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सोमवार, 30 सितंबर 2024

मइहर जिला शारद नगरी।

   मैहर जिला 

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मइहर  जिला  शारद  नगरी। 

जेखर  कीरती  जग   बगरी।। 


पहिलय पूजा करै नित आल्हा।

रोज   चढ़ाबै   फूल औ माला ।। 

राम सखा जू का आश्रम पाबन। 

ओइला  गोलामठ  पबरित मन।।

गोपाल बाग  औ राम बाग मा। 

पहुंचै  वहै   है  जेखे  भाग  मा ।। 

हनुमत  कुंज भदन पुर  बाले।

हें  कैमोर  पहार   के     खाले। । 

श्री सिद्ध बाबा  मऊ  डोंगरी ।।

मइहर  जिला   शारद नगरी।


श्रद्धा  श्रम  संगीत   का   संगम । 

किहन अगस्तव  का स्वागत हम ।।

 भै  नहीं   झुकेही   केर   समीक्षा। 

जहां दिहिन अगस्त विंध्य का दीक्षा।।  

बाणासुर  का  हिअय  मनाउरा। 

गाँव  गाँव  मा  खेर  का चउरा ।।

चउकी  चटकउला  चपना के। 

हनुमत  कष्ट  हरैं  अपना   के।।

गाँव करसरा  कालका काली। 

दुर्गा    मइया   बछरा   बाली ।।

जहाँ भक्ती कै कलश बनै गगरी। 

मइहर  जिला   शारद   नगरी। । 


खजुरी ताल का मंदिर भइया। 

पोंड़ी धाम मा  होय समइया ।।

मुकुंदपुर का इतिहास पुरातन। 

 जहाँ जगन्नाथ  जू स्वयं सनातन।। 

हुअय  बना  है  शेर   सफारी। 

अपने  बिंध कै बना चिन्हारी।। 

पपरा मा   श्री  राम  दूत हैं । 

रामनगर मा  गिद्ध कूट हैं ।। 

मार्कण्डेय कै  आश्रमधानी। 

बाणभट्ट का  सुमिरै  बानी।।  

बाणसागर करै जहाँ पैपखरी।

मइहर जिला शारद नगरी।  

  हेमराज हंस भेड़ा 

शनिवार, 21 सितंबर 2024

मदन मोहन मिश्र ---बनारस

एक बार महामना मालवीय जी स्नान हेतु प्रयाग संगम पधारे वहां के पंडो में उनको नहवाने की होड़ लग गई। तभी मालवीय जी ने कहा की जिससे एकदम शुद्ध स्वस्ति वचन आता हो वही हमें स्नान के लिए ले चले ,तभी एक सयाने पण्डे ने कहा चलिए पंडित जी हम स्नान कराएँगे। वह मालवीय जी को संगम में ले जाकर गंगा जल ले कर  बोला ,सम्माननीय आप देश के श्रेष्ठतम विद्वान हैं। ये बताइये  इधर कौन है वे बोले गंगा उधर , यमुना  और सरस्वती ? वो विलुप्त हैं।  पांडा जी ने कहा जिस देश में सरस्वती विलुप्त हों वहां शुद्ध शुद्ध स्वस्ति  उच्चारण कौन कर सकता है --बकौल -मदन मोहन मिश्र वाराणसी  

शुक्रवार, 20 सितंबर 2024

पबरित परसाद भंडासराध कइ रहे हें।।

 जे मंदिर कै हमरे खंडित मरजाद कइ रहे हें। 

पबरित   परसाद    भंडासराध   कइ  रहे  हें।। 

उनहीं   पकड़  के  सीधे  सूली  मा  टांग  द्या 

हमरे  धरम के साथ जे अपराध   कइ  रहे  हें।। 

हेमराज हंस -भेड़ा मैहर 


 जेही पामय के निता,  रहंय  लालायित लोग। 

 कीन्हिन दूषित दुस्ट जन, बाला जी का भोग।।  


रविवार, 15 सितंबर 2024

KAVI SAMMELAN KARVI 14.09.2024


 हिंदी दिवस पर पावन धाम चित्रकूट के  पुरानी कोतवाली केसामने हुए कवि सम्मेलन में कवियों

ने हर रस की कविताएं सुनाकरलोगों का भरपूर मनोरंजन किया।इसका आयोजन योगेंद्र दत्त द्विवेदी

एजूकेशन सोसायटी, साहित्यसाधना ग्रुप एवं नगर पालिकापरिषद के संयुक्त तत्वावधान मेंकिया गया।

कार्यक्रम की शुरुआत आचार्यब्रजेंद्र शास्त्री ने दीप प्रज्ज्वलनसे की। अध्यक्षता शायर अख्तरफ़राज़ ने की। संचालन डा. मनोजद्विवेदी, हबीब खान व छतरपुर केकवि सूरज पंडित ने किया। सतनाकी कवयित्री दीपा गौतम ने बेटियों

पर रचना पढ़, नीरांजना के पुष्प

सी होती हैं बेटियां, कोमलहृदय

करुणा सी होती हैं बेटियां। 

चरखारीके प्रदीप दिहुलिया ने व्यंग्य रचना,

चाहते हो जीवन को सफल बनाना

यदि, पत्नी की हां में हां मिलाते चले

जाइए, वह दिन को कहे जो रात,

दूध को कहे जो भात, सहमति में

शीश को हिलाते चले जाइए पढ़कर

वाहवाही बटोरी। 

सूरज पंडित ने पढ़ा, खुशियों का संसार तुम्हारे नाम

किया, जीवन भर का प्यार तुम्हारे

नाम किया।

 मैहर के कवि हेमराज हंस ने, 

फलाने कै भईंस बहुत

पल्हात ही, लागत है मिड डे मील कै

दरिया खात ही,  गभुआर चले गें पेट

 खलाये सरकारी योजना ठाड़े बिदुरात ही। 

पढ़कर व्यवस्थाओं पर करारी चोट

की। 

दिनेश दीक्षित संघर्षी ने, हिंद

देश का मान हूं मैं तो हिंदी भाषा

ठहरी हूं, क्यों बेबस लाचार खड़ी

मैं जंजीरों में जकड़ी हूं, से भाषा की

व्यथा को व्यक्त किया। 

श्रीनारायणतिवारी ने इंसानियत पर पंक्तियांपढ़ीं, जिनको प्यारे सभी इंसान नहींहोते हैं, वो तो हिंदू या मुसलमान

नहीं होते हैं। मेरे श्रीराम ही अल्ला भी तुम्हारे हैं, एक दुनिया में दोभगवान नहीं होते हैं। गज़लकारअख्तर फ़राज़ ने मंदाकिनी नदीकी अनदेखी पर व्यथा जताई, नदी

मंदाकिनी से वाकई ह पै ्यार तो दखे ो,हरी मोहन राय, संदीप श्रीवास्तवने भी रचनाएं पढ़ीं। समाजसेवीअभिमन्यु भाई ने मंदाकिनी कीअविरल धारा के लिए मार्मिक रचनासस्वर प्रस्तुत की। बांदा की रीनासिंह ने बेटियों और मां मंदाकिनीपर अपनी रचना पढ़कर भावविभोर

कर दिया। इस मौके पर सदर विधायक अनिल प्रधान, अधिवक्ता आलोक द्विवेदी, रामबाबू गुप्ता,रमेश चंद्र द्विवेदी, जगदीश गौतम, राजा करवरिया, ज्योति करवरिया, चित्रा द्विवेदी, सीमा शुक्ला, डा. एसपी त्रिपाठी, रामपाल त्रिपाठी,रामलाल द्विवेदी प्राणेश, राघव चित्रकूटी, राजेश जायसवाल, अर्चन द्विवेदी, आदि ने कवियों काउत्साहवर्धन किया। 


KAVI SAMMELAN KARVI


 

KAVI SAMMELAN KARVI 14.09.2024



 

बुधवार, 11 सितंबर 2024

unchehara kavi sammelan


 शानदार भा  कवि सम्मलेन, गरिमा पूर्ण उचहरा मा। 
मन भर खूब नहाइन श्रोता, कविता आंखर बहरा मा।। 

मुख्य अतिथि नागौद नरेश जू श्री महराज कुमार रहें । 
कार्य क्रम के सूत्रधार सिरि, अनिल सिंह परिहार रहें ।। 

संचालन रविशंकर जी ,जे हास्य व्यंग्य के महापौर  । 
बानी बन्दन शैलेन्द्र शैल के मधुर कंठ सुन सब बिभोर।। 

कवि तेजभान सतना बाले, महिपर अस बानी दिहिन घोर। 
मुक्तक कविता सुन श्रोतागण, पुन पुन गोहरामैं  बन्स मोर।। 

रवि हेमराज का ठाढ़ किहिन, जब बांध भूमिका खाका पुन ।
ता सभ्भ सभा बिदुराय लाग , औ खासा  लाग ठहाका पुन। ।

श्री   शैलेन्द्र   शैल  गाइन  , सुकबार   गीत    के   गीतकार। 
रिमझिम रिमझिम लागै मउसम जब झरैं लाग कविता फुहार।। 

अनिल अल्प जी  के मुक्तक, झकझोर दिहिन अंतस के तार। 
जब  समाज  के चाल  चलन  मा, शब्दन  से किन्हिन  प्रहार।। 

जब रमेश जाखी  जी का भा, हास्य  काव्य खटिया बाला।
ता बजी  जोरदार तारी  औ हंसय   लाग  कन्या    शाला।। 

हास्यावतार रविशंकर जी के हास्य व्यंग्य कै मिलै न थाह। 
सुन सुन उनखर  हास्य छन्द  सभा कह उची वाह वाह ।। 

स्वर्गीय  श्री  शैलेन्द्र  सिंह  उरदना ,  स्मृति का  काव्य  सार ।
उनखे सपूत अभिलाष सिंह, किन्हिन कवि श्रोतन का आभार। 

शुक्रवार, 6 सितंबर 2024

दोहा खंड

  जय गनेस सब जन कही जय जय उमा महेश।
सिउ जी के परिवार,  अस  सुखी  रहय य देस।।
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 गनपति  जू  हैं  देस मा, रास्ट  बाद  के मान। 
साक्षी  है  पूना  अबै , अउर तिलककै आन। ।
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भरिन तिलक जी भक्ति मा, देस भक्ति का रंग। 
जग  मा  न  हेरे  मिली ,  या  इतिहास   प्रसंग। ।।
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रिद्धि सिद्धि सुभ लाभ लै ,आबा हे गनराज। 
अपना का स्वागत करै ,भारत केर समाज। ।
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धन्न  राष्ट्र  के  रीत  का , धन्न है भारत देस। 
देस भक्ति के रूप मा ,हाजिर स्वयं गनेस। ।
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राम देस कै आतिमा राम देस के प्रान। 
हमरे भारत देस कै रामय से पहिचान।।  

