सुमर कै नजर नित रहा थी बिष्ठा मा।
हमीं कउनव सक नहीं ओखे निष्ठा मा।।
सेंतय का झारन मा जरा बरा जात है
गदहा परेशान है गईया के प्रतिष्ठा मा।।
हेमराज हंस
बघेली साहित्य -का संग्रह हास्य व्यंग कविता गीत ग़ज़ल दोहा मुक्तक छंद कुंडलिया
सुमर कै नजर नित रहा थी बिष्ठा मा।
हमीं कउनव सक नहीं ओखे निष्ठा मा।।
सेंतय का झारन मा जरा बरा जात है
गदहा परेशान है गईया के प्रतिष्ठा मा।।
हेमराज हंस
राहू अमरित पी लिहिस, जनता ओसे हीच।
अइसै हेमय समाज मा, उच्च कोटि के नीच।।
कहिन भुसुण्डी सुन गरूड़, तजै सुभाव न नीच।
गंग नहा ले सुमर चह ,तउ पुन लोटय कीच।।
हेमराज हंस
श्री हरि कुशवाह ,हरि ,
बघेली कविता
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उइ कहा थें सीताफल पहिले कटहर रहा।
ओखा खांय मा बड़ा अटहर रहा।।
अब खिआत खिआत होइगा चुनू बूदा।
यतना सुनतै एक बांदर डाल से कूदा।।
कहिस काहे लबरी बतात्या है
हमीं लगा थी गिल्लिआन ।
हम मनई बनै का
घिस रहे हन आपन
पूंछ पै आजु तक नहीं खिआन।।
अब हम डारबिन से मिलय का
बनबाय रहे हन बीजा।
फुरा जमोखी करामैं का
साथै लइ जाब एक ठे
दुरजन भतीजा।
कहब की पच्छिम कै बात
पूरब माँ लागू नहीं होय।
आजा का जनम नाती के
आगू नहीं होय।।
मनई कबहूँ नहीं रहा बांदर।
हाँ जबसे हम श्री राम जू के
सेना मा भर्ती भयन
तब से समाज मा खूब हबै आदर।
तब से हमूं गदगद हयन मन मा।
चित्रकूट अजोध्या औ देखा
बृंदाबन मा।
✍️हेमराज हंस
हम उनही दिल दइ दीन्ह्यान अब गुर्दा माँगा थें।
बारिस मा सब सरि गै धान ता उर्दा माँगा थें।।
स्वस्थ बिभाग के सेबा से गदगद हें सब रोग बिथा
अस्पताल से हरबी छुटटी मुर्दा माँगा थें।।
हेमराज हंस
श्री शिवशंकर सरस जी, बोली के चउमास। उनसे छरकाहिल रहैं, तुक्क बाज बदमास।। सादर ही सुभकामना, जनम दिना कै मोर। रिमही मा हें सरस जी , जस पा...