भ्रस्टाचार मा डूब गा, जब मगधी दरबार।
धनानन्द सैलून मा, लगें बनामय बार।।
कहिन फलाने हम हयन, पढ़े लिखे भर पूर।
पै अब तक आई नहीं, बोलय केर सहूर।।
भारत पूजिस सब दिना,रिसी कृसी के साथ।
एक हाथे मा शास्त्र का, शस्त्र का दूजे हाथ।।
बघेली साहित्य -का संग्रह हास्य व्यंग कविता गीत ग़ज़ल दोहा मुक्तक छंद कुंडलिया
श्री शिवशंकर सरस जी, बोली के चउमास। उनसे छरकाहिल रहैं, तुक्क बाज बदमास।। सादर ही सुभकामना, जनम दिना कै मोर। रिमही मा हें सरस जी , जस पा...
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