 राम कबिन  का  शब्द हैं ,राम संत का ब्रम्ह। 
हुलकी काही आग हें ,औ प्रहलाद का खंभ। । 
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राम देस के प्रान औ, राम बिश्व के गर्व। 
राम ऋचा ऋगवेद कै  साम यजुर्व अथर्व। । 
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राघव मरजादा दिहिन, औ माधव जी कर्म।
दुइ लीखन मा चलि रहा,सत्य सनातन धर्म।।  
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रिमझिम बदरी कइ रही भींजै नगरी गाँव। 
मानो भादव कइ रहा कान्हा जनम उराव।। 
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महादेव  हैं बिश्व मा, समता बादी ईश।
चाहे पूजैं  राम जू ,या  पूजै दशशीश। ।  
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बेल पत्र गंगा जली चाउर चंदन रास। 
शंकर जी पूजैं लगा भारत का बिस्वास ।। 
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कासी पुनि के सजी ही,दुइ सौ सालन बाद। 
गुंजै डमरू  शंख  औ,  हर हर  भोले  नाद। । 
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 किहिस  सनातन सब दिना, जन मंगल का गान। 
प्राणी  मा  सद भावना,   बिस्व   केर    कल्यान।।
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भिन्न भिन्न भाखा हईं ,अलग अलग है भेस।      
एक  सनातन मा  गुहा , पूरा  भारत  देस।। 
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देस भक्ति औ धरम कै, मूल भाबना एक। 
उत्तर कै गंगा करै ,दाख्खिन का अभिषेक। ।
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तीर्थ  हमारे  देश में,  हैं  संस्कृति  के  अक्ष।
वसुधैव कुटुम्बं भावना , जिनका पावन लक्ष।। 
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चह कामिल बुल्के रहैं या रहिमन रसखान। 
सब कै मासियानी लिखिस भारत का गन गान। ।   
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उनही सौ सौ नमन जे कीन्हिन जीबन हूम। 
बंदे मातरं बोल के गें फाँसी मा झूम।। 
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जिनखे माथे पूर भा आजादी का जग्ग। 
हम भारत बासी हयन उनखर रिनी कृतग्ग।। 
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शासक जब करने लगे शोषण अत्याचार। 
ईश्वर को लेना पड़ा परसुराम अवतार। । 
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गाँव नगर पूजन भजन दुर्गा जी का बास। 
कहूं राम लीला शुरू कहूं कृष्ण कै रास। । 
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 जहां बिराजीं सारदा धन्न मइहर कै भूम।   
भक्तन का तांता लगा नाचत गाबत झूम।। 
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जहाँ बिराजीं शारदा धन्न  मइहर का भाग। 
बंदूखै तक बन गईं नल तरङ्ग का राग।।   
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पाबन मइहर धाम है  सिद्ध  शारदा पीठ। 
कोउ बाहन से जा रहा कोउ  आबै हीट। । 
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माता जू किरपा किहिन बइठीं आके कंठ।            
तब कविता गामैं लगा हेमराज अस लंठ।।
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 गाँव -गाँव मा जबा देबारे पंडा दे थें हूम। 
लोक धरम कै चैत मा चारिव कईतीधूम। । 
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आठैं   अठमाइन   चढ़ै  खेर  खूंट  का   भोग। 
जलसा का कलसा धरे ''राम जनम का जोग ''। ।  
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बाना खप्पड़ कालका जबा देवारे हांक। 
बिन प्रचार के चल रही लोक धर्म कै धाक।
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गाँव गाँव   बोबा   जबा  पंडा  दे  थें  हूम।
लोक धरम कै देस  मा चारिव कइती धूम।। 
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नारी सूचक गालियां दिन भर देते साठ। 
वे भी सादर कर रहे दुर्गा जी का पाठ।। 
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इंदिरा सुषमा  चावला, औ मेधा अस तेज। 
हे ईशुर मोरे देस मा, पुन  पुन उनही भेज।। 
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या लोपा  मुद्रा  गारगी , मैत्रेयी  का  देस। 
जहां नारि कै ताड़ना, अत्याचार कलेस। । 
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द्याखा मध्य प्रदेश मा, नारी का सम्मान। 
अब महिला के हाथ मा, मदिरा केर दुकान। ।
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 बिटिआ बेदन कै  ऋचा साच्छात इस्लोक।
दुइ कुल का पामन करइ अउ साथै मा  कोंख।।
**पर्यावरण  के दोहा  31**************
 परयाबरनी प्रेम कै देखी भारतीय खोज। 
अमरा के छहियां करी अपना पंचे भोज।। 
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पीपर  मा  बसदेव  जू  बधी  बरा के सूत। 
तुलसी  जू  कै  आरती  आमा मानैं पूत।। 
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नीम बिराजैं सीतला औ जल बरुन का बास। 
परयाबरन  मा  पुस्ट  है  भारत का बिस्वास।।
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हमरे  भारत  का  रहै  चह  कउनौ  तेउहार।
सब दिन हम पूजत रह्यन बिरबा नदी पहार। ।
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फुन्नी ता चिकनान ही लगा है जर मा रोग।
भारत अउर बसंत का या कइसा संजोग। । 
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युग नायक होते नही किसी जाति में कैद। 
वे बीमार समाज के हैं शुभ चिंतक वैद। ।  
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बिन  गोनरी गगरी धरे रही प्यास का साध। 
तोहरे निता श्रृंगार रस ओखे जिव का ब्याध। । 
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कहूं कहूं बूड़ा चढा भरे खेत औ ताल। 
हमरे बिंध मा चल रही बदरी कै हरताल।। 
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न सामन कै हरिअरी न नदिअन मा धार। 
बइठ किसनमा मेंड़ मा गदिआ धरे कपार।। 
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दादू के सुख संच मा जे मानय आनंद। 
अम्मा अस कउनौ नहीं दुनिआ का संबंध।। 
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अम्मा अपने आप मा सबसे पाबन ग्रंथ। 
माता से बढि के नही कउनौ ज्ञानी पंथ।। 
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 चीता   आबा   देस  मा   सीगट   भा     नाराज।                   
 कहिस कि अब कइसा बनब जंगल का महराज। । 
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  सीगट कै ही चाहना रहै जंगली शान।     
बन का राजा जब रहै सीगट लोखरी श्वान। ।
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जंगल मा साहुत बनी ,सीगट लोखरी केर। 
देख  देख  बिदुरा  थै ,बन  का  राजा शेर।।  
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दहसत माही कलम ही, कागद करै रिपोट। 
राजनीत कब तक करी, गुंडन केर सपोट।। 
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चक्की पीसैं के निता लालू धधे रिसान। 
ताकी जनता का मिलै ठाहर सुद्ध पिसान।। 
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काहू का घंटा बजै औ काहू का ढोल। 
पै किसान के खेत से होइगै यूरिया गोल।। 
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जय जय पाबन अबध कै जय जय भारत बर्ष। 
मंदिर के निरमान का जन जन मा है हर्ष।। 
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कृष्णपक्ष भादव दुइज का दिन सुभ भा बाह।
 जब  पूंछी  इतिहास     ता  देई  वहै   गवाह।। 
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सदिअन के बलिदान का आजु मिला तै मान। 
अबधपुरी मा सुरू भा मंदिर का निरमान।। 
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केत्तेव पुरखा गुजरिगें लये हिदय मा हूक। 
आजु तृप्त भै आतिमा लउलितिया कै भूख।। 
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अपने रीत रिबाज से ओही आबै बास। 
ज्याखर गुरुद्वारा हबै चीनी दूताबास।। 
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राम देस के प्रान औ राम राष्ट के गर्व। 
राम ऋचा ऋग्वेद कै साम यजुर्व अथर्व।। 
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अब भादों के चउथ का होय दुइज से ईस। 
वा कलंक ढोउत फिरै या सुभ सुदिन रहीस।। 
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पुन स्थापित अबध मा राम सहित सब अंस। 
पूरी दुनिया कइ रही जय जय भारत बंस।। 
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भले करोना काल है, पै संबत सुभ नीक। 
पूर पांच सै बरिस मा अबध कै भै तस्दीक।। 
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हमरे भारत देस मा कबिता बड़ी लोलार। 
छत्रसाल राजा बने कबिता केर कहार।।
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मन माही माहुर भरे मुंह मिसरी अस मीठ। 
अपना के बेउहार का लगै कहूं न डीठ।। 
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हमरे देस मा होइ चुके अइसा निर्मल गाँव। 
लोटिआ लै बाहर चलीं बहू बराये पांव।। 
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 चाह वाम पंथी रहै य दाम पंथ के ढ़ोंग।
शोषन किहिन गरीब का जइसा घेंटी घोंग।।
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गाँव गाँव आमै लगा जबसे य अख़बार। 
मिर्रा तक जानैं लगा सब आपन अधिकार। । 
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बड़े जबर संगठन हें जात बाद के हेत। 
तउ बिटिया के बाप का बिकिगा सगला खेत। । 
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 पता नही कउने जघा को कर दे इंसल्ट 
घर से निकरा पहिर के बिन कालर कै सल्ट। । 
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 बड़ा भयानक लगि रहा लोकतंत्र का चित्र। 
गंधइलन  के कान मा खोंसा फूहा इत्र  । । 
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जेखे पीठे म बजा बारां का घरियार। 
ओहिन की दारी सुरिज कढ़ई खूब अबिआर। 
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 पेटहा जब मुखिया बना लुक लुक के खुब खाय। 
अस्पताल   हिंठै  लगा  तउ न  मन पछताय। । 
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 राखी  टठिया मा धरे बहिनी तकै  दुआर। 
रक्षा बंधन के दिना  उई पहुंचे ससुरार।।
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खजुलैया लइके मिला  लडकइया का प्रेम। 
देखतै  जिव हरिआय गा बिसरा सगला नेम।।
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खजुलइयां लइके मिला, हमरे गांव का नेम। 
द्यखतै जिव हरिआय गा,  परिपाटी का प्रेम।। 
        70              
सनकिन सनकी बात भै आगू पाछू देख। 
आँसू माही भीज गय  तब काजर कै रेख ।।
        71            
हाथे मा मेंहदी रची लगा महाउर  पाँव। 
सावन मा गामै लगा कजरी सगला गांव।।
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 पाथर  परिगा   फसल मा   अब  भा मरे बिहान। 
हाय !!दइव !या का किहा कहि के गिरा किसान। ।
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करहा  आमा  नीझरि  गा  ठूठ  ठाढ़  मउहार। 
चौपट होइ गै फसल सब अइसा मारिस वार। ।   
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टप टप अँसुआ बहि रहें खेतिहर परा सिकिस्त। 
खाद बीज का ऋण चढ़ा औ टेक्टर कै क़िस्त। । 
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 चाहे हेन ज्याखर रहै सत्ता औ सरकार। 
कउन गडारी गाडरय नही बनाबै बार। । 
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बहुत बड़े धर्मात्मा बड्डे धन्ना सेठ। 
पै ओखर नोकर रहैं बपुरे भूखे पेट।। 
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पिछले सत्तर साल से ठगी गै जनता खूब। 
नेतन कै गोनियाँ लदी जंतै दोनियाँ दूब। । 
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आरव मिला चुनाव का जागा जनगण देव। 
राजनीत ख्यालैं लगी मेर मेर फउरेब। । 
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कोऊ गाना गा रहा मारै कोऊ गोहार। 
राजनीत मा रंजा  है विंध्य का दक्खिन द्वार।। 
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गाहिंज करै गरीब कै करय दीन का ख्याल। 
'अन्त्योदय' के मंत्र हें पंडित दीनदयाल। । 
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जे   कबहूँ  खाइन  नही,  रोटी  भाई  साथ।
देस मा उइ बांटत फिरैं  जगन्नाथ का भात। ।
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 बेउहर के भीती  लिखा ''अति गरीब परिवार ''।  
   पानी पानी होइ रही बाँच बाँच सरकार।
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 खड़ी जलाका जेठ कै औ भै बिजली गोल। 
कूलर से बिजना कहिस जान्या हमरिव मोल। । 
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 मुंह माही महिपर धरे मन मा भरे कुनैन। 
अहित करै जे आन का ओही सुक्ख न चैन। । 
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 हमरे देस मा चलि रहा  नशा मुक्ति अभियान। 
आधी रात तक अब खुली मदिरा केर दुकान। । 
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मघा नखत बदरी करय धरती का खुशहाल।
महतारी  के  हाथ  कै  जइसा  परसी  थाल।।  
        87
ऊपर दउअय रुठि गा औ नीचे दरबार।
धरती पुत्र किसान कै को अब सुनै गोहर। । 
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 धन्ना  सेठन  के  निता  गर्मी बरखा जाड़।
हमही एक मउसम हबै रोटी केर जुगाड़। । 
       89
कउड़ा के नियरे संघर अपना सेकी देह।
हम धांधर के आग का लिखी उरेह उरेह।। 
       90
फसलन मा पाला लगा परी ठंड कै मार।
भितरघात मउसम करै खेत कहै आभार।।
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 नेता   जी  के  नाव  से  उभरै  चित्र  सुभाष।
अब के नेता लगि रहें जइसा नहा मा  फांस।। 
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 चुटकी भर के ज्ञान का झउआ भर परमान।
तउअव अपने आप का हंस कहै बिद्वान।।  
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सब्द बह्म का रूप है सब्द धरै जब भेष। 
मैहर मा एक संत हें  पंडित   रामनरेश।। 
000000----94--000000000000
             विवेका नंद
पूज   विवेकानंद  मा  है  भारत  का  गर्व।
उनखे बसकट मा रमा जुवा दिवस का पर्व।।
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रचिन  विवेकानंद  जी एक  नबा इतिहास।
भारत  केर  महानता  का   बगरा  परकास।।
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जुरे  शिकागो  मा रहें  दुनिया  के  बिद्वान।
एक सुर मा ब्वालैं लगें जय जय हिन्दुस्तान।।
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चाह    शंकराचार   हों   चाह   विवेका नंद।
भारत के जसगान का रचिन ऋचा औ छंद।।
