हम ऐसे दौर में जी रहे हैं।
उल्लू हंस के ओंठ सी रहे है। ।
हेमराज हंस
उल्लू हंस के ओंठ सी रहे है। ।
आप पसीने की बात करते हैं
वो मजदूरों का ख़ून पी रहे है हेमराज हंस
बघेली साहित्य -का संग्रह हास्य व्यंग कविता गीत ग़ज़ल दोहा मुक्तक छंद कुंडलिया
श्री शिवशंकर सरस जी, बोली के चउमास। उनसे छरकाहिल रहैं, तुक्क बाज बदमास।। सादर ही सुभकामना, जनम दिना कै मोर। रिमही मा हें सरस जी , जस पा...
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