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बुधवार, 26 फ़रवरी 2025

BAGHELI DOHA KHAND--- दोहे ही दोहे

 दोहा खंड 
दोहा खंड 
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हे ! माता आसीस दे हम बालक हन तोर। 
सबके जीबन मा रहै, बुद्धी केर अजोर। । 
 
हे जग जननी शारदे, तहिन रखइया लाज।   
तोरे क्वारा सकार हो, औ अंचरा मा सांझ ।।  

गूंजय मइहर धाम मा भगत ऋचा श्लोक। 
हरतीं मइया सारदा भक्त के संकट सोक।।

दुनिआ  मा  हो  शान्ती, हे ! माता   स्कंद। 
हे ! दुरगा दुरगति हरा, बाढ़य  प्रेम आनंद।।  

भइंसासुर  का पाप  है, देस मा  चारिव  खूंट।
बहिनी बिटिआ पी रहीं, नित अपमान का घूंट।।

हे महिसासुर  मर्दनी, अपनै  से  एक आस।
अत्याचारिन का करा, तुक तुक हरबी नास।।

नारी सूचक गालियां दिन भर देते साठ।
वे भी सादर कर रहे दुर्गा जी का पाठ।।

कुंभ निकुंभ ता निपट गें, बचगें मानस पूत। 
हे ! दुर्गा  उनही  हता,  है  बिनती  कहनूत।। 

लोक  पर्ब नवरातरी, सक्ति आराधन   केर। 
बहिनी बिटिआ चल दिहिन, पूजैं देबी  खेर।।

पुजहाई  टठिया  लये, मन  मा  भरे  उराव। 
भक्ती  माही  लीन है,  नगर  देस औ  गांव। ।

कोऊ बदना बदि रहा, सिद्ध काहु का काम। 
कलसा लै  जलसा चला,  पाबन मइहर धाम।। 

अचरा मां ममता धरे, नयनन धरे सनेह।
माँ शारद आशीश दे,शक्‍ति समावे देह। । 

नारी के सम्मान से,सम्बत कै सुरुआत। 
दुनिआ का संदेस है, भारत का नवरात। । 

जय जय अमर सहीद कै, आजादी के मूल।
अपना का अर्पित करी,आंखर आंखर फूल।। 
  
जिनखे  माथे  पूर भा,   आजादी   का   जज्ञ।
हम भारत बासी हयन, उनखर रिनी कृतज्ञ।।

प्रेम भरी पोखरी रही, कोउ दिहिस घघोय। 
जस बिजली के तार का, जम्फर टूटा होय।। 

पहिले लड़ीं गिलास खुब, नेम प्रेम सम भाव। 
फेर गारी गुझुआ  भयीं, होय  लाग जुतहाव।।
 
लिपटिस पीपर से कहिस, है उपयोग हमार। 
पै  भारत मा  हर  जघा,  पूजा  होय   तुम्हार।। 

पीपर बोला  सुन सखा,  हम  भारत   के बीज।
हम हन मंदिर अस हिया, औ तुम जस टाकीज।। 

लेत  रहें  जे थान  के,  लम्बाई  कै नाप।
अर्ज देख लोटय लगा,उनखे छाती सांप।।

भला बताई आप से, कउन ही आपन सउंज।
अपना बोतल का पियी, हम पी पानी अउंज।।

न मात्रा  का  ज्ञान  है, न हम  जानी वर्ण। 
बिद्वानन कै चरण रज , लोहा कीन्हिस  स्वर्ण।। 

जेखे  मूड़े मा रहय,  अपना का आशीष  ।
वा बन जाय कनेर से , गमकत सुमन शिरीष।  । 

तुम रहत्या जब साथ ता , पता चलय न बाट। 
औ रस्ता छोह्गर लगै, मानो मोहनिया घाट।। 

 भ्रस्टाचार मा डूब गा, जब मगधी दरबार।
धनानन्द  सैलून मा,  लगें  बनामय   बार।।

कहिन फलाने हम हयन, पढ़े लिखे भर पूर।
पै अब तक आई नहीं, बोलय केर सहूर।।

भारत पूजिस सब दिना,रिसी कृसी के साथ।
एक हाथे मा शास्त्र का, शस्त्र का दूजे हाथ।।

सुनतै जेखे नाव का, जांय मुगलिया कांप।
भारत  के  वा  बीर हैं,  महराणा  परताप।।

जे आँख मिलाइस सुरिज से भा अपंग वा गिद्ध। ।
जो जटायु अस रहत ता जग मा होत प्रसिद्ध।।

सब दिन लड़ें गरीब हेन लोक धरम का जुद्ध।
पइ  महलन के कोंख से आये सब दिन बुद्ध।।

भारत के पहिचान हें राम बुद्ध औ कृष्न।
इन माही स्वीकार नहि कउनौं क्षेपक प्रश्न।।

पूंछ रही ही दलन से, लोक सभा कै ईंट। 
केतने  दुष्कर्मी  निता, है आरक्षित सींट।।

केबल  हबै  चुनाव तक, जातिबाद का ढोंग। 
जनता ही उनखे निता , चेचर अउर चिपोंग।।  

अपने   छाती   हाथ  धर,  खुदै   करा  महसूस। 
को ठीहा मा बइठ के, लिहिस न जात से  घूंस।। 

