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सोमवार, 23 नवंबर 2015

bagheli poem गरीबन के निता सब मनसेरुआ हें।

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गरीबन के निता सब मनसेरुआ हें। 
बिचारे के खटिआ मा तीन ठे पेरूआ हें। । 
चाह रजन्सी रही होय य की लोकतंत्र 
मंहगाई गुंडई पकरिन ओकर चेरुआ हें। । 
 वा सदमा से भनेजिन बिहोस परी ही 
मामा कहा थें संच मा भइने बछेरुआ हें। । 
जब से महँग भै दार ता लपटा खई थे
उनखे  निता चुकंदर हमहीं रेरुआ हें । । 
उनखे सुची रास मा गउर धरी ही 
सत्तर साल से हंस के गोहूँ मा गेरुआ हें। । 
हेमराज हंस  

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