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रविवार, 18 अगस्त 2024

मंचीय मुक्तक

फलाने कै भंइसी निकहा पल्‍हाथी।
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पढ़इया स्‍कूल छूरा लइके अउथें।
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हम जेही मांन्‍यान कि बहुतै बिजार है।
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पियासा परा हम, हेन नल क देख्‍यान।
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नल तरंग बजाउथें,बजबइया झांझ के।
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शांती क पाठ लड.इया से पूंछत्‍या है ।
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भइस अबै बिआन नही,उंइ सोठ खरीदाथें।
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घिनहौ क नागा नही कही,येही बड़प्‍पन मान कहा ।
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चेतना के देंह का उंइ झुन्‍न न करै।
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बलफ फियुज होइगा झालर पकड.के।
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काल्‍ह बतामैं गंगा भट्‌ट।
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उई बड़े  अहिंसावादी हें पै रहा थें नींद मा।
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पुलिस जाना थी जेबकतरा आय।
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कुछ जन  राबन  का  फूफा बताउथें।
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 नंगई      से      नहीं          बड़प्पन     से         नापा।
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काहू का पिसान से ता काहू का चोकर से चला थै।
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हाथे माही थाम्हे माउस।
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उनखेे कइ शरद्‌‌ अस   पूनू
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दधीच  कै हड्डी औ पोस्टर मामा  मारीच  का।
छहेला  का  सराही  की  सराही   बीज   का। ।
अरे   कूकूर       भले      वफादार          ह्वाथै
पै    ओहू    के    जक्शन   लगा थै रेबीज़ का। ।
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अब एक रुपिया कै भांज नही मिलै।
गिरे के बाद भुंइ मा गाज नही मिलै।।
उंइ अब चुल्लू भर पानी लये ठाढ हें
पै बूड़ै का अटकर अंदाज नही मिलै।।
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तुलसी के बगिया मा नकटी कहां से आय गै।
यतना पचामै कै  शक्ती  कहाँ  से  आय  गै  । ।
जे काल्ह तक धरम का अफीम बताउत रहें
वा कुपोषित बिचार मा भक्ती कहां से आय  गै। ।
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टेक्टर जब से आबा ता बरदा हेराय गें ।
गाँव   के  रीढ़   का   गरदा    हेराय  गें ।।
अब चाल चेहरा चरित्र कै चरचा नहीं चलै
घिनहा पानी निकरैं का नरदा हेराय गें । ।  
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किसान बिचारा   खाद     का    तरसा   थै।
निर्बल  बपुरा  फरिआद    का   तरसा थै।।  
कोऊ जीबन  काटा रहा है  बृद्धाआश्रम मा
औ कोऊ ता बपुरा हेन अउलाद का तरसा थै।।
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भुंइ  हमार  मंदिर  आय  भूत  का  चउरा  न होय। 
या पुरखन कै थाती, धन्ना सेठ का कउरा न होय।।
हमहीं    या   धरती     माता    से      कम      नहीं 
लिलारे का चन्दन आय देह का खउरा  न होय ।  । 
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खादी से कहां चूक भै चरखा बताउथें।
केतू भा अजोर य करखा बताउथें॥
जे रोज बोतल का पानी पियाथें
उइ अपने का नदियन का पुरखा बताउथें॥
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चला फलाने दारू बेंची।
नदिया खोदी बारू बेंची।।
हरिश्चाद के देस के आह्यन
लड़िका औ मेहरारू बेंची। ।
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गरीब न  होइहैं  ता मालिस  को करी।
अपना कै मक्खन पालिस  को करी। ।
गरीबय  से  अपना   के ठाठ बाठ हें  
ओखे नाव से चार के  चालीस को करी। ।
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उंई चाहाथें देस मा बाउर पइदा होंय ।
औ उनखे घर मा जनाउर पइदा होंय ।।
एक   बूंद   पानी   न   बरखै  खेत मा
औ सीधे धान नही चाउर पइदा होंय।।
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भाई  अस  दूसर  नही  जो  भउजाई  बांख  न  होय। 
बाउर अस है वा समाज जेखर आपन भाख न होय। । 
देस कै   जनता  नेम  प्रेम  भाई चारा  से  रहि  तो  लेय 
जो हमरे देस मा नफरत कै कारी  अँधिआरी पाख न होय। ।
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चमचा गीरी जेखे कलम कूंची मा नहीं। 
वाखर  नाव  अपना  के  सूची  मा नहीं।।
देस  कै  जनता  जाना  थी    नीक   के  
जउन मेंछा मा ही शान वा पूंछी मा  नहीं ।।
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हम फुर कही थे ता कान उनखर बहा थै।
पता नही  तन मा धौं  कउन  रोग रहा थै। ।
तन   से    हें   बुद्ध   मन    से   बहेलिया
पंछी  अस  पीरा  य  लोकतंत्र सहा थै ।।
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हमरे ईमानदारी का रकवा रोज घटा थै। 
या खबर बांच बाँच के करेजा फटा थै। । 
जब उनसे पूंछयन ता कहा थें फलाने 
चरित्र का प्रमाण पत्र थाने मा बटा थै। । 
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वा  एक   पुड़िया   कुरकुरा   मा  रगाय  गा।
पै  रोय  के सबका   नींद   से   जगाय   गा ।।
उनही   पुटिआमै   का  अउराथै    नीक  के 
घुनघुना  धराय के अउंटा पिअय सिखाय गा।।
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या  ता अहरी आय  बखरी  कहूं  अउर  ही। 
मन तउलय के निता तखरी कहूं अउर ही। 
अब ता  कायलिव रचाये ओंठ   बागा थी 
प्रेम  काहू से  ता  पैपखरी  कहूं  अउर  ही।। 
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तुम हमार आँसू देखा हम तोर बिदुरखी देखीथे। 
हाथे मा रिमोट लये हम आपन कुरकी देखीथे। ।
कोउ नहि आय दूध का धोबा राजनीत के पेशा  मा 
साँझ सकारे चाय पिअत हम खबर कै सुरखी देखीथे। ।
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शुक्राचार  घुसें  तुम्मी मा। 
कनमा  होइगें  हुम्मी  मा।। 
जबसे उइं खजुराहो देखिन  
ग्यान  दइ  रहें  चुम्मी  मा।।
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कोऊ अमीरी से ता कोउ गरीबी से दुःखी है। 
कोउ दुसमन से ता कोउ करीबी से दुःखी है। । 
या   दुनिया   मा   सुख   संच  हे रे नहीं  मिलै  
कोउ मियाँ  से ता  कोउ  बीबी  से  दुःखी  है। ।     
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वा भले जीभ दार है पै मकुना मउना है। 
एहिन से ओखे हीसा मा अउना पउना  है। । 
पड़बा है काहे दूबर य बात दिल्ली जाना थी 
दुधारू लोकतंत्र के पडउना  का थम्हाउना है। । 
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उनखे नजर मा दुइ देस भक्त असली ।
एक ता अतंकबादी दूसर नक्कसली। ।
दूनव के मरे उंइ कपार धरे रोबा थें
जइसा उजरिगा होय खेत दुइ फसली।।
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      सिरि बानी बन्दना