सूरज नेता बिस्व का, सबका दे उजिआर।
पै उल्लू  गरिआ रहें, उनही  रात  पिआर।।  

सगले   उल्लू   समिट  के,  दिन   का  कहैं  कुलांच।
कहिन कि अब हमहूं  करब, सुरिज के रथ कै जाँच।। 

राहू  से   केतू   कहिन,  हम  पंचे   सब      एक। 
चला चली मिल के कारी, खुद आपन अभिषेक।। 

अबै ता  चीन्हय दूर  से, जाति बाद का जिंद। 
फेर चुनाव के बाद मा , उनखे  मोतियाबिंद।। 

हर  चुनाव मा बजा थै, जातबाद का गाल। 
फेर कोउ हिरकै नही, पूछय खातिर हाल।।

राष्ट्रबाद  से  सुरू भा ,जाति बाद मा बंद। 
केत्ते सुर बदलय परें, गामय का एक छंद।।

कोउ मुँह ओरमा लइस, कोउ भरा उराव। 
सबसे जबर अचूक है, लोकतंत्र का दाव। । 

 भारत  का  गउरव बढ़ा,  बढ़ा  तिरंगा मान। 
अभिनंदन दुनिया करै, जय खगोल बिज्ञान।।
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अबै गरीबन के लगी टप टप अंसुअन धार।
अइसा मा कइसा लिखी पायल कै झंकार।।

रहा गरीबन से सदा बोटन का बेउहार।
दूबर कै एकादशी मोटन का तेउहार।।

हमी  न   नजरा  तुम  यतर  दरबारी  सरदार । 
दुइ कउड़ी के हयन  पै, मन के  मालगुजार। । 

जबसे वा कनमा भरिस हिरनकच्छ के कान। 
 तबसे प्रेम  प्रहलाद  कै  खतरे  मा  ही  जान। । 

थइली  ही  उनखे निता, रइली  हमरे नाम।
कइसा हीसा बाँट के, दीन्ह्या हमही राम।।
 
चह जेखर जलसा रहै, मिलैं गरीबय थोक। 
हर रइली  के बाद मा, आँसू पीरा सोक। । 
   
खेत बिका कोलिया गहन बिकिगा झुमका टाप।
पट्टीदार    बिदुराथें    सिसकै    बिटिअय   बाप।।

येतू  दीन्हिस  देस  का,  आभारी  है  हिंद ।
तउअव  रोजी के निता , तरसै बपुरा बिंध । ।

देस  मा  भ्रस्टाचार  का ,  ह्वाथै  यतर निदान।
जइसा जीन्स पहिर के , काटै फसल किसान। ।

ओतुन परबस्ती करा , जेतू कूबत पास। 
परोपकार मा चला गा ,भोले का कैलास।। 

लिहे किसनमा ठाढ़ है, खेते कै फ़रियाद।
बिजली घाई गोल ही, मोरे बीज कै खाद।।

जे गरीब तक से लिहिन, अपने पुरबी घूंस।
देशभक्ति के सभा मा, ओखर जबर जलूस।।
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राघव के  दरसन   निता, आँखी  रहीं   बेचैन। 
जब मंदिर के पट खुलें, छलक परे दोउ नैन।।

गदगद होइगै आतिमा ,देख अबध पुर पर्व। 
सगले दानव दुखी हें , मानव का है गर्व। । 

जुग जलसा भा अबध  मा, उइ लीन्हिन मुँह फेर ।
तबय  कुसाइत  आय गै,  लिहिस   सनीचर  गेर।।

आदि  पुरुस  जहाँ मनू भें, करिन सृष्टि निरमान।
अजोध्या पाबन धाम है , मनुज का मूल अस्थान।।   

जब परछन भै अबध कै, ता उइ रहें रिसान। 
अब सत्ता  का स्वाद है,  खट्टा करू कसान।।  

जे जनता  के  भाबना, केर  करी  तउहीन। 
ता फुर माना राम दै, रही  न कउनव दीन।।  

भले लगा लें जोर सब, उनही दई तिलाक। 
करके चूर घमंड का, टोरिहै राम पिनाक।। 

कागा से कोयल कहिस,  दिहा काहे खुरखुन्द। 
तोहरव  प्रिय बोली लगी,  बन जा काग भुसुंड।। 

जब  मतलब  पूछय  लगें, रामराज्ज का मित्र। 
हम निकार के धइ दिहन,अबधपुरी का चित्र।।

पूरी  दुनिया   कर  रही,  राम  राम का जाप। 
दृश्य देख कुछ जन दुखी ,उनखे लोटय सांप।। 

कालनेमि पुन  देश मा, रचे हें  मायाजाल।
जनता कै   रक्षा  करा,  हे अंजनि के लाल।।

दुनिया मा सब दिन लड़ें, धरम औ रीत रिबाज। 
शाकाहारी    सुआ    के,   बीच   रहै  न   बाज।।  

