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शुक्रवार, 14 नवंबर 2025

श्री हरि कुशवाह ,हरि ,

 श्री हरि कुशवाह ,हरि ,

मैहर के कवियों में कुशवाह हरि एक जाना पहचाना नाम है। जो चाहे हिंदी में अपने गीत य ग़ज़ल लिखे य बघेली में पर जो भी लिखा वह ठोक बजाकर । इसीलिए शायद किसी ने कभी उनके बारे में कहा रहा होगा कि,
जेमा न नंचिउ खोट त ओही खरी कहा थे,
गइल चलत मिल जाय त ओही डरी कहा थे।
बइठ मंच पुटपार्थी के साईं बाबा कस,
मइहर के मनई सब उनही हरी कहा थे।।
पेशे से नगरपालिका के बरिष्ठ लेखापाल पद से रिटायर श्री कुशवाह ,हरि , का एक बघेली काब्य संकलन भी प्रकाशित है।
आइये पहले उनके गजल से ही शुरुआत करते है।
मन मा उचय सबाल त कइसा करी फलाने,
कउनों सुनय न हाल त कइसा करी फलाने।
पनही मिली उन्ही ता बारी क रउद डारिन,
उनकर बढ़ी मजाल त कइसन करी फलाने।।
नउपर के तुपक दारी मूड़े म धरे गोरसी,
झूरय बजामै गाल त कइसन करी फलाने।
नङ्गा नहाय तउनव निचोमय के फिकिर मा,
बनिया बने कंगाल त कइसा करी फलाने।।
आपन न टेट देखय आने कै फूली झाकय,
दुनिया क यहै हाल त कइसा करी फलाने।
भूभुर करय क पोहगर खुरखुंद त कइ डारिन,
मुखियय बने दलाल त कइसा करी फलाने।।
केतनेव क खाय डारिस या तन्चबूदी रोटी,
पेटय बना बबाल त कइसन करी फलाने।
हाथी निकर ग सगला बस रहिगे पूछ् बाक़ी,
अब गामै उय बेताल त कइसन करी फलाने।।
चलनी म दूध दुहि के रोमय लिलार काही,
बिगड़ी है उनकर चाल त कइसन करी फलाने।
नव सौ गटक के मुसबा हज का चली बिलारी,
अधरौ लिहे मसाल त कइसन करी फलाने ।।
चाकी परी य देश मा लूडा लगाय दीहिंन ,
सइया बने कोतवाल त कइसन करी फलाने।
कइसन कही कि रानी बइठी चुनू सम्हर के,
राजा करी हलाल त कइसा करी फलाने।।
निबले कै तो मेहरिया सब कै लगा थी भउजी,
बुढऊ जो ठोकै ताल त कइसा करी फलाने।
लिलरी न जियत माछी हमसे सुना हरी तुम,
रहिगा यहै मलाल त कइसा करी फ़लाने।।
यह तो रही श्री हरि कुशवाह की ग़ज़ल अब उनके एक गीत का भी जायका लीजिये।सकबन्धे म प्रान फलाने बलम सोचय म झुखाने।
कोरे कागद अउठा दीहिंन ,
बंधुआ बन के करजा लींहिंन।
ब्याज बरे हमहू से बेउहर बहुत बेर फुहराने,
बलम सोचय मा झुखाने ।।
जब थाने मा रपट लिखामै,
उलटे उनही दपट भगामै।
हमही निबल कै जान मेहरिया रोज बोलामय थाने,
बलम सोचय म झुखाने।।
पेट पेंटागन जेठ दुपहरी,
बागा थे फिफियाँन कचेहरी।
खेती बारी कुरकी होइगे दूनव बैल बिकने,
बलम सोचय मा झुखाने।
हमरे बिधायक रसिया बड़े है,
जब देखय खटिया म पडे है।
उनही घर से दूरी राखय कउनों न कउनों बहाने,
बलम सोचय मा झुखाने।
इस तरह श्री हरि कुशवाह , हरि, अपने क्षेत्रीय मुहाबरे लोकोक्तियों और प्रतीकों को अपने कविताओ में सजोते हुए अनेक गीत और ग़जल लिखे है।

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