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मंगलवार, 8 अप्रैल 2025

जउन बोया वा काटा भाई।

बघेली कविता 
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जउन   बोया  वा  काटा  भाई। 
अब   काहे    का   घाटा  भाई।।

जर्जर   पोथी   ही  चरित्त कै 
वमै   चढ़ा   ल्या  गाता भाई।।

भया  सुखे  दुःख ठाढ़ न कबहूं  
तब    काहे   का   नाता  भाई। ।

बड़े    सत्तबादी    बक्ता    हा
पुन  थूंका   पुन  चाटा   भाई।।

आजु हबै मुँह जउकी का जउका   
काल्ह  कटी  पुन  लाटा भाई। । 

काहु  का परथन कहूं समर्थन 
आपन  मतलब    सांटा  भाई।।

ऐसी   कूलर  अपना  का  सुभ 
"हँस"   के   है  फर्राटा    भाई।  ।
हेमराज हंस  --मैहर  

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