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दुनिआ  मा  हो  शान्ती, हे ! माता   स्कंद। 
हे ! दुरगा दुरगति हरा, बाढ़य  प्रेम आनंद।। 

गुँजय मइहर  धाम मा ,भगत ऋचा श्लोक। 
हरतीं मइया सारदा, भक्त  के संकट सोक। । 

श्रद्धा औ संगीत का, सपना भा साकार।
नल तरङ्ग संतूर संग, बाजैं लाग सितार।।

 नवरात्रि 
जबा देबारे बोबरि गा होय हूम अस्थान।
संझा से लै रात तक मढ़ई भगत कै तान।।
 
पण्डा बइठ देवार मा बजै नगरिया झांझ।
हांक परी ओच्छा मोरी गूँजे नौ दिन साँझ।।

गूजै मइहर धाम मा स्वस्ति ऋचा श्लोक।
गद्गद ही माँ शारदा पुलकित तीनों लोक। ।

पावन मइहर धाम मा नव रातर का पर्व।
शप्तशती बांचै लगे सामवेद गन्धर्व। ।

हम आपन पूजा करी औ उइ पढ़ै नमाज।
ईश्वर कै आराधना अलग अलग अंदाज।। 

गाँव  -गाँव   बोबा  जबा  पंडा  दे थें हूम।
लोक धरम कै देस  मा चारिव कईती धूम। ।

बाना  खप्पड़  कालका  जबा  देवारे हांक।
बिन प्रचार के चल रही लोक धर्म कै धाक। ।  


आठैं   अठमाइन   चढ़ै  खेर  खूंट  का   भोग।
जलसा का कलसा धरे ''राम जनम का जोग ''। ।

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भमरा तक सूंघय लगा अब  चम्पा का फूल। 
अइसा मउसम मा भला कासे होय न भूल।।
 
ठूठन मा फुटकी कली यतरन आबा जोस।
तन कै हालत देखि के मन का रह्यान मसोस ।।

छोहगइली लये चांदनी, जागी सगली रात। 
नदी तीर गोठत  रहा, चन्दा रोहणी साथ  । । 

जब से पोखरी ताल का, होइगा पानी थीर। 
ता चकबा निरखैं  लगा, चंदा  कै  तसबीर।।  

जे  कबहूं  घोरिस नहीं, पानी माही हींग।
भा निनार ता जम गयीं, ओखे मूड़े सींग।। 

नल  कुबेर  के हिदय  मा, काहे उचय  न  टीस। 
वा एक तो बड़मंसी  लिहिस, औ मागै बकसीस।। 

भला बताई आप से, कउन ही आपन सउंज।
अपना बोतल का पियी, हम पी पानी अउंज।।

संकट मा भारत दइस, सरना गत का टेक। 
तस्लीमा  नसरीन  हों, चाह  हसीना  सेख।। 

हमरे भारत मा हबै, मउसम केर बिभाग।  
होय  देबारी देस मा, ता वा बताबय फाग।। 

लेत  रहें  जे थान  के,  लम्बाई  कै नाप।
अर्ज देख लोटय लगा,उनखे छाती सांप।।

चिलचिलात या घाम मा, मिली कहूं न छाह।
चिटका फोरत चली गय, एक पिआसी डाह।।

राजमार्ग   मा  चल  रहें ,  बड़े  बेढंगे   यान। 
चालक काही है नहीं, अपर डिपर का ज्ञान।। 

चाहे  कोऊ  कवि  लिखय,  चह  शायर  श्रीमान। 
सब्द सक्ति जब तक नहीं, तब तक नही  प्रमान।।  
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अउर कहूं देखे हयन, अइसा सिस्टचार। 
गहगड्डव है आन के, कहूं पारी ही दार।।

दहसत माही कलम ही, कागद करै रिपोट। 
राजनीत कब तक करी, गुंडन केर सपोट।। 

पुरखन के सम्मान का पितर पाख है सार। 
जे हमका जीबन दइन उनखे प्रति आभार।। 

अम्मा अपने आप मा सबसे पाबन ग्रंथ। 
माता से बढि के नही कउनौ ज्ञानी पंथ।। 

दादू  के सुख  संच मा, जे  मानय  आनंद।
अम्मा अस कउनौ नहीं, जीबन का संबंध।।

रिमझिम बदरी कइ रही भींजै नगरी गाँव। 
मानो भादव कइ रहा कान्हा जनम उराव।। 

खजुलैयां कै सुभकामना, सादर राम जोहार। 
नेम- प्रेम से सब रहैं ,  समता का   तेउहार। ।

अपने  रीत  रिबाज  का,  गांव  समेटे  गर्व । 
पुरखन  कै  थाती  धरे, मना  रहा  है  पर्व ।। 