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अस छरकाहिल मनई भा निठमोहिल  बेउहार।
अब  ता  कारिव  के  परे  हिरकै  नहीं   दुआर।।  
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पूरी दुनिया कइ रही जउने रंझ बिलाप। 
कारन लुच्चा चाइना गुड़ का कोल्हू बाप।। 
         100
बिस्व मा हाहाकार है धरी मउत कै सीन ।
वाखर जुम्मेदार है घिनहा घाती चीन।। 
          101
दुस्ट चाइना बिस्व मा छोड़िस अइसा गाज। 
त्राहि त्राहि जनता करै किलपै सकल समाज।
-----------102--------------------------
नीच चीन के पाप का, देस रहा है भोग। 
रजधानी से गाँव तक बगरा छुतिहा रोग।। 
       103
कहां बची केसे बची, लुकी कहां ठे ओंट।
पेट धंधा से लगि रहा, हमी करोना छोटे।। 
----------104-------------------------------
 कहां धरोगे ऎसे धन को जिसमें लगी हो आह। 
स्वयं ढूढ़ता वह चलने को घर में बारह राह।  
----------105---------------------------
 सूरज नेता विश्व का सबका पालनहार। 
मानसून हित तिप रहा करने को उपकार। । 
----------106------------------------------
 जले घाव पर हो रहा मिर्ची का आघात। 
जैसे कोई पूंछ रहा हो 'भीमराव 'से जात। । 
-----------107---------------------
 जहाँ व्यवस्था ने कसी कस्तूरी  की घींच। 
माणिक दादा ने कहा  उच्च कोटि के नीच। । 
------------108------------------------
आंसू आह कराह वेदना औ पीरा संत्रास। 
श्रम सीकर की टीस से होता सत्यानाश। । 
-----------109----------------------
जब तक मिल जाता नहीं अपना विन्ध प्रदेश।
गंगा अजीज चिंतालि को श्रद्धांजलि है शेष।।
-----------110---------------------
अचरा मां ममता धरे, नयनन धरे सनेह।
माँ शारद आशीश दे,शक्‍ति समावे देह॥
-----------111
रहिमन पनही राखिये,बिन पनही सब सून।
दिल्‍ली से है  गांव  तक, पनही  का कानून॥
       112
गोबर से कंडा बनै, औ गोबरै सेे गउर।
आपन आपन मान है,अपने अपने ठउर॥
       113
जेखे पीठे मां बजा,बारा का धरियार।
ओहिन की दारी सुरिज,कणै खूब अबियार॥
       114
रजधानी मां गहग़़डडृव,खूब पटाखा फूट।
बपुरे हमरे गांव के,धरी बडेरी टूट॥
       115
हमरे लोक के तंत्र का,देखा त अंधेर।
साहब आगू भींज बिलारी,चपरासी का शेर॥
       116
गददारी उंइ करथें, खांय देस का नून।
लोकतंत्र के देह मां,भ्रस्‍टाचार का खून॥
       117
गदियन मां मेहदी रची,लगा महाउर पांव।
सावन मां गामय लगा,कजरी सगला गांव॥
       118
अस कागद के फूल मां,गमकैं लाग बसंत।
जस पियरी पहिरे छलै,पंचवटी का संत।
       119
जुगनू जब खेलिस जुआं,लगी जोधइया दांव।
पुनमांसी पकडै.लगी,अधियारे के पांव ॥
---------120 -----------------
बड़े अदब से बोलिए, उनखर जयजयकार। 
लोकल गुंडन कै हियां चलत हिबै सरकार ।। 
*********************************
मुलुर मुलुर जनता लखै , बन के बाउर मूक। 
साइत ज्यतबव जाय उड़ , अउर जोर से फूंक। । 
       121
हा हजूर हम गॉव के शुद्ध देहाती ठेठ। 
अपना अस काटी  नहीं हम गरीब का पेट। । 
       122
चह कामिल बुल्के रहैं या रहिमन रसखान। 
सब कै मासियानी लिखिस भारत का गन गान। । 
       123
भारत के मरजाद कै जेहि न एकव ग्यान। 
तउ चाहा थी ''हेलना'',   बेटा  बनै  महान। । 
       124
सदा  गरीबों  ने  लड़ा लोक  धर्म  का  युद्ध। 
पर कुलीन की कोख से आये सब दिन बुद्ध।। 
        125 
मॅहगाई मा एक सम ही सब कै सरकार। 
कउन गड़ारी  गड़ारै नहीं बनाबै बार। । 
----------126-----------------
जे आफत मा कइ रहें आपन उल्लू सीध। 
उइ दानव से नीक हें हमरे देस के गीध।।  
-----------127------------------
शासक जब करने लगे शोषण अत्याचार। 
ईश्वर को लेना पड़ा परसुराम अवतार। । 
----------116--------------------
मिला सदा इस देश को बिप्र का आशीर्वाद। 
चाहे परसुराम हों य मंगल अटल अजाद।
---------128----------------
ठाँव ठाँव करी परी बढ़े करोना केस । 
भारत माता बिकल ही बांच सोक संदेस। ।
**********129********************
मिली  करोना  कै  दबा,  बरियत्तन  हे राम। 
अब ता चीन के पाप का, होई काम तमाम।। 
***********130*************************
परी  करोना  रोग  कै,  दुनिया  भर  मा हाक।
मुँह मा मुसका बांध के, दुइ गज रखी फराक।।   
************131**********************      
शुभ सदेश मिलते नहीं कहीं किसी भी ठौर। 
हे ! प्रभु कब तक चलेगा श्रद्धांजलि का दौर। । 
************132*************************     
बढ़ा करोना का कहर सावधान प्रिय मीत। 
मुंह ढकें दूरी रखें होगी अपनी जीत। । 
***********133***********************      
देख रहा है देस या उनहूँ कै करतूत। 
माओ बदिन के निता जे हैं साहुल सूत। । 
***********134***********************      
बहुत सहि चुका देस या नक्सल अत्याचार। 
अब ता ओखे रीढ़ मा हरबी कारी प्रहार। ।
***********135**************************      
सिंघासन बिदुराथै दइ म्याछन मा ताव। 
जनता सिसकै देस मा महगाई के घाव। । 
***********136*************************     
बहिनी से नरकजी तक जे न करैं लिहाज। 
नारी के सम्मान कै ओऊ देंय अबाज। । 
--------  137----------------
घ्वान्घा मा तइती बधी मुदरी नव ग्रह केर। 
बागै  पीर मजार तउ लिहिस सनीचर गेर।। 
**********138*********************
बेमतलब के बहस मा दहकैं ठोंकैं ताल। 
महगाई मा मीडिआ पूँछै नहीं सबाल। ।  
**********139***********************
महगाई जब जब किहिस जनता का हलकान। 
हष्ट पुष्ट सरकार तक लइ लीन्हिन बइठान।  । 
***********140***********************
चुटकी भर के ग्यान का, झउआ भर परमान।
तउअव अपने  आप,  का  हंस  कहै  बिद्वान।।
***********141***********************
भारत माता ही बिकल,सुन के दुःख सन्देश। 
सेना पति का खोय के, शोकाकुल है देस।।
**********142*********************** 
टूटी फूटी सड़क मा, टोल बरिअ र  शुल्क। 
जय हो नेता आप कै, सिसकै बपुरा मुल्क। ।
**********143************************
अपना कहि के चल दिहन, टी बी मा दुइ टूक। 
कोउ  भरा  उराव  मा,  उचै  काहु  के  हूक । ।
*********144*************************** 
मॅहगी जबक चीज भै, महग तेल पिटरोल।
तउ रजधानी मउन ही, कढ़ै न एकव बोल। । 
**********145************************* 
जनता काही बजट या, लागा थै या मेर।
जइसा क़्वामर पान मा, ब्याड़ै लउग चरेर। । 
**********146*************************
सम्पाती  के  दंभ कै,  द्याखा   ऊंच   उड़ान। 
जो जटायु अस उड़त ता, करत देस गुनगान। ।
***********147*************************
गौरव शाली कुर्सियां, बदमिजाज आसीन। 
समझ  रहे  वे  स्वयं  की, मेघा  दक्ष प्रवीन। । 
***********148***************************
दियना  कहिस  अगस्त  से,  दादा  राम जोहार। 
तुम पी लिहा समुद्र का, हम पी ल्याब अधिआर। । 
**********149*****************************
दस दुष्कर्मिन का टिकस, हत्तियार का बीस। 
लोक तंत्र के सदन के, उचै हिदय मा टीस। । 
***********150***************************
केतू  घिनही  लग  रही,  राजनीत  कै चाल। 
टुकुर टुकुर जनता लखै, दइके नाक रुमाल। । 
***********151*************************
दहसत माही कलम ही, कागद करै रिपोट। 
राजनीत कब तक करी, गुंडन केर सपोट। । 
***********152**************************
नारी  के सम्मान  का, नवरातर  है  पर्व। 
ताकी हम पंचे करी, अपने आप मा गर्व। ।
**********153************************
हे ! पुरुषोत्तम राम जू  ,हती  दशानन  मार। 
ताकी कुछ हलुकाय अब, भू मइया का भार। । 
**********154**********************
गाँधी वाद है बिस्व मा एक बिचार अजोर। 
जिनखे बल आई हिआ, आजादी कै भोर। । 
***********155**************************
जिआ सौ बरिस पार तक, जननायक परधान। 
भारत के खातिर हयन, अपना शुभ बरदान। । 
**********156*****************************
जेखे आपन बिछुरिगें, सुधि म भीजै आँख। 
उनही है श्रद्धांजली, के दिन पीतर पाख।। 
**********157***************************
पुरखन के सम्मान का, पितर पाख है सार। 
जे हमका जीबन दयिन,उनखे प्रति आभार। । 
*********158**************************
राष्ट्र गान के हिदय मा, है ज्याखर अस्थान। 
पुनि के चाही प्रान्त  वा, आपन विंध्य महान। ।    
*********159****************************
बिन इस्नु बिन पाउडर, फागुन गमकै गंध। 
द्यांह धरे  बगै  जना ,  रीत  काल  का छंद।।
***********160**********************
अस कागद के फूल मा, महकैं लाग बसंत। 
जस पियरी पहिरे छलय , पंचबटी का संत।।
**********161************************** 
फगुनहटी बइहर चली ,गंध थथ्वालत फूल। 
भमरा पुन पुन खुइ करै, तितली पीठे गूल। । 
**********162*************************
मन मेहदी अस जब रचा, आँखिन काजर कोर। 
सामर  सामर  हाथ  मा, जइसन  गदिया   गोर। ।       
----------163----------------------
असमव उनखे बाग, मा नहीं कोयलिया कूंक। 
मन मसोस रहि जाय औ, उचय हदय मा हूक। ।
***********164**************************
सड़क छाप हम आदमी, उइ दरबारी लोग। 
हम ता बिदुर के साग अस अपना छप्पन भोग। । 
***********165*************************
भेद भाव बाली रही , ज्याखर क्रिया कलाप। 
हर चुनाव के बाद वा, बइठे करी बिलाप। । 
************166**********************
नेतन काही फ्री मिलै , ता लागै खूब उराव। 
जनता के दारी उन्ही , लागै मिरची घाव। । 
***********167************************
नेता  जी  के  नाव  से , उभरै  चित्र   सुभाष। 
अब के नेता लागि रहें, जइसा नहा मा फास।। 
************168***************************
गांव गांव मदिरा बिकै , दबा शहर के पार। 
कउने सब्दन मा करी अपना का आभार। । 
*************169***********************
दारू  बंद  बिहार  मा, लागू कड़क अदेस।
भर धांधर जो पिअय खय ,आबा मध्यप्रदेश।।
आबा मध्य प्रदेश ,हिया ता खुली ही हउली।   
पानी कै  ही  त्रास  खुली मदिरा कै बउली। ।
पी  के  चह  जेतू  मता ,कउनव नहीं कलेस। 
कबहूँ  पाबन्दी  नहीं  अपने   मध्य प्रदेश। ।
*************170**************************
बड़े अदब से बोलिये, उनखर जय जय कार। 
गांव- गांव  मा  चल  रही , गुंडन कै सरकार।।
************171*************************** 
चह जेही थुर देंय उइ ,याकी कहैं कुलांच। 
नेता जी के नाव से, अयी न कऊनव आंच। ।
***********172**************************
सुनिस घोसना कापि गा, थर थर बपुरा पेण्ट। 
खीसा  का  बीमा  करी , जेब  कतरा  एजेण्ट।।  
***********173************************** 
सरबर मा चाकी परै, जब देखा तब जाम। 
ओखे बिन सब अरझ गें , बड़े जरुरी काम। । 
***********174***************************
धन्न  बिन्ध्य  कै भूमि या, धन्न हें बाबूलाल। 
गदगद माटी होइ रही , गांव गली चौपाल।। 
***********175***********************
भूखों  की ए  बस्तियाँ  , औ  फूलों के जश्न। 
ओ माली तेरी नियत पर ,क्यों न उठेंगे प्रश्न। । 
************176*********************
जंगल बिरबा कटरिगे ,मिली कहा अब मित्र। 
फेसबुक मा द्याखत रही , निल कण्ठ के चित्र। ।
***********177************************* 
नील  कंठ  औ शमी  मा  ,देखा  गा   देवत्व। 
दसराहा का शुभ हबै ,दरसन करब  महत्त्व। । 
***********178***************************
अपने छाती  हाथ  धर ,  खुदै  करा    महसूस। 
अइसन कउन किसान है, जे नहि दीन्हिस घूस। । 
**********179********************************
जिधना से भृगु जी हनिंन , श्री हरि जू का लात। 
लछमी जी रिसिआय के, पेल भगीं गुजरात।।  
*********180**************************
बहुत बड़े धर्मात्मा बड्डे धन्ना सेठ। 
पै ओखर नोकर रहैं बपुरे भूखे पेट।। 
*********181*****************************
जे कबहूँ खाइस नही रोटी भाइन साथ। 
ओखे हाथे मा हबै जगन्नाथ का भात। । 
**********182**********************
कबहूँ कुरुआ  मा नपयन ,कबहूँ नपयन कुरई। 
बासमती  उनखे  निता,   हमरे   निता   कोदई। । 
**********183*********************
हाँ  हजूर  हमहूं  हयन , फाँसी  के  हकदार। 
हमसे  कहबररै  नहीं ,  रिक्शा  काहीं  कार। । 
**********184*********************
मघा नखत बदरी करय धरती का खुशहाल।
महतारी  के  हाथ  कै  जइसा  परसी  थाल।।  
**********185*************************
नीचन  मा  सत्सङ्ग  का ,  एकव   नहीं प्रभाव। 
जस घिनहाई मा रमै , कुकूर सुमर सुभाव।।  
**********186***********************
राजनीत औ मीडिआ ,दुनहु का दिल फ्यूज। 
इनही  चाही बोट औ ,उनही ब्रेकिंग न्यूज़। ।  
*********187***********************
अंतस मा पीरा करै, अपनेन का बेउहार। 
लंका जीते राम जू , औ गें अबध मा हार। ।  
**********188*********************
चोरन का चोट्टा दिखय ,औ शाहन का शाह। 
पै झरहन  कै रात दिन ,सुलगै छाती डाह। ।  
**********189*********************
हाथे मा मेंहदी रची ,कर स्वारा सिगार। 
गउरी पूजैं का चली ,सजी सनातन नार। । 
**********190*************
भले  छह्याला   मा रहा  ,सत्त  सनातन  बीज। 
आपन सत छाड़िस नहीं ,परिपाटी अस चीज। । 
**********191**********************
चुनकी  मा चुकरी धरे ,भरे  सतनजा  भूंज। 
 दाऊ कै मइया चली , अगना हरछठ पूज।। 
**********192********************
छुला जरिया कांस औ ,पसही महुआ फूल।  
हरछठ प्रकृति अभार कै ,हिबै भाबना मूल। । 
*************************  
**********193**************
भारत माता के रतन लाड़िल अटल लोलार। 
जन जन के हिरदय बसें दीन्हिस देस दुलार।।
*********194************************* 
अटल बिहारी देस के उज्जर एक चरित्र। 
उनखे अस को देस मा भला बताबा मित्र।। 
*********195**********************
भारत के नेतन निता अटल एक इसकूल। 
देस देय श्रद्धांजली सादर आंखर फूल।। 
*********196********************
आसव  के सामन  मा  सजनी , भा  येतू बदलाव। 
तुम लगत्या हा खजुराहो अस ,औ हम देवतलाव।।  
*********197*******************
धनहन  मा  दर्रा  परा ,पाबस मरै पिआस। 
दम्भी बादर कइ रहें , सामान का उपहास।।  
*********198****************
ऊपर दउअय रुठि गा ,औ नीचे दरबार। 
धरती पुत्र किसान कै , को अब सुनै गोहर।। 
********199*****************
रुपया किलो अनाज मा ,जबसे जांगर टूट। 
दिन भर ख्यालै तास उइ ,साँझ पिअयं दुइ घूंट। । 
********200************************
दिल्ली ललकारै लगी ,सुन रे बीजिंग नीच। 
जो तै ब्रातासुर  हये , ता  हम  बज्र  दधीच। । 
*********201*********************
हर  हर  महादेव  से , गूंज  उचा गलबान। 
ललकारिस जब इंडिया , चीनी पेल परान। । 
*********202**********************
दगा बाज ओ चाइना ,तोही दई तिलाक। 
अब भारत के हद्द मा , चली न एकव धाक। ।
*********203********************* 
बांसठ का भउसा नहीं , सुन ले जाहिल चीन। 