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हे मातु शारदे संबल दे तै निरबल छिनीमनंगा का।

मोरे देस कै शान बढै    औ बाढै मान तिरंगा का॥

दिन दिन दूना होय देस मां      लोकतंत्र मजबूत।

घर घर विदुषी बिटिया हों औ,लड़िका होंय सपूत॥


विद्वानन कै सभा सजै औ पतन होय हेन नंगा का।

मोरे देस कै शान बढै   औ बाढै मान तिरंगा का॥


बसुधैव कुटुंम्‍बं' केर भामना  बसी रहै सब के मन मां।

औ परबस्‍ती कै लउलितिया, रहै कामना जन जन मां ॥

देस प्रेम कै जोत जलै,    कहूं  मिलै   ठउर  न  दंगा॥

मोरे देस.........................


खेलै पढै बढैं  बिद्यार्थी,  रोजी  मिलै   जमानन  का।

रोटी औ सम्‍मान मिलै, हेन घर घर बूढ़ सयानन का॥

रामेश्‍वरं  मां चढत  रहै जल, गंगोतरी  के गंगा का।

मोरे देस कै ......................

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                           मैहर धाम  


मइहर है जहां विद्या कै देवी, विराजी माँ शारद शक्‍ति भवानी।

पहिलय पूजा करय नित आल्‍हा,औ देवी के वर से बना वरदानी॥

मइहर है जहा लिलजी के तट ,   मठ मह शिव हें औधड.दानी॥

ओइला मां मन केर कोइला हो उज्‍जर,लंठव ज्ञानी बनै विज्ञानी।

मइहर   है   जहा  संगम   है ,   सुर  सरगम  कै झंकार सुहानी॥

अइसा  पुनीत  य  मइहर  धाम कै, शत  शत वंदन चंदन पानी॥

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                          बिटिया