खजुलइयां लइके मिला, हमरे गांव का नेम। 
द्यखतै जिव हरिआय गा,  परिपाटी का प्रेम।। 

हाथे मा मेंहदी रची , कर स्वारा सिगार।
गउरी पूजैं का चली ,सजी सनातन नार। ।

खूब फलिहाइस रात भर, दिन निर्जला उपास। 
देखा  भारतीय  प्रेम के ,  अंतस  केर मिठास ।। 

जबसे उंइ डेहरी चढ़ीं ,  छूट हिबय सरफूंद ।  
हमरे  जीबन के  दिहिन , सगले अबगुन मूंद।।    

राबन जब से बना है, उनखे दल का ब्रांड।
तब से दुनिया त्रस्त ही, हलकान ब्रम्हाण्ड।।

राबन जब राजा बना, दीन्हिस बनै कानून। 
जेखे टेक्स कै जर नहीं, पील्या वाखर खून।। 

अपना का शुभकामना, सादर करी उराव।
धन नेतन के नाव है, तेरस अपने नाव।।

दीपदान कै लालसा , अउ मन मा अनुराग।
चित्रकोट कोउ जा रहा , कोऊ अबध प्रयाग।।

भाई चारा  मा रगा , चला लगाई रंग। 
अपने भारत देस मा बाढय प्रेम उमंग।। 
 
अकहापन  औ  इरखा राई चोकरा नून। 
होरी मा जरि जाय सब बैर बिरोध कै टून।।
 
सुखी संच माही रहय आपन भारत देस। 
प्रेम पंथ प्रहलाद का न कोउ देय कलेस। । 
 
अंग अंग पूंछय लगा मन मा लिहे मिठास। 
कबै अयी  वा सुभ घरी जब टूटी उपबास। । 
 
कथा पुरानन कै हमी दीन्हे ही मरजाद। 
जली आग मा होलिका बचें भक्त प्रह्लाद। । 
 
खेतन मा पाकै  फसल घर मा आबै अन्न। 
होरी परब मनाय के खेतिहर लगैं प्रसन्न। । 

शासक जब कीन्हिन बहुत, सोसन अत्याचार। 
तब ईस्वर   का  लें परा, फरस  राम  अबतार।। 
 
दुस्टन काही काल अस, औ सज्जन का संत ।
श्री भृगु नंदन परसुधर , स्वाभिमान  भगमंत  ।।

भारत पूजिस सब दिना,रिसी कृसी के साथ।
एक हाथे मा शास्त्र का, शस्त्र का दूजे हाथ।। 

जुग नायक ता भे नहीं, कबौं जात  मा कैद। 
उइं  बीमार समाज के, हें सुभ चिंतक बैद।।  

बाल दिबस कै हार्दिक सुभकामना 
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हमही ता  अइसा लगै, बाल दिबस का सीन। 
जस  हमरे  कैलाश मा, कब्ज़ा  कीन्हे  चीन।।  
***************************
पन्नी बीनत बीत गै, ज्याखर उमिर किसोर। 
ओखे दुअरै कब अइ बाल दिबस कै भोर।। 
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
जे कबहूं  जानिस  नही,  पोथी  अउर   सलेंट। 
बूटन मा पालिस किहिस होटल घसिस पलेट।। 
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
जहाँ  ब्यबस्था  खाय गै, पंजीरी  औ खीर। 
गभुआरन के भाग मा बदी कुपोसित पीर।। 
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
दरबारी   जेही  कहै, बोटहाई   मा  नात। 
पै कबहूं देखिन नही वाखर दुधिया दांत।। 
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
हबै   कुपोसित  देस   मा, जेखर  ल्यादा    घींच। 
ओ! बालदिबस फुरसत मिलै ता उनहूं का सींच।। 
***********मतदान ******************
लोकतंत्र  कै  आतिमा,  निर्बाचन   मतदान। 
बोट डार सब कोउ करी, प्रजातंत्र का मान।।  

यतर करी मतदान हम, लगै अउर का ईर।
पूरे  भारत  मा   बनै, आपन   बूथ   नजीर।।

देस हमीं जीबन दइस, औ सुबिधा चउकेठ।  
हंस  हमूं मतदान कइ, बनी नागरिक ठेठ।।

लोकतंत्र आपन हबय, दुनिआ का लकटंट।
 जनतै  आपन प्रजा  ही ,औ जनतै श्री मंत।। 

जनता से बिनती हिबय, डारी  सब जन बोट। 
जिव निछोह बिदुरा सकैं, लोकतंत्र के ओंठ ।।  

जनता के हाथे हबइ लोकतंत्र का मान।
चला चली सब जन करी सौ प्रतिशत मतदान।।

अपना से बिनती हिबै, अबस करी मतदान।
लोकतंत्र के जग्ग का , सादर राखी मान।।
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शम्भू काकू 
जहां बघेली आय के, होइगै अगम दहार। 
वा रिमही के शम्भू का, नमन है बारम्बार।। 
 