अब  भारत  समरथ हबै ,  घुस  के  लेइ बीन। ।  
********204***********************
कोउ हिंदू मुस्लिम करै ,कोऊ आर्य अनार। 
दोउ जन का चलि रहा ,है घिनहा ब्यापार। । 
*********205********************
किहिन मजुरै देस का ,सबसे ज्यादा काम। 
तउअव जस मानै नहीं ,मालिक नामक हराम।। 
*********206***********************
धोखा दीन्हिस इंडिया ,भरी बिपत के ठाँव। 
तब  आंसू  पीरा लये , भारत  पहुंचा   गांव। ।  
*********207**********************
हमरे हियाँ गरीब कै, सब दिन आँखी भींज। 
धन्ना  से ठ कै आत्मा ,  कबहूँ  नहीं  पसीझ। । 
*********208**************************
रोटी से बढ़ के हिबै ,जेखे नित अमलास। 
वा कइसा अनुभव  करी ,पीरा आंसू त्रास।। 
*********209*******************
हमरे हियाँ मनइन  कै ,गजब निराली शान। 
पेटे  मा  दाना  नहीं ,  मुँह  मा  दाबे   पान। ।   
*********210*****************
भाई  चारा  प्रेम  का , चला  लगाई  रंग। 
तबहिन अपने देस मा बाजी झांझ मृदंग। । 
********211*********************
जनता से बढ़ के नहीं ,लोकतंत्र मा  धाक। 
रय्यात से गर्रान जे , बागा रगड़त नाक।। 
*******212********************
क्यत्ता बड़ा बिचित्र है ,देस भक्त दरबार। 
जे हाँ मा हाँ  न कही ,वा घोसित गद्दार। । 
********213***********************
बामपंथ अस जाड़ है पूंजीपति कस  पूस।
उनखे सोसन दमन मा, सूरज केर जलूस। । 
********214*******************
हमरे देस मा होइ चुकें ,अइसा निर्मल गाँव। 
लोटिया  लै  बाहर  चली , बहू  बराये   पाँव।।  
********215*********************
आजादी के दिआ माँ, भरिन जे  बाती तेल। 
भारत रतन सपूत हैं ,श्री सरदार पटेल। ।  
********216************************
दुनिआ में अनमोल क्षण ,होता माँ का साथ। 
माँ ही अबध की साँझ है ,माँ कशी का प्रात। 
*********217********************
जीवन  में  भरता  रहे , रंगोली  सा  रंग। 
उगे भाग्य का भास्कर ,लेकर नई उमंग। । 
*********218***********************
 जिधना जमुना जी किहिन, यम के तिलक लिलार। 
भाई  बहिन  के  प्रेम  कै ,  बन  गय  दुइज   लोलर। । 
***********219*************************
हयी  हमारे  देस  मा ,  बहिनी  बिटिआ  पूज। 
भाई  बहिन  के  प्रेम  का  ,पाबन  भाई  दूज। । 
************220********************
ईसुर  से  बिनती  करी , यहै  लालसा   मोर। 
अपना का जीबन रहै , जगमग  सदा अजोर। । 
************221*******************
जुगनू जब खेलिस जुआं , लगी  जोधइया दाव। 
पुनमासी  पकड़ै  लगी ,    अधिआरे   के   पाँव। ।
***********222*********************
हमरे  तिथ  तिउहार  मा ,  जब  से चढ़ा बजार। 
हम बांसुरी का भूल के , किहन बरूद से प्यार। ।  
***********223**************************
चारिव कइती लगी है ,मोरे देस मा जोंक। 
जे नहि चूसै पा रहा , वहै रहा है  भोंक  । ।  
**********224**********************
हे लछिमी जू आइये , साथै सिरि गनेस। 
मोरे भारत देस मा , दालिद बचै  न शेष।। 
************************
जिधना से भृगु जी हनीन  ,श्री हरि जू  के लात। 
लछमी  जू  रिसिआय के ,  चली  गयीं गुजरात। । 
**********225*************************
दियना  कहिस  अगस्त से,  दादा  राम लोहार। 
तुम पी गया समुद्र का ,हम पी ल्याब अधिआर। । 
दीपदान  कै लालसा , तीरथ का अनुराग।
चित्रकोट कोउ जा रहा कोऊ चला प्रयाग। । 
**********226********************
धरमराज  कै फड़ सजी ,  चलै जुआं का खेल। 
गाँव  गाँव  मा  झउडि गय , शकुनी बाली बेल। । 
*********227******************
राबन के भय से लुका , जब से बइठ कुबेर। 
तब से धनी गरीब कै अलग अलग ही खेर। । 
********228*****************
उल्लू   का  खीसा  भरा ,  छूंछ हंस कै जेब। 
या भोपाल कै चाल  की, दिल्ली का फउरेब। । 
*********229****************
जब सागर का मथा गा ,कढ़े रतन दस चार।
ओहिन मा धन्वन्तरी , मिलें हमी उपहार। ।
*********230***********************
दुनिआ भर कै औषधी , रोग बिथा संताप। 
धनबन्तरि का सब कहै , आयुर्बेद का बाप। ।
**********231****************
तिली मूंग उर्दा सरा , भा यतरन  झरियार। 
बरा मुगउरा के निता , परी कहाँ से दार। ।
**********232*********************
भारत कै पहिचान हें ,राम बुद्ध औ कृष्न। 
इन माही स्वीकार नहि ,कउनव  चेपक प्रश्न।। 
*********233************************
हिन्दी डाक्दरी पढ़ रही,गदगद मध्यप्रदेस।
पै अंगरेजी  से  लड़ै , हाई कोट  मा  केस।।
*********234*******************
उइ ठेगरी लगबा रहें मार मार के ख्वाँग। 
औ जनता बिदुराथी देखि देखि के स्वाँग। । 
********235********************
ख़बरदार होइ के मिल्या बहुत न मान्या सूध। 
वा गुलदस्ता मा धरे है गोली बम बारूद।। 
*********236****************
 जेही सब मानत रहें जादा निकहा सूध।
ओखे डब्बा म मिला सबसे  पनछर  दूध।।
*********237******************
 गदिअय खजुलइया धरे, कजरी गाबै पर्व। 
अपने  तिथ  तिउहार  का, गाँव समेटे गर्व। । 
********238************
 साहब सलाम औ पैलगी, गूंजै राम जोहर। 
अबहूँ अपने  गाँव मा,  बचा  हबै   बेउहार। । 
*********239*************************
 भाई चारा प्रेम का खजुलइयां तिउहार। 
बढ़ै अपनपौ देश मा मेल-जोल बेउहार। । 
*********240****************
 छुरा घोंपते पेट में चढबाते परसाद। 
जैसे लेखनी पूजता हो कोई जल्लाद। । 
********241******************
धर फूलों के बीच में जिसने ठोकी फ़ांस। 
हमने देखा आँख से उसका होते नाश। ।
********242*******************
 त्राहिमाम जनता करय गुंडा हाकै राज। 
मुड़धारियन के कण्ठ से निकरै नही अबाज। । 
*******243*******************
बने हितैषी घूमते रचते नाना ढोंग। 
शोषण करते जाति का स्वयं जाति के लोग। । 
********244*********************
 जिसने कभी विकास पर दिया तनिक न ध्यान। 
जाति   वाद   उनके  लिए  सत्ता का सोपान। ।
*********245******************
 'हंस ' योग्यता का सदा रहा सुखद परिणाम। 
अफजल को फाँसी मिली राष्ट्राध्यक्ष कलाम। । 
**********246***********************
भले अभावों से सदा रहे जूझते जंग। 
पर जीवन के चित्र में हो ईमान का रंग। । 
**********247**********************
 उनखर हिबै समाज मा सबसे लम्बी पूछ। 
जे बैभव से भरे हें संवेदना से छूछ। । 
**********248***********************
लेखनी जब करने लगी कागद लहू लुहान। 
 ब्रह्म शब्द तक रो पड़ा धरा रह गया ज्ञान। । 
**********249**********************
 बपुरा सुविधा संच का तरसै हिंया मजूर। 
अपना का आँसै नही वा भर मुंह कहै हजूर। । 
**********250*********************
 सत्ता अउर साहित्त कै बस येतू बिरदन्त। 
उनखे कई 'जयन्त ' औ हमरे ठई ''दुष्यंत "। । 
*********251************************
 यहाँ पसीना देश को देता पूरी क़िस्त। 
पता करो क्यों आज भी वो है पड़ा सिकिस्त। । 
*********252***********************
  दशा देखिये श्रमिक की या उसका उन्माद। 
पीड़ा   में   मावाद   है  मुंह में जिन्दावाद। । 
********253***********************
 है प्रत्यक्ष प्रमाण सी , श्रम की  साधक आह। 
खड़ा हुआ ये ताज है, वो हो गये तवाह। । 
********254**************************
 ऐसा जीवन दीजिये हे राम तुम्हें सौगन्ध। 
मेरे रिश्तों से कभी आये न दुर्गन्ध। । 
*******255*******************
घातक भ्रष्टाचार से यहाँ मिलावट खोर।
करते है ये देश का तन मन धन कमजोर। ।
*********256*********************
भारत माही जब मची सामाजिक दहचाल। 
मानववाद लय आय गें पंडित दीन दयाल।। 
**********257*******************
अपने  तीरथ बरथ मा राष्ट्र वाद का प्रेम। 
एकात्म के ग्रंथ मा सबका  हित औ क्षेम।। 
**********258************************
बसै  देस कै  आतिमा टोला गाँव देहात। 
पंडित जी के  सूत्र  हें  जगन्नाथ अस भात।। 
**********259**********************
राष्ट्र वाद के डाकिया एकात्म के मूल। 
पंडित जी शतशत नमन करै बघेली फूल।।
*********260************************ 
 चाहे ये सत्ता रहे या कि और  विधान। 
पंडित दीनदयाल का बिखरे न अभियान। । 
**********************************
 आंसू क्रंदन का यहां मत कीजै व्यापार। 
अन्य दिशा में मोड़िये राजनीति की धार। । 
**********261***********************
 सदा गरीबों ने लड़ा लोकधर्म का युद्ध। 
पर कुलीन की कोख से आये सब दिन बुद्ध। । 
**********262***************************
 पूंजी पति की देखिये सूझ बूझ तरकीब। 
हरे लाल के रंग में बंटता रहा गरीब। । 
**********263*****************
 वैचारिक सी वामियां सिद्धांतों के पाप । 
जनमेजय को डस रहे नाप नाप कर सांप । । 
**********264********************
जनता के हाथे हबय लोकतंत्र का मान। 
चला चली सब जन करी सौ प्रतिशत मतदान।। 
🌻🌻🌻🌻🌻🌻265
रहा गरीबन से सदा बोटन का बेउहार। 
दूबर का एकादशी मोटन का तेउहार।। 
🌻🌻🌻🌻🌻🌻266
अबै गरीबन के लगी टप टप अंसुअन धार। 
अइसा मा कइसा लिखी पायल कै झंकार ।।
🌻🌻🌻🌻🤗267
कत्ती घिनही लग रही राजनीति कै चाल।
कबौ उखाड़ै बार वा कबौं उधेरै खाल।। 
*************268*****************
पन्नी बीनत बीत गै ज्याखर उमिर किसोर। 
ओखे दुअरै कब अइ बाल दिबस कै भोर।। 
🌻🌻🌻🌻🌻269🌻🌻🌻🌻🌻
जे कबहूं जानिस नही पोथी अउर सलेंट। 
बूटन मा पालिस किहिस होटल घसिस पलेट।। 
🌻🌻🌻🌻🌻270🌻🌻🌻🌻🌻
हिंआ ब्यबस्था खाय गै पंजीरी औ खीर। 
गभुआरन के भाग मा बदी कुपोसित पीर।। 
🌻🌻🌻🌻🌻271🌻🌻🌻🌻🌻
दरबारी जेही कहै बोटहाई मा नात। 
पै कबहूं देखिन नही वाखर दुधिया दांत।। 
🌻🌻🌻🌻🌻272🌻🌻🌻🌻🌻
हबैकुपोसित देस मा जेखर ल्यादा घींच। 
ओ! बालदिबस फुरसत मिलै ता उनहूं का सींच।। 
***********273************************
जातिहाई का जानिगें उइ अटकर अंदाज। 
सुदिन देख ह्यराय चलें जब बिटिया का काज। । 
जब बिटिया का काज जबर है दइजा  नाहर। 
सुन दहेज़ का भाव थूंक न निकरै बाहर। । 
बिन दइजा  के बड़ मंशी का को अपनाई। 
हंस कहिन बस वोट के खातिर ही जातिहाई।। 
***********274********************
वे महापुरुष से खेलते जातिवाद का खेल। 
चाहे नेहरू ,भीम ,हों य सरदार पटेल। । 
**********275*********************
महापुरुष हैं देश में, राष्ट्रवाद के गर्व। 
उनके नाम होने लगा जातिवाद का पर्व। । 
********276*********************
जब 'लज्जा 'की लेखनी, की खींची गई चीर। 
लेते रहे ईनाम वे, रही सिसकती पीर। । 
***********277****************
जो कलबुगी पे मुखर हैं औ रूश्दी पर मौन।
उनसे जाकर पूछिये है पाखण्डी कौन। ।
***********278***************
 हवन कुण्ड मागय लगा पण्डित का बलिदान। 
 पूजा पत्री छोड़ के पेल भगें जजमान। ।
***********278**********************
 जो राष्ट्रीय पहिचान म कहू ठे होत कबीर। 
तब न होत घिनहा यतर धरम केर उपचीर। । 
**********279*********************
 खड़ी जलाका जेठ कै औ भै बिजली गोल। 
कूलर से बिजना कहिस जान्या हमरिव मोल। । 
**********280*******************
आने वाली पीढ़ियाँ कर सकती हैं नाज़। 
दृढ़ता से आतंक का जो कर सके इलाज।  ।  
**********281******************
चांदी  कै चम्मच करै , पतरी केर दुलार। 
या बरबस्ती देख के , दोनिआ परी उलार।।  
**********282**************************
बड़ा अमारक जाड़ है ठठुरा है परधान। 
उइं बिदुराती हईं कह 'दुइ रूई 'का उपखान।।
***********283*********************
 छुरा घोंपते पेट में चढबाते परसाद। 
जैसे लेखनी पूजता हो कोई जल्लाद। । 
**********284********************
राहिमाम जनता करय गुंडा हाकै राज। 
मुड़धारियन के कण्ठ से निकरै नही अबाज। ।
***********285*********************
बने  हितैषी  घूमते , रचते  नाना  ढोंग। 
शोषण करते जाति का स्वयं जाति के लोग। ।
**********286*******************
 उनखर हिबै समाज मा सबसे लम्बी पूछ। 
जे बैभव से भरे हें संवेदना से छूछ। । 
**********287***********
नफरत   कै खेती  करैं ,मन  के  रोगी लोग। 
 हे धनबंतर  जी करा ,उनखर हिदय निरोग।।  
********** 288********** 
देस मा  भ्रस्टाचार का, ह्वाथै यतर निदान।
जइसा जींस पहिर के काटै फसल किसान।।
********    289     ************   
ओतुन परबस्ती करा , जेतू कूबत पास।
परोपकार मा चला गा ,भोले का कैलास।। 
*******  290   ***********
रहिमन पनही राखिये ,बिन पनही सब सून। 
दिल्ली से देहात तक ,पनही का कानून।।  
*********  291   **********
श्री राघव जू आ रहें बीते चउदह साल। 
या उराव मा जलि रहे घर घर दीप मशाल।।
************292*****************
येतू  दीन्हिस  देस  का,  आभारी  है  हिंद । 
तउअव  रोजी के निता , तरसै बपुरा बिंध । । 
************293*********************
पहिले  प्रेम  प्रसंग  का ,खूब  भा  लोकाचार।
 फेर ओही लुच्ची  कहिस ,वा ओहि दहिजार।। 
*************293****************** 
बिद्या का मंदिर दिहिन उंइ निकहा के लीप।
कोऊ  लइगा  जंगला,  कोऊ  सरिआ चीप।।
*************294*********************** 
वा  कुपंथ कै देख ल्या केतू कुटिल हिआव। 
आर्य द्रबिन मा  भेद कइ ,बाँट रहें हें गॉव।। 
*****************295********************
धन्न चनाक्य अस गुरू का ,धन्न माँ धर्मा कोख। 
भारत माता    का   दइन , पूत महान अशोक। । 
****************296*********************
देखा  केतू  गहिर  है  लोकतंत्र  का कुण्ड।
राजकुमार जयंत तक बनगे कागभुसुण्ड।।
******************297***************
कहिस कुलांचै धरम  का, दिहिस आतिमा रोय।
जइसा  कउनव  बाप कै, बिटिआ भागी होय।। 
******************298*****************
जउनै दल हेन न करी, धरम कै जय जयकार।
बामपंथ  अस  होइ  जई,  वाखर   बंटाधार।। 
******************299****************** 
राजनीत कै नीचता, देखि के जुग चउआन।
गांधी  बादी  देंह  मा,   बाम   पंथ  के  प्रान।।
*****************300********************
तानासाही सोच का लोकतंत्र न रास।
पेटे मा अकरास ही मुंह माही उपहास।।
***************310*******************
बंदेमातरम जब कहिन, हमरे देस के पूत। 
सुन बइरी थर्राय गा, दिहिस पेण्ट मा मूत।।  
**************302**********************
दुनिआ माही को करी, हमरे देस कै सउज। 
हर हर महादेव जब, ब्वालै आपन फउज।।  
*************303*************************
मोदी  हमरे  देस के, स्वाभिमान  परतीक। 
भुट्टो कै अउकात ही, जइसा पान कै पीक।।  
*************304************************
कमल नाथ जी कइ दिहिन रिन माफी एलान।
कहिस किसनमा की जना बहिला भंइस बिआन।।
****************305************************
भारत  कै ही  कामना, अपनव  बनी नजीर। 
जइसा माता इंदिरा, दिहिन "पाक" का चीर।।   
****************303************************
काही है सुभ कामना , क्याखर हबय बिधंस। 
नये साल  का  राशिफल , बांच  रहे  हैं हंस।। 
***************304* ********************