ठुम्मुक ठुम्मुक जाथी  इस्कूलै  ड्रेस पहिर के बइया रे।

टाँगे  बस्ता  पोथी  पत्रा  बिटिया   बनी     पढ़इया रे। ।


खेलै   चन्दा,   लगड़ी,  गिप्पी,  गोटी,  पुत्ता  -पुत्ती  ।

छीन भर मा  मनुहाय जाय औ छिन भर माही कुट्टी। ।

बिट्टी  लल्ला  का  खिसबाबै   ''लोल बटाइया रे''। ।


ठउर   लगाबै  अउजै  परसै  करै चार  ठे त्वारा।

कहू  चढ़ी  बब्बा  के कइयां  कहु अम्मा के क्वारा। ।

जब  रिसाय  ता  पापा  दाकै  पकड़ झोठइया रे।


बिन बिटिया के अंगना अनमन घर बे सुर कै बंसी।

बिटिया दुइ दुइ कुल कै होतीं मरजादा बड़मंसी। ।

हमरे  टोरिअन  काही   खाये   जा  थै  दइया रे।


भले  नही  भइ  भये  मा  स्वाहर पै न माना अभारु।

लड़िका से ही ज्यादा बिटिया ममता भरी मयारू। ।

पढ़ी  लिखी ता  बन  जई  टोरिया  खुदै  सहय्याँ रे।


कन्यन कै होइ रही ही हत्या बिगड़ि  रहा अनुपात।

यहै पतन जो रही 'हंस ' ता कइसा सजी बरात। ।

मुरही  कोख  से   टेर  लगाबै  बचा  ले मइया रे। ।

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                      शहीदन कै वंदना

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धन्न धन्न सौ बेर धन्न य देस कै पावन माटी।

हमरे पुरखन का प्रताप औ भारत कै परिपाटी। ।

 

कहय लाग भारत माता धन्न बहिनी डोर कलाई का।

जे सीमा मा संगीन लये दइन जीवन देस भलाई का। ।


धन्न कोख महतारी कै जे पूत दान दइन मूठी मा।

मातृभूमि के देस प्रेम का दूध पिआइन घूंटी मा। ।


धन्न धन्न वा छाती का जेहि एकव है संताप नही।

बलिदान पूत भा देस निता धन्न धन्न वा बाप कही। ।


धन्न धन्न वा येगुर काहीं  वा सेंदुर कै मांग धन्न।

ज्याखर भा अहिवात अमर वा नारी केर सोहाग धन्न। ।


उई भाईन कै बांह धन्न मारिन सुबाहु मरीची अस।

बइरी वृत्तासुर मरै का जे बन गें वज्र दधीची अस। ।


औ अपने अपने रक्तन से वन्दे मातरम उरेह दइन.।

जब भारत माता मागिस ता उई हँसत निछावर देह दइन। ।


बोली हर हर महादेव कै बोल ऊचें सरहद्दी मा।

औ बैरिन का मार भगाइन खेलै खेल कबड्डी मा। ।


धन्न उई अमर जबानन का जेहिं कप्फन मिला तिरंगा का।

जब राख फूल पहुंची प्रयाग ता झूम उचा मन गंगा का। ।


ताल भैरवी देश राग तब गूंजी घाटी घाटी।

धन्न धन्न सौ बेर धन्न या देस कै पावन माटी। ।

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         आपन बोली

महतारी अस लगै मयारू घूंटी साथ पिआई।

आपन बोली बानी लागय मानस कै चौपाई।।


भांसा केर जबर है रकबा बहुत बड़ा संसार।

पै अपने बोली बानी कै अंतस तक ही मार।।

काने माही झनक परै जब बोली कै कबिताई।

आपन बोली बानी लागय मानस कै चौपाई।।


समझैं आपन बोली बानी बोकरी भंइसी गइया।

नीक लगै जब लोक गीत अस गाबै कहूं गबइया।।

अपने बोली मा कोल दहकी लोरी टिप्पा राई।

आपन बोली बानी लागय मानस कै चौपाई।।


महकै अपने बोली माही गांव गली कै माटी।

आपन बोली महतारी के हांथ कै परसी टाठी।।

अपने बोली मा गोहरामै घर मा बब्बा दाई।

आपन बोली बानी लागय मानस कै चौपाई।।

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          टोरिया कहा है

बारजा  बचा  है  ओरिआ  कहाँ ही।

पिल्वांदा के दूध कै खोरिआ कहाँ ही।।


राशन कार्ड हलाबत तिजिया चली गै

कोटा बाली चीनी कै बोरिआ कहाँ ही।।


आजादी के अश्व मेध कै भभूत बची ही

गांधी के लोकतंत्र कै अजोरिआ  कहाँ ही।।


वा प्रदूषण कै पनही पहिरे मुड़हर मा चला गा

घर गाँव  के अदब कै  ओसरिआ कहाँ ही।।


नोकरी लगबामैं का कहि के लइ  गया तै

वा गरीब कै बड़मंसी टोरिआ कहाँ ही।।


सार अबाही खूंटा ग्यरमा औ अम्मा का पहिलय सुर

कामधेनु कै पामर वा कलोरिआ कहाँ ही।।


घर के सुख संच कै जे जपत रहें माला

वा पिता जी कै लाल लाल झोरिआ कहाँ ही।।

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 मजूर   [बघेली कविता ]


