
सुखी संच माही रहय आपन भारत देस। 
प्रेम पंथ प्रहलाद का न कोउ देय कलेस। । 
 
अंग अंग पूंछय लगा मन मा लिहे मिठास। 
कबै अयी  वा सुभ घरी जब टूटी उपबास। । 
 
कथा पुरानन कै हमी दीन्हे ही मरजाद। 
जली आग मा होलिका बचें भक्त प्रह्लाद। । 
 
खेतन मा पाकै  फसल घर मा आबै अन्न। 
होरी परब मनाय के खेतिहर लगैं प्रसन्न। । 

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