नल तरंग बजाउथें बजबैया झांझ के।
देश भक्ति चढ़ाती फलाने का साँझ के।उनही ईमानदार कै उपाधि दीन गै
जे आँधर बैल बेंच दीन काजर आँज के।
बघेली साहित्य -का संग्रह हास्य व्यंग कविता गीत ग़ज़ल दोहा मुक्तक छंद कुंडलिया
श्री शिवशंकर सरस जी, बोली के चउमास। उनसे छरकाहिल रहैं, तुक्क बाज बदमास।। सादर ही सुभकामना, जनम दिना कै मोर। रिमही मा हें सरस जी , जस पा...