हम मजूर बनिहार बरेदी आह्यन लेबर लगुआ।

करी मशक्क़त तनमन से हम गरमी जाड़े कदुआ। ।


माघ पूस कै ठाही हो चह नव तपा कै दुपहरिया।

सामान भादौ के कादौ मा बे पनही बे छतरिया। ।

मिलब कहू हम पाथर फोरत करत कहू हरवाही।

खटत खेत खरिहान खान म काहू ताके पाही। ।

हम कहू का काम निकारी औ काहू के बंधुआ।


''कर्म प्रधान विश्व करी राखा ''कहि गें तुलसी दास।

कर्म देव के हम विश्कर्मा देस मा पाई त्रास। ।

शोषक चुसि रहे हे हमही अमर बेल की नाइ।

अउर चुहुकि के करै फराके गन्ना चीहुल घाई। ।

दुधिआ दातन मा बुढ़ाय गा हमरे गाँव का गगुआ।

 

हम पसीना से देस का सीच्यन हमरै किस्मत सूखी।

देस कोष मा भरयन लक्ष्मी घर कै लक्ष्मी भूखी। ।

घूंट घूँट अपमान पिअत हम गढ़ी प्रगति कै सीढ़ी।

मन तक गहन है बेउहर के हेन रिन मा चढ़ गयीं पीढ़ी। । 


फूंका  परा है हमरे घर मा तउ हम गाई फगुआ। ।

हम मजूर ------------


हमिन बनायन लालकिला खजुराहो ताज महल।

हमिन बनायन दमदम पालम सुघर जिहाज महल। ।

हमहिंन बाँध्यन नदिया नरबा तलबा अउर तलइया।

हमिन बनायन धमनी चिमनी लखनऊ भूल भुलइया। ।

हम सिसकत सीत ओसरिया माहीं धइ के सोई तरुआ।

 

कहै क त गंगा जल अस है पबरित हमार पसीना।

तउ ''कर्मनाशा ''अस तन है पीरा पाले सीना।।

बड़े लगन से देश बनाई मेहनत करी आकूत।

मेहनत आय गीता रामायन हम हन तउ अछूत। ।

छुआछूत का हइया दाबे देस समाज का टेटुआ।

हम मजूर ---


बिन खाये के गंडाही का है छप्पन जेउनार।

कनबहिरे भोपाल औ दिल्ली को अब सुनै गोहर। ।

जब जब माग्यन उचित मजूरी तब तब निथरा खून।

पूंजी पति के पॉय तरी है देस का श्रम कानून। ।

न्याय मांगे मा काल्ह मारे गें दत्ता नियोगी रघुआ।

हम मजूर ---------------------------------


 भले ठेस ठेठा कराह से हाँकी आपन अटाला।

पै हम करब न घात देस मा भ्रष्टाचार घोटाला। ।

जे खून पसीना अउंट के माड़ै रोटी केर पिसान।

हमी उराव है अइसन माई बाप कै हम संतान। ।

हमरे कुल मा पइदा नहि होंय डाकू गुंडा ठगुआ।

हम मजूर बनिहार बरेदी आह्यन लेबर लगुआ। ।

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         मोबाइल

सरासरीहन लबरी हिबै मोबाइल मा।

सुन्दर कानी कबरी हिबै मोबाइल मा। ।


क्याखर कासे प्यार की बातैं होती हैं

दबी मुदी औ तबरी हिबै  मोबाइल मा। ।


विस्वामित्र मिसकॉल देख बिदुराय लगें

अहा ! मेनका  परी हिबै  मोबाइल मा। ।


नई  सदी  के  हमूं  पांच  अपराधी हन

जाति गीध कै मरी हिबै  मोबाइल मा। ।


कोउ हल्लो कहिस कि आँखी भींज गयीं

काहू कै खुश खबरी हिबै  मोबाइल मा। ।


अब   ता   दण्डकवन   से  बातैं  होती हैं

श्री राम कहिन कि शबरी हिबै  मोबाइल मा। ।


''हँस ''बइठ  हें  भेंड़ा   भिण्ड    बताउथें

द्याखा कइसा मसखरी हिबै मोबाइल मा। ।

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        नेता जी

उइ कहा थें देस से गरीबी हम भगाय देब

गरीबी य देस कै लोगाई आय नेता जी।

गरीबी भगाय के का खुदै तू पेटागन मरिहा

वा तोहई पालै निता बाप माई आय नेता जी। ।

गरीबी के पेड़ का मँहगाई से तुम सींचे रहा

तोहरे निता कल्प वृक्ष नाइ आय नेता जी।

भाषन के कवीर से अस्वासन के अवीर से

वा तोहरे बोलिआय का भउजाई आय नेता जी । ।

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              जब से आपन गाँव।

