सुमर कै नजर नित रहा थी बिष्ठा मा।
हमीं कउनव सक नहीं ओखे निष्ठा मा।।
सेंतय का झारन मा जरा बरा जात है
गदहा परेशान है गईया के प्रतिष्ठा मा।।
हेमराज हंस
बघेली साहित्य -का संग्रह हास्य व्यंग कविता गीत ग़ज़ल दोहा मुक्तक छंद कुंडलिया
श्री शिवशंकर सरस जी, बोली के चउमास। उनसे छरकाहिल रहैं, तुक्क बाज बदमास।। सादर ही सुभकामना, जनम दिना कै मोर। रिमही मा हें सरस जी , जस पा...
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