न सामन कै हरिअरी न नदिअन मा धार।
बइठ किसनमा मेंड़ मा गदिआ धरे कपार।।


 
============305=================
बड़ा  अमारक जाड़  है,  ठठुराबय    दहिजार। 
साजन से सजनी   कहिस, लगत्या आजु पिआर। । 
*****************306***********************
जाड़े का ओरहन दइस,भींज वास कै रात। 
ता संज्ञा का छोड़ के, सुरिज कढ़ा बिदुरात।। 
*****************307********************
बामपंथ अस काइंया, हबइ करोना गाज। 
हमरे  बइरी  चीन के,  ईं  दूनउ उपराज।।  
*****************308********************
राजनीत  औ  धरम   का, जुगन जुगन से साथ।
अजुअव हें  उइ साथ मा,  भला कउन नई बात।। 
******************309**************
हे जग जननी सारदे, मै मांगों कर जोर।
भारत मा सुख संच कै,पबन बहै चहुओर।।
नबा साल मा सब जने, रहैं निरोग प्रसंन्न।
सब काही रोजी मिलय, खेतन मा हो अन्न।।
****************307****************
बड़ी बड़ाई का लगै अपना का जो मोह।
ता कुछ जन का जोर के लेई बनै गिरोह।।
******************308*******************
कूकुर का कूकूर लगै,  दिखय  सिंह  का शेर। 
यातो ओछाहिल सोच ही,याकि नजर का फेर।। 
******************309*******************************
सत्य अहिंसा प्रेम का गाँधी एक बिचार।
गाँधी दरसन मा हबै जीवन का सुख सार।।
 ********************310*****************************************
हम डिस्पोजल चाय के, उइ नेतन कस ओठ। 
फिरि के पुन झांकिन नहीं, जब से परिगें बोट।। 