शहर मा  जाके रहय लाग जब से आपन गाँव।

भरी दुपहरी आँधर होइगै लागड़ होइ गै छाँव। ।


 गाँवन कै इतिहास बन गईं अब पनघट कै गगरी।

 थरी कोनइता मूसर ज्यतबा औ कांडी कै बगरी। ।

गड़ा बरोठे किलबा सोचइ पारी आबै माव  ।


हसिया सोचै अब कब काटब हम चारा का ज्यांटा।

सोधई दोहनिया मा नहि बाजै अब ता दूध का स्यांटा। ।

काकू  डेरी  माही   पूंछै   दूध   दही   का     भाव।


 दुर्घट भै बन बेर बिही औ जामुन पना अमावट।

''राजनीत औ अपराधी ''अस सगली हाट मिलावट। ।

  हत्तियार  के  बेईमानी मा डगमग जीवन नाँव।


जब से पक्छिमहाई बइहर गाँव मा दीन्हिस खउहर।

उन्हा से ता बाप पूत तक करै फलाने जउहर। ।

नात परोसी हितुअन तक मां एकव नही लगाव।

 

कहै जेठानी  देउरानी   के  देख  देख   के  ठाठ  ।

हम न करब गोबसहर गाँव मा तोहरे बइठै काठ। ।

हमू चलब अब रहब शहर मा करइ कुलाचन घाव।

 

नाती केर मोहगरी ''आजा'' जुगये आस कै बाती।

बीत रहीं गरमी कै छुट्टी  आयें न लड़िका नाती। ।    

खेर खूंट औ कुल देउतन का अब तक परा बधाव।

 

ममता के  ओरिया  से  टपकैं   अम्माँ  केर  तरइना।

फून किहिन न फिर के झाँकिन दादू  बहू के धइना .। ।

यहै रंझ के बाढ़ मां हो थै लउलितियन का कटाव।

शहर मा जाके ----------------------------------------

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****************** चुगल खोर******************

हम करी चेरउरी चुगल खोर तुम सुखी रहा य देस मा।

 तुम बइठे नक्कस काटा औ सब जन रहैं कलेष मा। ।


हे अकरमन्न हे कामचोर सब काँपैं तोहरे दांव से।

कड़ी मशक्कत के कर्ता तक भागै तोहरे नांव से। ।

तुमसे सब है कारबार जस धरा धरी है शेष मा।


हे चापलूस चउगिर्दा हेन तोहरै तोहार ता धाक हिबै।

तोहरेन चमचागीरी से हमरे नेतन कै नाक हिबै। ।

तुम कलजुग के देउता आहू अब माहिल के भेष मा।


हे !महा दोगला हे अकही !!अकहापन कै पूंजी तुम।

बड़ा मजा पउत्या है जब आने कै करा नमूजी तुम। ।

गद गद  होय तोहार आतिमा  जब कोउ परै कलेस मा।


तुम  'मनगवां के कुकूर कस ' चारिव कइती छुछुआत फिरा।

मुँह देखी मा म्याऊ म्याऊ औ पीठ पीछ गुर्रात फिरा। ।

सगले हार तोहार असर है देस हो य परदेस मा।


केत्तव होय मिठास चाह छिन भर मा माहुर घोर द्या।

तुम भाई हितुआ नात परोसी का आपुस मा फोर द्या। ।

तोहरे भीरुहाये मा पति -पत्नी तक चढ़ गें केस   मा।


हे मंथरा के भाई तुम जय हो हे नारद के नाती।

नाइ दुआ करत बागा बे डाक टिकस कै तुम पाती। ।

हे राम राज के 'धोबी 'तुम घुन लाग्या अवध नरेश मा ।

हम करी चेराउरी चुगल खोर तुम सुखी रहा य देस मा। ।


हेमराज हंस -- भेड़ा मइहर   

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----        हम सरबरिया बाम्हन आह्यन