बघेली  साहित्त के, शम्भू  काकू   सिंध। 
देह धरे गाबत रहा, मानो कबिता बिंध। । 
 
गांव गली चउपाल तक, जेखर बानी गूंज। 
श्री काकू जी अमर भें, ग्राम गिरा का पूज। । 
 
लिहे घोटनी  चल परैं, जब कबिता के  संत। 
सब कवि काकू का कहैं, रिमही केर महंत। ।
 
न चुट्कुल्ला उइ कहिन, ना अभिनय परपंच। 
बड़ा मान आदर दइस,तउ कबिता का मंच। । 
 
जेखे कबिता के बिषय, आंसू आह कराह।  
अच्छर फरयादी बने,  काकू  खुदै  गबाह। ।
 
कबिता  का पेसा नहीं,  जेखे  कबहूं  चित्त। 
बिन्ध्य लिलारे मा, लिखे, काकू केर साहित्त। ।   
 
आंखर आंखर मा बसय,काकू कै कहनूत। 
हंस  बंदना  कइ  रहा, धन्न   बघेली   पूत। ।
-----------कीर्ति शेष रामाधार शर्मा अनंत जी --
कबिबर  रामाधार  जी, भें  अनंत  मा लीन !
मैहर सृजन समाज भा , मुड़धरिया से हीन !!

मइया सारद रो परीं , सुन के दुःख संदेस!
तन से बिछुरें उइ भले, रही कीरती शेष।! 
----------भारत रत्न  अटल जी ----------------
भारत माता के रतन लाड़िल अटल लोलार। 
जन जन के हिरदय बसें दीन्हिस देस दुलार।। 

अटल बिहारी देस के उज्जर एक चरित्र। 
उनखे अस को देस मा भला बताबा मित्र।। 

भारत के नेतन निता अटल एक इसकूल। 
देस देय श्रद्धांजली सादर आंखर फूल।। 
-----------आदि शंकराचार्य जी --------------
कायरता  पाखंड से, देस भा  जब कमजोर।
तब केरल मा प्रगट भें, शङ्कर सुरिज अजोर।।

आदि शंकराचार्य का , शत  शत नमन हमार।
हम  भारत  बासी  करी ,अपना  कै  जयकार।। 
-----------कविवर रामनरेश तिवारी -------------
जब बानी औ शब्द मिल,. होंय तपिस्या लीन।
तब कवि राम नरेस अस, मनई बनै शालीन।।

शारद के बरदान अस , हैं नरेश श्री मान । 
जिनखे  हाथे  मा पहुँच, सम्मानित सम्मान। 

पयसुन्नी  अस सब्द का, जे पूजय  दिनरात। 
कबिता उनखे निता ही, जीबन कै जरजात।।   

गीत ग़ज़ल कै आरती ,  दोहा कविता छंद।
आंखर आंखर आचमन, अंतस का आनंद।।

अउर कहूं देखे हयन, अइसा सिस्टचार। 
गहगड्डव है आन के, कहूं पारी ही दार।।

दहसत माही कलम ही, कागद करै रिपोट। 
राजनीत कब तक करी, गुंडन केर सपोट।। 

पुरखन के सम्मान का पितर पाख है सार। 
जे हमका जीबन दइन उनखे प्रति आभार।। 

अम्मा अपने आप मा सबसे पाबन ग्रंथ। 
माता से बढि के नही कउनौ ज्ञानी पंथ।। 

दादू  के सुख  संच मा, जे  मानय  आनंद।
अम्मा अस कउनौ नहीं, जीबन का संबंध।।

रिमझिम बदरी कइ रही भींजै नगरी गाँव। 
मानो भादव कइ रहा कान्हा जनम उराव।। 

खजुलैयां कै सुभकामना, सादर राम जोहार। 
नेम- प्रेम से सब रहैं ,  समता का   तेउहार। ।

अपने  रीत  रिबाज  का,  गांव  समेटे  गर्व । 
पुरखन  कै  थाती  धरे, मना  रहा  है  पर्व ।। 

खजुलइयां लइके मिला, हमरे गांव का नेम। 
द्यखतै जिव हरिआय गा,  परिपाटी का प्रेम।। 

हाथे मा मेंहदी रची , कर स्वारा सिगार।
गउरी पूजैं का चली ,सजी सनातन नार। ।

खूब फलिहाइस रात भर, दिन निर्जला उपास। 
देखा  भारतीय  प्रेम के ,  अंतस  केर मिठास ।। 

जबसे उंइ डेहरी चढ़ीं ,  छूट हिबय सरफूंद ।  
हमरे  जीबन के  दिहिन , सगले अबगुन मूंद।।
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मन मेहदी अस जब रचा आँखिन काजर कोर । 
सामर सामर हाथ मा जइसा गदिया गोर।।

