bagheli muktak
भले जीभ दार है पै मकुना मउना है।
एहिन से ओही सइघ नही अउना पउना है।।
पड़बा है काहे दूबर य बात दिल्ली जाना थी
दुधारु लोकतंत्र के पडउना का थमाउना है। ।
हेमराज हँस
बघेली साहित्य -का संग्रह हास्य व्यंग कविता गीत ग़ज़ल दोहा मुक्तक छंद कुंडलिया
श्री शिवशंकर सरस जी, बोली के चउमास। उनसे छरकाहिल रहैं, तुक्क बाज बदमास।। सादर ही सुभकामना, जनम दिना कै मोर। रिमही मा हें सरस जी , जस पा...
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