हम सरबरिया  बाम्हन आह्यन मिलब साँझ के हाउली मा।

मरजादा का माजब  धोऊब नरदा नाली        बाउली मा। ।

होन मेल     जोल भाई  चारा कै        साक्षात्  हिबै तस्बीर।

नक्सल्बादी असम समिस्या औ नहि आय झंझट कश्मीर। ।

अगड़ा पिछड़ा आरछन का लफड़ा  बाला  नहि  आय  भेद।

जात -पात अउ छुआछूत के ऊंच -नींच  के नहि आय खेद। ।

समता मिलै हँसत बोलत होन पैग भजिआ लपकाउरी मा। ।


एक नाव एक भाव मा बइठे   मिलिहै राजा रंक औ फक्कड़।

बड़े -बड़े परदूसन प्रेमी मिलिहै  सुलगाये  धुँआ औ धक्कड़। ।

रक्शा बाले  -नक्शा बाले   शिक्षा   स्वस्थ्य    सुरक्षा   बाले।

बने  पुजारी   सरस्वती  के अद्धी   पउआ    बोतल   घाले। ।

बड़े   शान से भाषन   झारत   मद्ध निषेध   के  रैली  मा। ।


भले दये अदहन  चुलबा  मा  ताकै  टोरबन  कै  महतारी।

औ हमार या अमल  सोबाबै रात के लड़का बिना बिआरी। ।

हमही चाही रोज साँझ के मुर्ग मुसल्लम पउआ अद्धी।

शहर गॉव मा  लूट मार कई देइ ढ़ील कनून कै बद्दी। ।

हम बिन सून  ही राजनीत जस खरिहान कुरईली मा। ।


महुआ रानी पानी दय दय हमही बनै दिहिस लतखोर।

पहलमान अस अकड़ रहे हन भले हबै अंतस कमजोर।।

बीस बेमारी  चढ़ी  है  तन  मा तउ नही या छूटै ट्याव।

मदिरा तजा विक्ख की नाइ डिग्गी पीटा गांव -गांव। ।

नही  पी जयी  या  समाज  का बगाई कौरी कौरी मा।

चला करी प्रण आइस  भाई कोउ जाय न हौली  मा। ।

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             करा खूस  

उंइ कहिन आज हमसे घर मां,अब तुमहूं त कुछ करा खूस।

देखत्‍या  है उनही  तिपैं  ज्‍याठ,  तुम  हया जड़ाने मांघ पूस॥

अरे कहूं रोप एकठे बिरबा, आपन  फोटो खिंचवा लेत्‍या।

औ पर्यावरणी प्रेमिन मां,  अपनौ नाव लिखवा लेत्‍या॥

पुन रेंजर से कइ सांठ गांठ, ठेका लइ लेत्‍या जंगल का।

जब अपनौ टाल खदान चलत,परसाद चढत हर मंगल का॥

गलिहारव हेरत रहै छांह,   औ गोरूआ हेरैं घास फूस।

अब तुमहूं...........................

विद्युत मंडल बालेन से , तुमहूं हितुआरथ कइ लेत्‍या।

पुन चलत ठ्‌यसर मोटर चक्‍की,लुग्‍गी से स्‍वारथ कर लेत्‍या॥

कुछ लइनमैन का दइ दीन्‍या,त व बिजुली अस गोल रही।

औ अपनेव बिजली चोरी कै,दबी मुदी सब पोल रही॥

जब अधिकारी दउरा करिहैं,त वहै बनी आपन जसूस।

अब तुमहूं......................

बन जात्‍या कोटेदार तुहूंकइ जोर तुगुत कउनौ ओठरी।

करत्‍या पुन कालाबाजारी तुम उचित मूल्‍य के बोर्ड तरी॥

तेल चिनी औ चाउर से, जब चकाचक्‍क आनंद रहत।

औ सहबौ का थक्‍की भेजत्‍या, ता उनहूं का मुंह बंद रहत॥

सब बनगें कोटेदारी से,  का तोंहरेन दारी परा उूंस।

अब तुमहूं.......................

तुमहूं ता तन से हया उजर,  मन भले हबै सांमरपानी।

अपनेन ख्‍वांपा से शुरू करा, उतिना पहिले अपनै छान्‍ही॥

 सरमन'कै भगती छ्‌वाड़ा, सह पइहा न कमरी का भार।

भाईन का हीसा हड़प हड़प, होइ चला चली पहिले निनार॥

जरजात लिखा ल्‍या नामे मां पटवारी का लै दै के घूंस।

अब तुमहूं त कुछ करा खूस॥

गीता कुरान औ बाइबिल का, चल कउनौ चाल लड़ा देत्‍या।

देस  भक्‍त  के पोथी  मां  तुम  अपनौं  नाव  चढा  लेत्‍या॥

भाईचारा  का बिख दइके,  दुध पिअउत्‍या दंगन का।

पर्दा का पल्‍ला छाड़ा,  है नओ जमाना नंगन का॥

तुष्‍टीकरण के पुस्‍टी माही, कौमी एकता का जलुस।

अब तुमहूं.......................