खजुलइया लइके मिला जब बचपन का प्रेम। 
आँखिन से झांकै  लगा समय चित्र का फ्रेम। । 

गदिअय खजुलइया धरे कजरी गाबै पर्व। 
अपने तिथ तिउहार का गाँव समेटे गर्व। । 

साहब सलाम औ पैलगी गूंजै राम जोहर। 
अबहूँ अपने गाँव मा बचा हबै बेउहार। । 

भाई चारा प्रेम का खजुलइयां तिउहार। 
बढ़ै अपनपौ देश मा मेल-जोल बेउहार। । 

राखी टठिया मा धरे बहिनी तकै दुआर। 
रक्षा बंधन के दिना उई पहुंचे ससुरार। । 

हाथे मा मेहदी लगी रचा महाउर पाँव। 
सावन मा गामै लगा कजरी सगला गाँव। । 

उनखर हिबै समाज मा सबसे लम्बी पूछ। 
जे बैभव से भरे हें संवेदना से छूछ। ।   

बड़ा अमारक जाड़ है ठठुरा है परधान। 
उइं बिदुराती हईं कह 'दुइ रूई 'का उपखान।।  

उइ ठेगरी लगबा रहें मार मार के ख्वाँग। 
औ जनता बिदुराथी देखि देखि के स्वाँग। । 

राबन जब से बना है, उनखे दल का ब्रांड।
तब से दुनिया त्रस्त ही, हलकान ब्रम्हाण्ड।।

राबन जब राजा बना, दीन्हिस बनै कानून। 
जेखे टेक्स कै जर नहीं, पील्या वाखर खून।। 

अपना का शुभकामना, सादर करी उराव।
धन नेतन के नाव है, तेरस अपने नाव।।

दीपदान कै लालसा , अउ मन मा अनुराग।
चित्रकोट कोउ जा रहा , कोऊ अबध प्रयाग।।

भाई चारा  मा रगा , चला लगाई रंग। 
अपने भारत देस मा बाढय प्रेम उमंग।। 
 
अकहापन  औ  इरखा राई चोकरा नून। 
होरी मा जरि जाय सब बैर बिरोध कै टून।।
 
सुखी संच माही रहय आपन भारत देस। 
प्रेम पंथ प्रहलाद का न कोउ देय कलेस। । 
 
अंग अंग पूंछय लगा मन मा लिहे मिठास। 
कबै अयी  वा सुभ घरी जब टूटी उपबास। । 
 
कथा पुरानन कै हमी दीन्हे ही मरजाद। 
जली आग मा होलिका बचें भक्त प्रह्लाद। । 
 
खेतन मा पाकै  फसल घर मा आबै अन्न। 
होरी परब मनाय के खेतिहर लगैं प्रसन्न। । 

शासक जब कीन्हिन बहुत, सोसन अत्याचार। 
तब ईस्वर   का  लें परा, फरस  राम  अबतार।। 
 
दुस्टन काही काल अस, औ सज्जन का संत ।
श्री भृगु नंदन परसुधर , स्वाभिमान  भगमंत  ।।

भारत पूजिस सब दिना,रिसी कृसी के साथ।
एक हाथे मा शास्त्र का, शस्त्र का दूजे हाथ।। 

जुग नायक ता भे नहीं, कबौं जात  मा कैद। 
उइं  बीमार समाज के, हें सुभ चिंतक बैद।।  

बाल दिबस कै हार्दिक सुभकामना 
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हमही ता  अइसा लगै, बाल दिबस का सीन। 
जस  हमरे  कैलाश मा, कब्ज़ा  कीन्हे  चीन।।  
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पन्नी बीनत बीत गै, ज्याखर उमिर किसोर। 
ओखे दुअरै कब अइ बाल दिबस कै भोर।। 
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जे कबहूं  जानिस  नही,  पोथी  अउर   सलेंट। 
बूटन मा पालिस किहिस होटल घसिस पलेट।। 
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जहाँ  ब्यबस्था  खाय गै, पंजीरी  औ खीर। 
गभुआरन के भाग मा बदी कुपोसित पीर।। 
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दरबारी   जेही  कहै, बोटहाई   मा  नात। 
पै कबहूं देखिन नही वाखर दुधिया दांत।। 
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हबै   कुपोसित  देस   मा, जेखर  ल्यादा    घींच। 
ओ! बालदिबस फुरसत मिलै ता उनहूं का सींच।। 
***********मतदान ******************
लोकतंत्र  कै  आतिमा,  निर्बाचन   मतदान। 
बोट डार सब कोउ करी, प्रजातंत्र का मान।।  

यतर करी मतदान हम, लगै अउर का ईर।
पूरे  भारत  मा   बनै, आपन   बूथ   नजीर।।

देस हमीं जीबन दइस, औ सुबिधा चउकेठ।  
हंस  हमूं मतदान कइ, बनी नागरिक ठेठ।।

लोकतंत्र आपन हबय, दुनिआ का लकटंट।
 जनतै  आपन प्रजा  ही ,औ जनतै श्री मंत।। 

जनता से बिनती हिबय, डारी  सब जन बोट। 
जिव निछोह बिदुरा सकैं, लोकतंत्र के ओंठ ।।  

जनता के हाथे हबइ लोकतंत्र का मान।
चला चली सब जन करी सौ प्रतिशत मतदान।।

अपना से बिनती हिबै, अबस करी मतदान।
लोकतंत्र के जग्ग का , सादर राखी मान।।
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शम्भू काकू 
जहां बघेली आय के, होइगै अगम दहार। 
वा रिमही के शम्भू का, नमन है बारम्बार।। 
 