=======================================
            भारत रतन पटेल 311 
आजादी  के दिआ मा,  भरिन  जे  बाती तेल। 
देस  करै  सत  सत नमन ,भारत रतन पटेल।। 
                         312                                 
पांच सै बांसठ राज मा, अइसा कसिन लगाम। 
सब उनखे  ललकार से ,लिहिन तिरंगा थाम। ।
                       313  
 सिरि  सरदार पटेल कै , सूझ बूझ औ ढंग। 
 देख के साहस बीरता ,दुनिया रहि गय दंग।
                      314 
गुरिआ गुरिआ गुहि दिहिन ,देस का साहुत सूत। 
जय  बल्लभ  'सरदार'  जी,  भारत   रतन  सपूत। ।
                     315 
हम भारत बासी करी ,शत शत नमन अभार। 
जब  तक चंदा  सुरिज हें,  नाव चली सरदार।  । 
                    316  
              शम्भू काकू
***********************************
जहां बघेली आय के, होइगै अगम दहार। 
वा रिमही के शम्भू का, नमन है बारम्बार।। 
                 317
बघेली  साहित्त के, शम्भू  काकू   सिंध। 
देह धरे गाबत रहा, मानो कबिता बिंध। । 
                318
गांव गली चउपाल तक, जेखर बानी गूंज। 
श्री काकू जी अमर भें, ग्राम गिरा का पूज। । 
               319
लिहे घोटनी  चल परैं, जब कबिता के  संत। 
सब कवि काकू का कहैं, रिमही केर महंत। ।
                 320
न चुट्कुल्ला उइ कहिन, ना अभिनय परपंच। 
बड़ा मान आदर दइस,तउ कबिता का मंच। । 
              321 
जेखे कबिता के बिषय, आंसू आह कराह।  
अच्छर फरयादी बने,  काकू  खुदै  गबाह। ।
             322
कबिता  का पेसा नहीं,  जेखे  कबहूं  चित्त। 
बिन्ध्य लिलारे मा, लिखे, काकू केर साहित्त। ।   
             323
आंखर आंखर मा बसय,काकू कै कहनूत। 
हंस  बंदना  कइ  रहा, धन्न   बघेली   पूत। । 
 **************************************
            324
बब्बा जी कीन्हिन रहा खसरा केर अपील।
नाती तक पेसी चली बिदुराथी तहसील।।  
**************************************
                325     
भारत के इतिहास मा आबा अइसा बक्त। 
महबूबा तक बन गयीं महादेव कै भक्त।।  
 
********************  हेमराज हंस 

रविवार, 18 अगस्त 2024

मंचीय मुक्तक

              मुक्तक  
*********01 ***********
फलाने कै भंइसी निकहा पल्‍हाथी।
********2**=============
पढ़इया स्‍कूल छूरा लइके अउथें।
*******3**=============
हम जेही मांन्‍यान कि बहुतै बिजार है।
*******4 ********************
पियासा परा हम, हेन नल क देख्‍यान।
----------5----------------------------------
नल तरंग बजाउथें,बजबइया झांझ के।
********6******************
शांती क पाठ लड.इया से पूंछत्‍या है ।
********7*****************
भइस अबै बिआन नही,उंइ सोठ खरीदाथें।
********8*********************
घिनहौ क नागा नही कही,येही बड़प्‍पन मान कहा ।
************9******************
चेतना के देंह का उंइ झुन्‍न न करै।
******10*********************
बलफ फियुज होइगा झालर पकड.के।
******11*********************
काल्‍ह बतामैं गंगा भट्‌ट।
******12********************
उई बड़े  अहिंसावादी हें पै रहा थें नींद मा।
*******13********************
पुलिस जाना थी जेबकतरा आय।


हाथे माही थाम्हे माउस।
********17*********************
उनखेे कइ शरद्‌‌ अस   पूनू
==============================
दधीच  कै हड्डी औ पोस्टर मामा  मारीच  का।
छहेला  का  सराही  की  सराही   बीज   का। ।
अरे   कूकूर       भले      वफादार          ह्वाथै
पै    ओहू    के    जक्शन   लगा थै रेबीज़ का। ।
********************************
अब एक रुपिया कै भांज नही मिलै।
गिरे के बाद भुंइ मा गाज नही मिलै।।
उंइ अब चुल्लू भर पानी लये ठाढ हें
पै बूड़ै का अटकर अंदाज नही मिलै।।
******************************
तुलसी के बगिया मा नकटी कहां से आय गै।
यतना पचामै कै  शक्ती  कहाँ  से  आय  गै  । ।
जे काल्ह तक धरम का अफीम बताउत रहें
वा कुपोषित बिचार मा भक्ती कहां से आय  गै। ।
**********************************
टेक्टर जब से आबा ता बरदा हेराय गें ।
गाँव   के  रीढ़   का   गरदा    हेराय  गें ।।
अब चाल चेहरा चरित्र कै चरचा नहीं चलै
घिनहा पानी निकरैं का नरदा हेराय गें । ।  
*******************************
किसान बिचारा   खाद     का    तरसा   थै।
निर्बल  बपुरा  फरिआद    का   तरसा थै।।  
कोऊ जीबन  काटा रहा है  बृद्धाआश्रम मा
औ कोऊ ता बपुरा हेन अउलाद का तरसा थै।।
********************************
खादी से कहां चूक भै चरखा बताउथें।
केतू भा अजोर य करखा बताउथें॥
जे रोज बोतल का पानी पियाथें
उइ अपने का नदियन का पुरखा बताउथें॥
*****************************
चला फलाने दारू बेंची।
नदिया खोदी बारू बेंची।।
हरिश्चाद के देस के आह्यन
लड़िका औ मेहरारू बेंची। ।
******************

उंई चाहाथें देस मा बाउर पइदा होंय ।
औ उनखे घर मा जनाउर पइदा होंय ।।
एक   बूंद   पानी   न   बरखै  खेत मा
औ सीधे धान नही चाउर पइदा होंय।।
--------------------
भाई  अस  दूसर  नही  जो  भउजाई  बांख  न  होय। 
बाउर अस है वा समाज जेखर आपन भाख न होय। । 
देस कै   जनता  नेम  प्रेम  भाई चारा  से  रहि  तो  लेय 
जो हमरे देस मा नफरत कै कारी  अँधिआरी पाख न होय। ।
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चमचा गीरी जेखे कलम कूंची मा नहीं। 
वाखर  नाव  अपना  के  सूची  मा नहीं।।
देस  कै  जनता  जाना  थी    नीक   के  
जउन मेंछा मा ही शान वा पूंछी मा  नहीं ।।
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हम फुर कही थे ता कान उनखर बहा थै।
पता नही  तन मा धौं  कउन  रोग रहा थै। ।
तन   से    हें   बुद्ध   मन    से   बहेलिया
पंछी  अस  पीरा  य  लोकतंत्र सहा थै ।।
*****************
हमरे ईमानदारी का रकवा रोज घटा थै। 
या खबर बांच बाँच के करेजा फटा थै। । 
जब उनसे पूंछयन ता कहा थें फलाने 
चरित्र का प्रमाण पत्र थाने मा बटा थै। । 
******************
वा  एक   पुड़िया   कुरकुरा   मा  रगाय  गा।
पै  रोय  के सबका   नींद   से   जगाय   गा ।।
उनही   पुटिआमै   का  अउराथै    नीक  के 
घुनघुना  धराय के अउंटा पिअय सिखाय गा।।
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या  ता अहरी आय  बखरी  कहूं  अउर  ही। 
मन तउलय के निता तखरी कहूं अउर ही। 
अब ता  कायलिव रचाये ओंठ   बागा थी 
प्रेम  काहू से  ता  पैपखरी  कहूं  अउर  ही।। 
******************
तुम हमार आँसू देखा हम तोर बिदुरखी देखीथे। 
हाथे मा रिमोट लये हम आपन कुरकी देखीथे। ।
कोउ नहि आय दूध का धोबा राजनीत के पेशा  मा 
साँझ सकारे चाय पिअत हम खबर कै सुरखी देखीथे। ।
*********************
शुक्राचार  घुसें  तुम्मी मा। 
कनमा  होइगें  हुम्मी  मा।। 
जबसे उइं खजुराहो देखिन  
ग्यान  दइ  रहें  चुम्मी  मा।।
*******************
कोऊ अमीरी से ता कोउ गरीबी से दुःखी है। 
कोउ दुसमन से ता कोउ करीबी से दुःखी है। । 
या   दुनिया   मा   सुख   संच  हे रे नहीं  मिलै  
कोउ मियाँ  से ता  कोउ  बीबी  से  दुःखी  है। ।     
*****************************


**************

      सिरि बानी बन्दना

                    *********************

हे मातु शारदे संबल दे तै निरबल छिनीमनंगा का।

मोरे देस कै शान बढै    औ बाढै मान तिरंगा का॥

दिन दिन दूना होय देस मां      लोकतंत्र मजबूत।

घर घर विदुषी बिटिया हों औ,लड़िका होंय सपूत॥


विद्वानन कै सभा सजै औ पतन होय हेन नंगा का।

मोरे देस कै शान बढै   औ बाढै मान तिरंगा का॥


बसुधैव कुटुंम्‍बं' केर भामना  बसी रहै सब के मन मां।

औ परबस्‍ती कै लउलितिया, रहै कामना जन जन मां ॥

देस प्रेम कै जोत जलै,    कहूं  मिलै   ठउर  न  दंगा॥

मोरे देस.........................


खेलै पढै बढैं  बिद्यार्थी,  रोजी  मिलै   जमानन  का।

रोटी औ सम्‍मान मिलै, हेन घर घर बूढ़ सयानन का॥

रामेश्‍वरं  मां चढत  रहै जल, गंगोतरी  के गंगा का।

मोरे देस कै ......................

..............................

                           मैहर धाम  


मइहर है जहां विद्या कै देवी, विराजी माँ शारद शक्‍ति भवानी।

पहिलय पूजा करय नित आल्‍हा,औ देवी के वर से बना वरदानी॥

मइहर है जहा लिलजी के तट ,   मठ मह शिव हें औधड.दानी॥

ओइला मां मन केर कोइला हो उज्‍जर,लंठव ज्ञानी बनै विज्ञानी।

मइहर   है   जहा  संगम   है ,   सुर  सरगम  कै झंकार सुहानी॥

अइसा  पुनीत  य  मइहर  धाम कै, शत  शत वंदन चंदन पानी॥

**************************************

                          बिटिया

ठुम्मुक ठुम्मुक जाथी  इस्कूलै  ड्रेस पहिर के बइया रे।

टाँगे  बस्ता  पोथी  पत्रा  बिटिया   बनी     पढ़इया रे। ।


खेलै   चन्दा,   लगड़ी,  गिप्पी,  गोटी,  पुत्ता  -पुत्ती  ।

छीन भर मा  मनुहाय जाय औ छिन भर माही कुट्टी। ।

बिट्टी  लल्ला  का  खिसबाबै   ''लोल बटाइया रे''। ।


ठउर   लगाबै  अउजै  परसै  करै चार  ठे त्वारा।

कहू  चढ़ी  बब्बा  के कइयां  कहु अम्मा के क्वारा। ।

जब  रिसाय  ता  पापा  दाकै  पकड़ झोठइया रे।


बिन बिटिया के अंगना अनमन घर बे सुर कै बंसी।

बिटिया दुइ दुइ कुल कै होतीं मरजादा बड़मंसी। ।

हमरे  टोरिअन  काही   खाये   जा  थै  दइया रे।


भले  नही  भइ  भये  मा  स्वाहर पै न माना अभारु।

लड़िका से ही ज्यादा बिटिया ममता भरी मयारू। ।

पढ़ी  लिखी ता  बन  जई  टोरिया  खुदै  सहय्याँ रे।


कन्यन कै होइ रही ही हत्या बिगड़ि  रहा अनुपात।

यहै पतन जो रही 'हंस ' ता कइसा सजी बरात। ।

मुरही  कोख  से   टेर  लगाबै  बचा  ले मइया रे। ।

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                      शहीदन कै वंदना

       -------------------

धन्न धन्न सौ बेर धन्न य देस कै पावन माटी।

हमरे पुरखन का प्रताप औ भारत कै परिपाटी। ।

 