तोहरव बिचार घिनहे सांकर, औ कपट नीत मां दोहगर हा।


सिंघासन के पण्डन  कस तुम भितरघात मा पोहगर हा॥ 


तुम दंदी फन्दी  फउरेबी,  औ  चुगुलखोर  के सांचा  हा।


मुंह देखी भांषन गीत पढै मा, तुम चमचन के चाचा हा॥


चोर  हया तुम कवियन अस, औ पत्रकार कस चापलूस।


अब  तुमहूं  त  कुछ  खूस,    अब  तुमहूं  त कुछ खूस॥


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   भइलो चलें करामय जांच

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जब उंइ खाइन मिला न आरव।  हर गंगे।

हमरे  दारी  झारव  झारव  ॥  हर गंगे।


कूटत रहें रोज उंइ लाटा।  हर गंगे।

हमरे दारी लागैं डांटा  ॥  हर गंगे।


पांच साल खुब किहिन तरक्‍की।हर गंगे।

बोर ठ्‌यसर औ लगिगै चक्‍की॥हर गंगे।

 

दिहिन न हमही ध्‍याला झंझी।हर गंगे।

अब हिसाब कै मांगै पंजी॥हर गंगे।


अब य ओसरी आय हमार।हर गंगे।

अब तुम सेंतै करत्‍या झार॥हर गंगे।


भयन संच मां जब हम पांच।हर गंगे।

भइलो चलें करामय जांच॥हर गंगे।


जादा तुम न करा कनून।हर गंगे।

चुहकैं द्‌या जनता का खूंन॥हर गंगे।


मुलुर मुलुर द्‌याखा चउआन।हर गंगे।

हम कूदी तुम ल्‍या बइठान॥हर गंगे।


होइगे भइलो सत्तर  साल।हर गंगे।

हमूं बनाउब ढर्रा ताल॥हर गंगे।

 

जब आंगना मां होइगै नाच।हर गंगे।

त भइलो चलें करमय जांच॥हर गंगे।

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                            हिन्दी

वीर कै गाँथा लगी जो रचैं औ 'जगनिक 'के आल्हा का गायगै हिन्दी।

कब्बौ बनी 'भूखन 'कै बानी त वीरन का पानी चढ़ाय गै हिन्दी। ।

 हाथे परी 'सतसय्या 'के ता वा 'सागर मा गागर 'भराय गै हिन्दी।

बुढ़की लगाइस 'सूर 'के सागर ता ममता मया  मा नहाय गै हिन्दी। ।


'रसखान 'के क्वामर क्वामर छन्द औ मीरा के पद काही ढार गै हिन्दी।

भक्ति के रंग मा लागी रंगै तब भाषा लोलार पिआर भै हिन्दी। ।

बीजक साखी कबीर के व्यंग्य पाखण्डिन का फटकार गै हिन्दी।

 औ मासियानी मा तुलसी के आई ता 'मानस 'अगम दहार भै हिन्दी। ।


हिंठै लगी जब 'पंत 'के गाँव ता केत्ती लगै सुकुमार य हिन्दी।

हरिचंद ,महावीर ,हजारी ,के त्याग से पुष्ट बनी दिढ़वार य हिन्दी। ।

निराला ,नागार्जुन ,के लेखनी मा भै पीरा कै भ्याटकमार य हिन्दी।

रात जगी जब ''मुंशी ''के साथ ता हरिया का भै भिनसार य हिन्दी। ।


भारत माता के कण्ठ कै कण्ठी औ देस कै भाषा लोलार  हिन्दी।

लोक कै   बोली औ  भाषा सकेल के लागै विंध्य पहार य हिन्दी। ।

छंद ,निबंध ,कहानी,औ कविता से लागै सुआसिन नार य हिन्दी।

अपने नबऊ रस औ गण शक्ति से कीन्हिस सोरहव सिगार य हिन्दी। ।

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हमरे भारत देस मा कबिता बड़ी लोलार। 

छत्रसाल राजा बने कबिता केर कहार।।


किहिस  सनातन सब दिना, जन मंगल का गान। 

प्राणी  मा  सद भावना,   बिस्व   केर    कल्यान।।


राघव मरजादा दिहिन, औ माधव जी कर्म।

दुइ लीखन मा चलि रहा,सत्य सनातन धर्म।।  


उनही सौ सौ नमन जे कीन्हिन जीबन हूम। 

बंदे मातरं बोल के गें फाँसी मा झूम।। 

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जिनखे माथे पूर भा आजादी का जग्ग। 

हम भारत बासी हयन उनखर रिनी कृतग्ग।। 


बिटिआ बेदन कै  ऋचा साच्छात इस्लोक।

दुइ कुल का पामन करइ अउ साथै मा  कोंख।।


रहिमन पनही राखिये,बिन पनही सब सून।

दिल्‍ली से है  गांव  तक, पनही  का कानून॥

       

गोबर से कंडा बनै, औ गोबरै सेे गउर।

आपन आपन मान है,अपने अपने ठउर॥

       

**पर्यावरण  के दोहा **************

 परयाबरनी प्रेम कै देखी भारतीय खोज। 

अमरा के छहियां करी अपना पंचे भोज।। 

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पीपर  मा  बसदेव  जू  बधी  बरा के सूत। 