बघेली  साहित्त के, शम्भू  काकू   सिंध। 
देह धरे गाबत रहा, मानो कबिता बिंध। । 
 
गांव गली चउपाल तक, जेखर बानी गूंज। 
श्री काकू जी अमर भें, ग्राम गिरा का पूज। । 
 
लिहे घोटनी  चल परैं, जब कबिता के  संत। 
सब कवि काकू का कहैं, रिमही केर महंत। ।
 
न चुट्कुल्ला उइ कहिन, ना अभिनय परपंच। 
बड़ा मान आदर दइस,तउ कबिता का मंच। । 
 
जेखे कबिता के बिषय, आंसू आह कराह।  
अच्छर फरयादी बने,  काकू  खुदै  गबाह। ।
 
कबिता  का पेसा नहीं,  जेखे  कबहूं  चित्त। 
बिन्ध्य लिलारे मा, लिखे, काकू केर साहित्त। ।   
 
आंखर आंखर मा बसय,काकू कै कहनूत। 
हंस  बंदना  कइ  रहा, धन्न   बघेली   पूत। ।
-----------कीर्ति शेष रामाधार शर्मा अनंत जी --
कबिबर  रामाधार  जी, भें  अनंत  मा लीन !
मैहर सृजन समाज भा , मुड़धरिया से हीन !!

मइया सारद रो परीं , सुन के दुःख संदेस!
तन से बिछुरें उइ भले, रही कीरती शेष।! 
----------भारत रत्न  अटल जी ----------------
भारत माता के रतन लाड़िल अटल लोलार। 
जन जन के हिरदय बसें दीन्हिस देस दुलार।। 

अटल बिहारी देस के उज्जर एक चरित्र। 
उनखे अस को देस मा भला बताबा मित्र।। 

भारत के नेतन निता अटल एक इसकूल। 
देस देय श्रद्धांजली सादर आंखर फूल।। 
-----------आदि शंकराचार्य जी --------------
कायरता  पाखंड से, देस भा  जब कमजोर।
तब केरल मा प्रगट भें, शङ्कर सुरिज अजोर।।

आदि शंकराचार्य का , शत  शत नमन हमार।
हम  भारत  बासी  करी ,अपना  कै  जयकार।। 
-----------कविवर रामनरेश तिवारी -------------
जब बानी औ शब्द मिल,. होंय तपिस्या लीन।
तब कवि राम नरेस अस, मनई बनै शालीन।।

शारद के बरदान अस , हैं नरेश श्री मान । 
जिनखे  हाथे  मा पहुँच, सम्मानित सम्मान। 

पयसुन्नी  अस सब्द का, जे पूजय  दिनरात। 
कबिता उनखे निता ही, जीबन कै जरजात।।   

गीत ग़ज़ल कै आरती ,  दोहा कविता छंद।
आंखर आंखर आचमन, अंतस का आनंद।।

शब्द  ब्रह्म  का  रुप है,  वर्ण  धरै जब भेष।
मइहर  मा  एक  संत  हैं, पंडित रामनरेश।।

लगय कटाये घाट अस, सब्दन का लालित्य। 
मैहर मा  चमकत रहैं,  राम नरेश आदित्य।। 
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पीरा गावय  मा कबव, करय कसर न शेष।
आंसू के राज कुमार हैं, कबिबर रामनरेश।।

जिनखे लेखन मा हबै, शब्दन कै  मरजाद ।
कविता सीधे हिदय से, करै  करुन  संबाद।।
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कवि   रविशंकर जी 
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पीपरबाह  से  देस तक,  गूंज  रहा  साहित्य। 
कोट  बधाई  जनम  कै,  रविशंकर आदित्य।। 

सहज सरल निरछल हिदय, जय हो बानी पूत। 
देस  बिदेस प्रदेस  मा, जस खुब मिलै अकूत।। 

जब  मंचन  मा  बंटत  है, सब्दन  केर  गड़ास। 
खिलखिलात बांटत फिरैं, रबिशंकर जी हास। ।  
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जयराम शुक्ल जी 
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जेखे  आंखर  बने  हें,  जनता  के स्वर दूत।
बंदन  है  जयराम जी, बिन्ध्य  के बानी पूत।। 

सादर  ही  शुभ कामना बरिस गाँठ के हेत।
करत रहै लेखनी सदा सबका सजग सचेत।। 
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जगजीवन राम तिवारी कक्का जी 
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रीमा  मा  कक्का  हमय ,  जग जीबन  है नाव । 
उनखे  झंडा  के तरी,  सब्द  का  सीतल  छाँव।। 

सब्द का सीतल छाँव मान  सब लेखनी काही। 
चाह  अडारन  होय,  चाह  अनमोल   सिपाही।।

लोकरत्न  कक्का लगैं ,अमल्लक रतन छटीमा। 
आजु हमय सहनाव अस कक्का जी औ रीमा।। 
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गोस्वामी तुलसीदास जी 
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कोऊ   संकराचार   भा,  कोऊ   रामाचार्य।
तुलसी  सबका  जोर  के,  बन गें  परमाचार्य।।