कहय लाग भारत माता धन्न बहिनी डोर कलाई का।

जे सीमा मा संगीन लये दइन जीवन देस भलाई का। ।


धन्न कोख महतारी कै जे पूत दान दइन मूठी मा।

मातृभूमि के देस प्रेम का दूध पिआइन घूंटी मा। ।


धन्न धन्न वा छाती का जेहि एकव है संताप नही।

बलिदान पूत भा देस निता धन्न धन्न वा बाप कही। ।


धन्न धन्न वा येगुर काहीं  वा सेंदुर कै मांग धन्न।

ज्याखर भा अहिवात अमर वा नारी केर सोहाग धन्न। ।


उई भाईन कै बांह धन्न मारिन सुबाहु मरीची अस।

बइरी वृत्तासुर मरै का जे बन गें वज्र दधीची अस। ।


औ अपने अपने रक्तन से वन्दे मातरम उरेह दइन.।

जब भारत माता मागिस ता उई हँसत निछावर देह दइन। ।


बोली हर हर महादेव कै बोल ऊचें सरहद्दी मा।

औ बैरिन का मार भगाइन खेलै खेल कबड्डी मा। ।


धन्न उई अमर जबानन का जेहिं कप्फन मिला तिरंगा का।

जब राख फूल पहुंची प्रयाग ता झूम उचा मन गंगा का। ।


ताल भैरवी देश राग तब गूंजी घाटी घाटी।

धन्न धन्न सौ बेर धन्न या देस कै पावन माटी। ।

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         आपन बोली

महतारी अस लगै मयारू घूंटी साथ पिआई।

आपन बोली बानी लागय मानस कै चौपाई।।


भांसा केर जबर है रकबा बहुत बड़ा संसार।

पै अपने बोली बानी कै अंतस तक ही मार।।

काने माही झनक परै जब बोली कै कबिताई।

आपन बोली बानी लागय मानस कै चौपाई।।


समझैं आपन बोली बानी बोकरी भंइसी गइया।

नीक लगै जब लोक गीत अस गाबै कहूं गबइया।।

अपने बोली मा कोल दहकी लोरी टिप्पा राई।

आपन बोली बानी लागय मानस कै चौपाई।।


महकै अपने बोली माही गांव गली कै माटी।

आपन बोली महतारी के हांथ कै परसी टाठी।।

अपने बोली मा गोहरामै घर मा बब्बा दाई।

आपन बोली बानी लागय मानस कै चौपाई।।

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          टोरिया कहा है

बारजा  बचा  है  ओरिआ  कहाँ ही।

पिल्वांदा के दूध कै खोरिआ कहाँ ही।।


राशन कार्ड हलाबत तिजिया चली गै

कोटा बाली चीनी कै बोरिआ कहाँ ही।।


आजादी के अश्व मेध कै भभूत बची ही

गांधी के लोकतंत्र कै अजोरिआ  कहाँ ही।।


वा प्रदूषण कै पनही पहिरे मुड़हर मा चला गा

घर गाँव  के अदब कै  ओसरिआ कहाँ ही।।


नोकरी लगबामैं का कहि के लइ  गया तै

वा गरीब कै बड़मंसी टोरिआ कहाँ ही।।


सार अबाही खूंटा ग्यरमा औ अम्मा का पहिलय सुर

कामधेनु कै पामर वा कलोरिआ कहाँ ही।।


घर के सुख संच कै जे जपत रहें माला

वा पिता जी कै लाल लाल झोरिआ कहाँ ही।।

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 मजूर   [बघेली कविता ]


हम मजूर बनिहार बरेदी आह्यन लेबर लगुआ।

करी मशक्क़त तनमन से हम गरमी जाड़े कदुआ। ।


माघ पूस कै ठाही हो चह नव तपा कै दुपहरिया।

सामान भादौ के कादौ मा बे पनही बे छतरिया। ।

मिलब कहू हम पाथर फोरत करत कहू हरवाही।

खटत खेत खरिहान खान म काहू ताके पाही। ।

हम कहू का काम निकारी औ काहू के बंधुआ।


''कर्म प्रधान विश्व करी राखा ''कहि गें तुलसी दास।

कर्म देव के हम विश्कर्मा देस मा पाई त्रास। ।

शोषक चुसि रहे हे हमही अमर बेल की नाइ।

अउर चुहुकि के करै फराके गन्ना चीहुल घाई। ।

दुधिआ दातन मा बुढ़ाय गा हमरे गाँव का गगुआ।

 

हम पसीना से देस का सीच्यन हमरै किस्मत सूखी।

देस कोष मा भरयन लक्ष्मी घर कै लक्ष्मी भूखी। ।

घूंट घूँट अपमान पिअत हम गढ़ी प्रगति कै सीढ़ी।

मन तक गहन है बेउहर के हेन रिन मा चढ़ गयीं पीढ़ी। । 


फूंका  परा है हमरे घर मा तउ हम गाई फगुआ। ।

हम मजूर ------------


हमिन बनायन लालकिला खजुराहो ताज महल।

हमिन बनायन दमदम पालम सुघर जिहाज महल। ।

हमहिंन बाँध्यन नदिया नरबा तलबा अउर तलइया।

हमिन बनायन धमनी चिमनी लखनऊ भूल भुलइया। ।

हम सिसकत सीत ओसरिया माहीं धइ के सोई तरुआ।

 

कहै क त गंगा जल अस है पबरित हमार पसीना।

तउ ''कर्मनाशा ''अस तन है पीरा पाले सीना।।

बड़े लगन से देश बनाई मेहनत करी आकूत।

मेहनत आय गीता रामायन हम हन तउ अछूत। ।

छुआछूत का हइया दाबे देस समाज का टेटुआ।

हम मजूर ---


बिन खाये के गंडाही का है छप्पन जेउनार।

कनबहिरे भोपाल औ दिल्ली को अब सुनै गोहर। ।

जब जब माग्यन उचित मजूरी तब तब निथरा खून।

पूंजी पति के पॉय तरी है देस का श्रम कानून। ।

न्याय मांगे मा काल्ह मारे गें दत्ता नियोगी रघुआ।

हम मजूर ---------------------------------


 भले ठेस ठेठा कराह से हाँकी आपन अटाला।

पै हम करब न घात देस मा भ्रष्टाचार घोटाला। ।

जे खून पसीना अउंट के माड़ै रोटी केर पिसान।

हमी उराव है अइसन माई बाप कै हम संतान। ।

हमरे कुल मा पइदा नहि होंय डाकू गुंडा ठगुआ।

हम मजूर बनिहार बरेदी आह्यन लेबर लगुआ। ।

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         मोबाइल

सरासरीहन लबरी हिबै मोबाइल मा।

सुन्दर कानी कबरी हिबै मोबाइल मा। ।


क्याखर कासे प्यार की बातैं होती हैं

दबी मुदी औ तबरी हिबै  मोबाइल मा। ।


विस्वामित्र मिसकॉल देख बिदुराय लगें

अहा ! मेनका  परी हिबै  मोबाइल मा। ।


नई  सदी  के  हमूं  पांच  अपराधी हन

जाति गीध कै मरी हिबै  मोबाइल मा। ।


कोउ हल्लो कहिस कि आँखी भींज गयीं

काहू कै खुश खबरी हिबै  मोबाइल मा। ।


अब   ता   दण्डकवन   से  बातैं  होती हैं

श्री राम कहिन कि शबरी हिबै  मोबाइल मा। ।


''हँस ''बइठ  हें  भेंड़ा   भिण्ड    बताउथें

द्याखा कइसा मसखरी हिबै मोबाइल मा। ।

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        नेता जी

उइ कहा थें देस से गरीबी हम भगाय देब

गरीबी य देस कै लोगाई आय नेता जी।

गरीबी भगाय के का खुदै तू पेटागन मरिहा

वा तोहई पालै निता बाप माई आय नेता जी। ।

गरीबी के पेड़ का मँहगाई से तुम सींचे रहा

तोहरे निता कल्प वृक्ष नाइ आय नेता जी।

भाषन के कवीर से अस्वासन के अवीर से

वा तोहरे बोलिआय का भउजाई आय नेता जी । ।

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              जब से आपन गाँव।

शहर मा  जाके रहय लाग जब से आपन गाँव।

भरी दुपहरी आँधर होइगै लागड़ होइ गै छाँव। ।


 गाँवन कै इतिहास बन गईं अब पनघट कै गगरी।

 थरी कोनइता मूसर ज्यतबा औ कांडी कै बगरी। ।

गड़ा बरोठे किलबा सोचइ पारी आबै माव  ।


हसिया सोचै अब कब काटब हम चारा का ज्यांटा।

सोधई दोहनिया मा नहि बाजै अब ता दूध का स्यांटा। ।

काकू  डेरी  माही   पूंछै   दूध   दही   का     भाव।


 दुर्घट भै बन बेर बिही औ जामुन पना अमावट।

''राजनीत औ अपराधी ''अस सगली हाट मिलावट। ।

  हत्तियार  के  बेईमानी मा डगमग जीवन नाँव।


जब से पक्छिमहाई बइहर गाँव मा दीन्हिस खउहर।

उन्हा से ता बाप पूत तक करै फलाने जउहर। ।

नात परोसी हितुअन तक मां एकव नही लगाव।

 

कहै जेठानी  देउरानी   के  देख  देख   के  ठाठ  ।

हम न करब गोबसहर गाँव मा तोहरे बइठै काठ। ।

हमू चलब अब रहब शहर मा करइ कुलाचन घाव।

 

नाती केर मोहगरी ''आजा'' जुगये आस कै बाती।

बीत रहीं गरमी कै छुट्टी  आयें न लड़िका नाती। ।    

खेर खूंट औ कुल देउतन का अब तक परा बधाव।

 

ममता के  ओरिया  से  टपकैं   अम्माँ  केर  तरइना।

फून किहिन न फिर के झाँकिन दादू  बहू के धइना .। ।

यहै रंझ के बाढ़ मां हो थै लउलितियन का कटाव।

शहर मा जाके ----------------------------------------

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****************** चुगल खोर******************

हम करी चेरउरी चुगल खोर तुम सुखी रहा य देस मा।

 तुम बइठे नक्कस काटा औ सब जन रहैं कलेष मा। ।


हे अकरमन्न हे कामचोर सब काँपैं तोहरे दांव से।

कड़ी मशक्कत के कर्ता तक भागै तोहरे नांव से। ।

तुमसे सब है कारबार जस धरा धरी है शेष मा।


हे चापलूस चउगिर्दा हेन तोहरै तोहार ता धाक हिबै।

तोहरेन चमचागीरी से हमरे नेतन कै नाक हिबै। ।

तुम कलजुग के देउता आहू अब माहिल के भेष मा।


हे !महा दोगला हे अकही !!अकहापन कै पूंजी तुम।

बड़ा मजा पउत्या है जब आने कै करा नमूजी तुम। ।

गद गद  होय तोहार आतिमा  जब कोउ परै कलेस मा।


तुम  'मनगवां के कुकूर कस ' चारिव कइती छुछुआत फिरा।

मुँह देखी मा म्याऊ म्याऊ औ पीठ पीछ गुर्रात फिरा। ।

सगले हार तोहार असर है देस हो य परदेस मा।


केत्तव होय मिठास चाह छिन भर मा माहुर घोर द्या।

तुम भाई हितुआ नात परोसी का आपुस मा फोर द्या। ।

तोहरे भीरुहाये मा पति -पत्नी तक चढ़ गें केस   मा।


हे मंथरा के भाई तुम जय हो हे नारद के नाती।

नाइ दुआ करत बागा बे डाक टिकस कै तुम पाती। ।

हे राम राज के 'धोबी 'तुम घुन लाग्या अवध नरेश मा ।

हम करी चेराउरी चुगल खोर तुम सुखी रहा य देस मा। ।


हेमराज हंस -- भेड़ा मइहर   

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----        हम सरबरिया बाम्हन आह्यन

हम सरबरिया  बाम्हन आह्यन मिलब साँझ के हाउली मा।

मरजादा का माजब  धोऊब नरदा नाली        बाउली मा। ।

होन मेल     जोल भाई  चारा कै        साक्षात्  हिबै तस्बीर।

नक्सल्बादी असम समिस्या औ नहि आय झंझट कश्मीर। ।

अगड़ा पिछड़ा आरछन का लफड़ा  बाला  नहि  आय  भेद।

जात -पात अउ छुआछूत के ऊंच -नींच  के नहि आय खेद। ।

समता मिलै हँसत बोलत होन पैग भजिआ लपकाउरी मा। ।


एक नाव एक भाव मा बइठे   मिलिहै राजा रंक औ फक्कड़।

बड़े -बड़े परदूसन प्रेमी मिलिहै  सुलगाये  धुँआ औ धक्कड़। ।

रक्शा बाले  -नक्शा बाले   शिक्षा   स्वस्थ्य    सुरक्षा   बाले।

बने  पुजारी   सरस्वती  के अद्धी   पउआ    बोतल   घाले। ।

बड़े   शान से भाषन   झारत   मद्ध निषेध   के  रैली  मा। ।


भले दये अदहन  चुलबा  मा  ताकै  टोरबन  कै  महतारी।

औ हमार या अमल  सोबाबै रात के लड़का बिना बिआरी। ।

हमही चाही रोज साँझ के मुर्ग मुसल्लम पउआ अद्धी।

शहर गॉव मा  लूट मार कई देइ ढ़ील कनून कै बद्दी। ।

हम बिन सून  ही राजनीत जस खरिहान कुरईली मा। ।


महुआ रानी पानी दय दय हमही बनै दिहिस लतखोर।

पहलमान अस अकड़ रहे हन भले हबै अंतस कमजोर।।

बीस बेमारी  चढ़ी  है  तन  मा तउ नही या छूटै ट्याव।

मदिरा तजा विक्ख की नाइ डिग्गी पीटा गांव -गांव। ।

नही  पी जयी  या  समाज  का बगाई कौरी कौरी मा।

चला करी प्रण आइस  भाई कोउ जाय न हौली  मा। ।

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             करा खूस  

उंइ कहिन आज हमसे घर मां,अब तुमहूं त कुछ करा खूस।

देखत्‍या  है उनही  तिपैं  ज्‍याठ,  तुम  हया जड़ाने मांघ पूस॥

अरे कहूं रोप एकठे बिरबा, आपन  फोटो खिंचवा लेत्‍या।

औ पर्यावरणी प्रेमिन मां,  अपनौ नाव लिखवा लेत्‍या॥

पुन रेंजर से कइ सांठ गांठ, ठेका लइ लेत्‍या जंगल का।

जब अपनौ टाल खदान चलत,परसाद चढत हर मंगल का॥

गलिहारव हेरत रहै छांह,   औ गोरूआ हेरैं घास फूस।

अब तुमहूं...........................