तुलसी  जू  कै  आरती  आमा मानैं पूत।। 

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नीम बिराजैं सीतला औ जल बरुन का बास। 

परयाबरन  मा  पुस्ट  है  भारत का बिस्वास।।

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हमरे  भारत  का  रहै  चह  कउनौ  तेउहार।

सब दिन हम पूजत रह्यन बिरबा नदी पहार। ।

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दादू के सुख संच मा जे मानय आनंद। 

अम्मा अस कउनौ नहीं दुनिआ का संबंध।। 

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अम्मा अपने आप मा सबसे पाबन ग्रंथ। 

माता से बढि के नही कउनौ ज्ञानी पंथ।। 

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हा हजूर हम गॉव के शुद्ध देहाती ठेठ। 

अपना अस काटी  नहीं हम गरीब का पेट। । 


बब्बा जी कीन्हिन रहा खसरा केर अपील।

नाती तक पेसी चली बिदुराथी तहसील।।  


बड़े अदब से बोलिये, उनखर जय जय कार। 

गांव- गांव  मा  चल  रही , गुंडन कै सरकार।।

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चह जेही थुर देंय उइ ,याकी कहैं कुलांच। 

नेता जी के नाव से, अयी न कऊनव आंच। ।

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जेही सब मानत रहें जादा निकहा सूध।

ओखे डब्बा म मिला सबसे  पनछर  दूध।।


साहब सलाम औ पैलगी, गूंजै राम जोहर। 

अबहूँ अपने  गाँव मा,  बचा  हबै   बेउहार। । 

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देस मा  भ्रस्टाचार का, ह्वाथै यतर निदान।

जइसा जींस पहिर के काटै फसल किसान।।


बीस जघा कर्जा  किहिस, तब होइ सका प्रबंध। 

अपना  का  आबा   नहीं,   नेउता    मा  आनंद।।


खेत बिका कोलिया गहन बिकिगा झुमका टाप।

पट्टीदार    बिदुराथें    सिसकै    बिटिअय   बाप।।  

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ओतुन परबस्ती करा , जेतू कूबत पास।

परोपकार मा चला गा ,भोले का कैलास।। 

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पहिले  प्रेम  प्रसंग  का ,खूब  भा  लोकाचार।

 फेर ओही लुच्ची  कहिस ,वा ओहि दहिजार।। 


पुष्पवाटिकै मा मिली, सहज प्रीत का नेम।

सुरपंखा हेरत फिरय, पंचबटी मा प्रेम।।


कहिस कुलांचै धरम  का, दिहिस आतिमा रोय।

जइसा  कउनव  बाप कै, बिटिआ भागी होय।। 


लेत  रहें  जे थान  के,  लम्बाई  कै नाप।

अर्ज देख लोटय लगा,उनखे छाती सांप।।

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 सुनतै जेखे नाव का, जांय मुगलिया कांप।

भारत  के  वा  बीर हैं,  महराणा  परताप।।


भ्रस्टाचार मा डूब गा, जब मगधी दरबार।

धनानन्द  सैलून मा,  लगें  बनामय   बार।।


कहिन फलाने हम हयन, पढ़े लिखे भर पूर।

पै अब तक आई नहीं, बोलय केर सहूर।।


भारत पूजिस सब दिना,रिसी कृसी के साथ।

एक हाथे मा शास्त्र का, शस्त्र का दूजे हाथ।।

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दुनिया मा सब दिन लड़ें, धरम औ रीत रिबाज। 

शाकाहारी    सुआ    के,   बीच   रहै  न   बाज।।  


हमी  न   नजरा  तुम  यतर  दरबारी  सरदार । 

दुइ कउड़ी के हयन  पै मन के  मालगुजार। । 


किहिन मजुरै देस का ,सबसे ज्यादा काम। 

तउअव जस मानै नहीं ,मालिक नामक हराम।। 


दहसत माही कलम ही, कागद करै रिपोट।

राजनीत कब तक करी, गुंडन केर सपोट। । 


नेता  जी  के  नाव  से , उभरै  चित्र   सुभाष।

अब के नेता लागि रहें, जइसा नहा मा फास।।


 

गांव गांव मदिरा बिकै , दबा शहर के पार।

कउने सब्दन मा करी अपना का आभार। ।


सुनिस घोसना कापि गा, थर थर बपुरा पेण्ट।

खीसा  का  बीमा  करी , जेब  कतरा  एजेण्ट।।  



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पबरित परसाद भंडासराध कइ रहे हें।।

 जे मंदिर कै हमरे खंडित मरजाद कइ रहे हें।  पबरित   परसाद    भंडासराध   कइ  रहे  हें।।  उनहीं   पकड़  के  सीधे  सूली  मा  टांग  द्या  हमरे  धर...