जे जनता  के  हिदय  मा, करै  जुगन  से बास। 
सादर अपना का नमन, जन कवि तुलसीदास।। 

धन्न   बिंध   कै   भूमि  ही, धन्न  राजापुर  ग्राम। 
जहाँ   के  मानस   मा  रमय, साक्षात  श्री राम। ।  
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बपुरा सुविधा संच का तरसै हिंया मजूर। 
अपना का आँसै नही वा भर मुंह कहै हजूर। । 

सत्ता अउर साहित्त कै बस येतू बिरदन्त। 
उनखे कई 'जयन्त ' औ हमरे ठई ''दुष्यंत "। । 

भूखों की ये बस्तियां औ फूलों के जश्न। 
ओ ! माली तेरी नियति में क्यों न उठेंगे प्रश्न। । 

हमरे हिआ गरीब कै सब दिन आँखी भींज। 
धन्ना सेठ कै आत्मा कबहूँ नही पसीझ। । 

बड़े अदब से बोलिये उनकी जय जय कार। 
लोकल गुण्डों की यहाँ चलती है सरकार। । 
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पडित दिन दयाल जी 
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भारत माही जब मची सामाजिक दहचाल। 
मानववाद लय आय गें पंडित दीन दयाल।। 

अपने  तीरथ बरथ मा राष्ट्र वाद का प्रेम। 
एकात्म के ग्रंथ मा सबका  हित औ क्षेम।। 

बसै  देस कै  आतिमा टोला गाँव देहात। 
पंडित जी के  सूत्र  हें  जगन्नाथ अस भात।। 

राष्ट्र वाद के डाकिया एकात्म के मूल। 
पंडित जी शतशत नमन करै बघेली फूल।। 


रविवार, 23 फ़रवरी 2025

शनिवार, 15 फ़रवरी 2025

परिचय

कवि  परिचय -- हेमराज त्रिपाठी हंस 

जन्म -- 01 . 04. 1972 

ग्राम गोबरी तहसील मैहर  जिला सतना मप्र 

पिता -श्री परमेश्वर दीन उरमलिया  माताजी स्व. तारा देवी 

शिक्षा - बी. ए. शासकीय विवेकानंद महाविद्यालय मैहर 

रूचि -- साहित्य पठन समाज सेवा 

अभिरुचि -- ग्राम गिरा बघेली में कविता लेखन  1995  से सतत जारी 

प्रकाशनाधीन  कविता संग्रह  --  कुच्छ न पूछा हाल तिवारी 

सम्मान -- मध्यप्रदेश साहित्य सम्मलेन का प्रतिष्ठित बघेली का   सैफू  सम्मान 2010 

विंध्य रत्न सम्मान भोपाल -2018 

सम्पर्क सूत्र -- ग्राम भेड़ा  मैहर मप्र -9575287490  

गुरुवार, 13 फ़रवरी 2025



 




 


 


 


 


 


 


 


 


 


 

CHITRKOOT KAVI SAMMELAN 08.02.2025


 


 

PRAYAGRAJ 2025


 

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बुधवार, 5 फ़रवरी 2025

सुरक्षित आयें सुरक्षित जायें।

सुरक्षित आयें सुरक्षित जायें। 
आपको मेरी शुभकामनायें।। 

रखें  सुरक्षा    चक्र  अटूट। 
हेलमेट चश्मा बेल्ट औ बूट। ।  
स्वयं औ  साथी को समझायें। 
सुरक्षित आयें सुरक्षित जायें।  
आपको मेरी शुभकामनायें।। 

बिना  सुरक्षा  जीवन कैसा।
खुली हवा  में दीपक जैसा ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‍‍।। 
आमंत्रित होती  हैं घटनायें। 
सुरक्षित आयें सुरक्षित जायें।।  
आपको मेरी शुभकामनायें।। 

लापरवाही से है नुकसान। 
छीने  रोजी औ मुस्कान।।  
अतः सुरक्षा को अपनायें। 
सुरक्षित आयें सुरक्षित जायें।  
आपको मेरी शुभकामनायें।। 

है हर काम देश की सेवा। 
साक्षी  है  गंगा  औ  रेवा।।
युगों  युगों  से  रही प्रथायें।
सुरक्षित आयें सुरक्षित जायें।  
आपको मेरी शुभकामनायें।।  

रहे बोध कर्तव्य का हर में। 
कोई  प्रतीक्षा रत  है घर में । । 
सिद्धि  सुरक्षा  संभावनाएं। 
सुरक्षित आयें सुरक्षित जायें।  
आपको मेरी शुभकामनायें।।  
 

कीर्तिमान निश दिन बढ़े, गढ़ें नये सोपान।

कीर्तिमान निश  दिन बढ़े, गढ़ें नये सोपान।  जन्म दिन की शुभकमना, आये नया बिहान।।  आये   नया   बिहान   शारदा   के प्रिय लालन । मैहर का हो आपके  ...