शासक जब कीन्हिन बहुत, सोसन अत्याचार।
तब ईस्वर का लें परा, फरस राम अबतार।।
दुस्टन काही काल अस, औ सज्जन का संत ।
भृगु नंदन श्री राम हैं, स्वाभि मान श्री मंत ।।
भारत पूजिस सब दिना,रिसी कृसी के साथ।
एक हाथे मा शास्त्र का, शस्त्र का दूजे हाथ।।
जुग नायक ता भे नहीं, कबौं जात मा कैद।
उइं बीमार समाज के, हें सुभ चिंतक बैद।।
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