हम ऐसे दौर में जी रहे हैं।
उल्लू हंस के ओंठ सी रहे है। ।
हेमराज हंस
उल्लू हंस के ओंठ सी रहे है। ।
आप पसीने की बात करते हैं
वो मजदूरों का ख़ून पी रहे है हेमराज हंस
बघेली साहित्य -का संग्रह हास्य व्यंग कविता गीत ग़ज़ल दोहा मुक्तक छंद कुंडलिया
कीर्ति बिटिया माँ बनी, हरी भरी हुई गोद। परिजन हैं उल्लास में, सबके मन में मोद।। आशा दसमी शुभ तिथि, सुदी का स्वाति नक्षत्र। दो हज्जार ब...
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