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सोमवार, 6 अक्टूबर 2025

सन्त तुलसीदास और उनका हनुमान चालीसा

 सन्त तुलसीदास और उनका हनुमान चालीसा रामदूत बजरंगबली हनुमान् के परम भक्त सन्त तुलसीदास गोण्डा जनपद के मध्यकालीन प्रमुख अवधी कवि हैं। तुलसी नाम से हिन्दी साहित्य में तीन कवियों की चर्चा है- एक मानसकार तुलसी, दूसरे घट-रामायण के रचयिता हाथरस वाले तुलसी, तीसरे हनुमान चालीसा के रचयिता गोण्डा वाले तुलसी। यहाँ हम हनुमान चालीसा के रचनाकार तुलसी के विषय में चर्चा कर रहे हैं। हिन्दी विद्वानों में यह एक बड़ी भ्रान्ति है कि हनुमान चालीसा भी मानसकार तुलसी की ही रचना है, जबकि सत्य यह है कि इसके रचयिता तुलसीदास गोण्डा जनपद के बलरामपुर और अब तुलसीपुर तहसील में स्थित भवनियापुर ग्राम के निवासी और जाति के कुर्मी तथा स्वभाव से परम सन्त थे। मानस चतुश्शती के अवसर पर नागरी प्रचारिणी सभा, काशी द्वारा प्रकाशित तुलसी-ग्रन्थावत्ती में उपलब्ध टिप्पणी में कहा गया है कि 'गोस्वामी जी के नाम से प्रसिद्ध ग्रन्थों में हनुमान चालीसा की बड़ी प्रतिष्ठा है, किन्तु लगभग 30 वर्ष पहले सन् 1940 ई.में कल्याण में श्री विनायक जी का 'गोस्वामी जी के नाम-राशि' शीर्षक लेख प्रकाशित हुआ था जिसमें लिखा था कि गोण्डा जिले का तुलसीपुर गाँव बसाने वाले देवीपाटन निवासी तुलसीदास ने हनुमान-चालीसा लिखा था। दो-तीन वर्ष पूर्व भोपाल के 'तुलसीदास' पत्र में भी एक लेख था कि 18वीं शताब्दी में भोजपुर के किसी तुलसीदास ने 'हनुमान-चालीसा' लिखा। हनुमान-चालीसा की भाषा और शैली में भी स्पष्ट है कि यह गोस्वामी जी की रचना नहीं है। यह जनश्रुति प्रचलित है कि सन्त तुलसीदास नाम के एक कवि गोण्डा जनपद की बलरामपुर तहसील के अन्तर्गत स्थित देवीपाटन के दक्षिण-पूर्व निकट ही बसे भवनियापुर गाँव में 18वीं शताब्दी में पैदा हुए थे। इनके पूर्वज राप्ती नदी पर स्थित भोजपुर से आकर यहाँ बस गये थे। ये जाति के कुर्मी थे। युवावस्था में ही इनके हृदय में वैराग्य उत्पन्न हो गया था और ये घर छोड़ कर देवीपाटन से 17, मी. पूर्व कुटी बनाकर रहने लगे थे। उसी स्थान पर उन्हीं के नाम पर तुलसीपुर गाँव बसा जो बाद में चलकर एक अच्छा कस्बा हो गया। 'घट-रामायण' के रचयिता तुलसी साहब के ही समान ये सन्त भी अपने को गोस्वामी तुलसीपास का अवतार मानते थे और हनुमान जी को अपने इष्ट रूप में पूजते थे। यह भी बताया जाता है कि इन्हें हनुमान जी सिद्ध थे। कम पढ़े-लिखे होने पर भी इन्होंने जो कुछ लिखा है, वह हनुमान जी की कृपा से ही। हमने भवनियापुर जाकर देखा है। वहाँ आज भी हनुमान जी की एक भव्य मूर्ति विद्यमान है। यह भी बताया जाता है कि सन्त तुलसीदास ने 'हनुमान चालीसा' के अतिरिक्त 'लवकुश काण्ड' तथा 'हनुमान साठिका' नाम से दो और पुस्तकें लिखी थीं।

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