बघेली साहित्य -का संग्रह हास्य व्यंग कविता गीत ग़ज़ल दोहा मुक्तक छंद कुंडलिया
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गुरुवार, 23 जुलाई 2020
मंगलवार, 14 जुलाई 2020
सोमवार, 20 जनवरी 2020
हम सामर तैं गोर फलनिया rimhi kavita
तै लगते इन्दौर फलनिया
हम सामर तैं गोर फलनिया।
बड़ी मयारू मोर फलनिया। ।
जीवन के ताना -बाना कै ।
तैं सूजी हम डोर फलनिया। ।
हम रतिया भादव महिना कै ।
तैं फागुन कै भोर फलनिया। ।
रिम झिम रिम झिम प्रेम के रित मा ।
हम मेघा तैं मोर फलनिया। ।
हम हन बिंध अस ठगे ठगे ।
तैं लगते इन्दौर फलनिया। ।
हिरदय भा कोहबर अस बाती ।
जब हंस से भा गठजोर फलनिया। ।
शनिवार, 12 अक्तूबर 2019
मुक्तक
कोऊ सड़क कोउ पट्टी खाय गा।
कोऊ बोरा कोऊ कट्टी खाय गा।।
केत्ती घिनही भूंख बढी मोरे देस मा
कोऊ शौचालय सहित टट्टी खाय गा।। 🌻🌻🌻🌻🌻
वा बड़ा हुसिआर है नारा बेचा थै।
चोरन का सरदार है पै तारा बेंचा थै।।
हम ओखे शील सोहबत का प्रनाम करी थे वा भाई चारा काटैं बाला आरा बेंचा थै।।
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
रविवार, 13 जनवरी 2019
मंगलवार, 8 जनवरी 2019
मुक्तक
शनीचर चढ़ा त कुसाइत गेर लेथी।
जनता से जुड़य त शबरी बेर दे थी।।
पुन चह करेजा धइ द्या निकार के
रइय्यत राम राजव मा बगाबत हेर ले थी।।
रविवार, 6 जनवरी 2019
शनिवार, 22 सितंबर 2018
मंगलवार, 18 सितंबर 2018
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पहिले जब खड़े होकर लघु शंका करना निषिद्ध माना जाता था। तब की बात है।एक बालक खड़े होकर लघुशंका कर रहा था। गांव के एक बुजुर्ग ने देखा तो उसे...
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छठ सातैं की भमरी देखा।
छठ सातैं की भमरी देखा। तोहसे या न थम्हरी देखा।। एक बाल्टी पानी खातिर उचत भरे कै जमरी देखा।। सउंज उतार रही तुलसी कै या गंधइ...