निःशील हो गये
शीलवान भी यहां निःशील हो गये।
बंधु कंज भी यहां करील हो गये। ।
माना था जिनको स्त्रोत हमने मीठे नीर का
वे भी खारे जल की सांभर झील हो गये। ।
जो पाठ पढ़ाते रहे स्वदेश प्रेम का
वे विदेशी पोषकों के डील हो गये। ।
ज्ञान नही जिनको थाह और धार की
वे ब्यवस्था सेतु के नल -नील हो गये। ।
हमने जिन्हे जाना था मनस्वनी का हंस
मित्र देखिये तो वही चील हो गये।।
हेमराज हंस ---मैहर
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