विद्युत मंडल बालेन से , तुमहूं हितुआरथ कइ लेत्‍या।

पुन चलत ठ्‌यसर मोटर चक्‍की,लुग्‍गी से स्‍वारथ कर लेत्‍या॥

कुछ लइनमैन का दइ दीन्‍या,त व बिजुली अस गोल रही।

औ अपनेव बिजली चोरी कै,दबी मुदी सब पोल रही॥

जब अधिकारी दउरा करिहैं,त वहै बनी आपन जसूस।

अब तुमहूं......................

बन जात्‍या कोटेदार तुहूंकइ जोर तुगुत कउनौ ओठरी।

करत्‍या पुन कालाबाजारी तुम उचित मूल्‍य के बोर्ड तरी॥

तेल चिनी औ चाउर से, जब चकाचक्‍क आनंद रहत।

औ सहबौ का थक्‍की भेजत्‍या, ता उनहूं का मुंह बंद रहत॥

सब बनगें कोटेदारी से,  का तोंहरेन दारी परा उूंस।

अब तुमहूं.......................

तुमहूं ता तन से हया उजर,  मन भले हबै सांमरपानी।

अपनेन ख्‍वांपा से शुरू करा, उतिना पहिले अपनै छान्‍ही॥

 सरमन'कै भगती छ्‌वाड़ा, सह पइहा न कमरी का भार।

भाईन का हीसा हड़प हड़प, होइ चला चली पहिले निनार॥

जरजात लिखा ल्‍या नामे मां पटवारी का लै दै के घूंस।

अब तुमहूं त कुछ करा खूस॥

गीता कुरान औ बाइबिल का, चल कउनौ चाल लड़ा देत्‍या।

देस  भक्‍त  के पोथी  मां  तुम  अपनौं  नाव  चढा  लेत्‍या॥

भाईचारा  का बिख दइके,  दुध पिअउत्‍या दंगन का।

पर्दा का पल्‍ला छाड़ा,  है नओ जमाना नंगन का॥

तुष्‍टीकरण के पुस्‍टी माही, कौमी एकता का जलुस।

अब तुमहूं.......................

तोहरव बिचार घिनहे सांकर, औ कपट नीत मां दोहगर हा।


सिंघासन के पण्डन  कस तुम भितरघात मा पोहगर हा॥ 


तुम दंदी फन्दी  फउरेबी,  औ  चुगुलखोर  के सांचा  हा।


मुंह देखी भांषन गीत पढै मा, तुम चमचन के चाचा हा॥


चोर  हया तुम कवियन अस, औ पत्रकार कस चापलूस।


अब  तुमहूं  त  कुछ  खूस,    अब  तुमहूं  त कुछ खूस॥


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   भइलो चलें करामय जांच

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जब उंइ खाइन मिला न आरव।  हर गंगे।

हमरे  दारी  झारव  झारव  ॥  हर गंगे।


कूटत रहें रोज उंइ लाटा।  हर गंगे।

हमरे दारी लागैं डांटा  ॥  हर गंगे।


पांच साल खुब किहिन तरक्‍की।हर गंगे।

बोर ठ्‌यसर औ लगिगै चक्‍की॥हर गंगे।

 

दिहिन न हमही ध्‍याला झंझी।हर गंगे।

अब हिसाब कै मांगै पंजी॥हर गंगे।


अब य ओसरी आय हमार।हर गंगे।

अब तुम सेंतै करत्‍या झार॥हर गंगे।


भयन संच मां जब हम पांच।हर गंगे।

भइलो चलें करामय जांच॥हर गंगे।


जादा तुम न करा कनून।हर गंगे।

चुहकैं द्‌या जनता का खूंन॥हर गंगे।


मुलुर मुलुर द्‌याखा चउआन।हर गंगे।

हम कूदी तुम ल्‍या बइठान॥हर गंगे।


होइगे भइलो सत्तर  साल।हर गंगे।

हमूं बनाउब ढर्रा ताल॥हर गंगे।

 

जब आंगना मां होइगै नाच।हर गंगे।

त भइलो चलें करमय जांच॥हर गंगे।

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                            हिन्दी

वीर कै गाँथा लगी जो रचैं औ 'जगनिक 'के आल्हा का गायगै हिन्दी।

कब्बौ बनी 'भूखन 'कै बानी त वीरन का पानी चढ़ाय गै हिन्दी। ।

 हाथे परी 'सतसय्या 'के ता वा 'सागर मा गागर 'भराय गै हिन्दी।

बुढ़की लगाइस 'सूर 'के सागर ता ममता मया  मा नहाय गै हिन्दी। ।


'रसखान 'के क्वामर क्वामर छन्द औ मीरा के पद काही ढार गै हिन्दी।

भक्ति के रंग मा लागी रंगै तब भाषा लोलार पिआर भै हिन्दी। ।

बीजक साखी कबीर के व्यंग्य पाखण्डिन का फटकार गै हिन्दी।

 औ मासियानी मा तुलसी के आई ता 'मानस 'अगम दहार भै हिन्दी। ।


हिंठै लगी जब 'पंत 'के गाँव ता केत्ती लगै सुकुमार य हिन्दी।

हरिचंद ,महावीर ,हजारी ,के त्याग से पुष्ट बनी दिढ़वार य हिन्दी। ।

निराला ,नागार्जुन ,के लेखनी मा भै पीरा कै भ्याटकमार य हिन्दी।

रात जगी जब ''मुंशी ''के साथ ता हरिया का भै भिनसार य हिन्दी। ।


भारत माता के कण्ठ कै कण्ठी औ देस कै भाषा लोलार  हिन्दी।

लोक कै   बोली औ  भाषा सकेल के लागै विंध्य पहार य हिन्दी। ।

छंद ,निबंध ,कहानी,औ कविता से लागै सुआसिन नार य हिन्दी।

अपने नबऊ रस औ गण शक्ति से कीन्हिस सोरहव सिगार य हिन्दी। ।

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*************DOHA***************************

हमरे भारत देस मा कबिता बड़ी लोलार। 

छत्रसाल राजा बने कबिता केर कहार।।


किहिस  सनातन सब दिना, जन मंगल का गान। 

प्राणी  मा  सद भावना,   बिस्व   केर    कल्यान।।


राघव मरजादा दिहिन, औ माधव जी कर्म।

दुइ लीखन मा चलि रहा,सत्य सनातन धर्म।।  


उनही सौ सौ नमन जे कीन्हिन जीबन हूम। 

बंदे मातरं बोल के गें फाँसी मा झूम।। 

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जिनखे माथे पूर भा आजादी का जग्ग। 

हम भारत बासी हयन उनखर रिनी कृतग्ग।। 


बिटिआ बेदन कै  ऋचा साच्छात इस्लोक।

दुइ कुल का पामन करइ अउ साथै मा  कोंख।।


रहिमन पनही राखिये,बिन पनही सब सून।

दिल्‍ली से है  गांव  तक, पनही  का कानून॥

       

गोबर से कंडा बनै, औ गोबरै सेे गउर।

आपन आपन मान है,अपने अपने ठउर॥

       

**पर्यावरण  के दोहा **************

 परयाबरनी प्रेम कै देखी भारतीय खोज। 

अमरा के छहियां करी अपना पंचे भोज।। 

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पीपर  मा  बसदेव  जू  बधी  बरा के सूत। 

तुलसी  जू  कै  आरती  आमा मानैं पूत।। 

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नीम बिराजैं सीतला औ जल बरुन का बास। 

परयाबरन  मा  पुस्ट  है  भारत का बिस्वास।।

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हमरे  भारत  का  रहै  चह  कउनौ  तेउहार।

सब दिन हम पूजत रह्यन बिरबा नदी पहार। ।

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दादू के सुख संच मा जे मानय आनंद। 

अम्मा अस कउनौ नहीं दुनिआ का संबंध।। 

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अम्मा अपने आप मा सबसे पाबन ग्रंथ। 

माता से बढि के नही कउनौ ज्ञानी पंथ।। 

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हा हजूर हम गॉव के शुद्ध देहाती ठेठ। 

अपना अस काटी  नहीं हम गरीब का पेट। । 


बब्बा जी कीन्हिन रहा खसरा केर अपील।

नाती तक पेसी चली बिदुराथी तहसील।।  


बड़े अदब से बोलिये, उनखर जय जय कार। 

गांव- गांव  मा  चल  रही , गुंडन कै सरकार।।

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चह जेही थुर देंय उइ ,याकी कहैं कुलांच। 

नेता जी के नाव से, अयी न कऊनव आंच। ।

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जेही सब मानत रहें जादा निकहा सूध।

ओखे डब्बा म मिला सबसे  पनछर  दूध।।


साहब सलाम औ पैलगी, गूंजै राम जोहर। 

अबहूँ अपने  गाँव मा,  बचा  हबै   बेउहार। । 

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देस मा  भ्रस्टाचार का, ह्वाथै यतर निदान।

जइसा जींस पहिर के काटै फसल किसान।।


बीस जघा कर्जा  किहिस, तब होइ सका प्रबंध। 

अपना  का  आबा   नहीं,   नेउता    मा  आनंद।।


खेत बिका कोलिया गहन बिकिगा झुमका टाप।

पट्टीदार    बिदुराथें    सिसकै    बिटिअय   बाप।।  

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ओतुन परबस्ती करा , जेतू कूबत पास।

परोपकार मा चला गा ,भोले का कैलास।। 

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पहिले  प्रेम  प्रसंग  का ,खूब  भा  लोकाचार।

 फेर ओही लुच्ची  कहिस ,वा ओहि दहिजार।। 


पुष्पवाटिकै मा मिली, सहज प्रीत का नेम।

सुरपंखा हेरत फिरय, पंचबटी मा प्रेम।।


कहिस कुलांचै धरम  का, दिहिस आतिमा रोय।

जइसा  कउनव  बाप कै, बिटिआ भागी होय।। 


लेत  रहें  जे थान  के,  लम्बाई  कै नाप।

अर्ज देख लोटय लगा,उनखे छाती सांप।।

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 सुनतै जेखे नाव का, जांय मुगलिया कांप।

भारत  के  वा  बीर हैं,  महराणा  परताप।।


भ्रस्टाचार मा डूब गा, जब मगधी दरबार।

धनानन्द  सैलून मा,  लगें  बनामय   बार।।


कहिन फलाने हम हयन, पढ़े लिखे भर पूर।

पै अब तक आई नहीं, बोलय केर सहूर।।


भारत पूजिस सब दिना,रिसी कृसी के साथ।

एक हाथे मा शास्त्र का, शस्त्र का दूजे हाथ।।

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दुनिया मा सब दिन लड़ें, धरम औ रीत रिबाज। 

शाकाहारी    सुआ    के,   बीच   रहै  न   बाज।।  


हमी  न   नजरा  तुम  यतर  दरबारी  सरदार । 

दुइ कउड़ी के हयन  पै मन के  मालगुजार। । 


किहिन मजुरै देस का ,सबसे ज्यादा काम। 

तउअव जस मानै नहीं ,मालिक नामक हराम।। 


दहसत माही कलम ही, कागद करै रिपोट।

राजनीत कब तक करी, गुंडन केर सपोट। । 


नेता  जी  के  नाव  से , उभरै  चित्र   सुभाष।

अब के नेता लागि रहें, जइसा नहा मा फास।।


 

गांव गांव मदिरा बिकै , दबा शहर के पार।

कउने सब्दन मा करी अपना का आभार। ।


सुनिस घोसना कापि गा, थर थर बपुरा पेण्ट।

खीसा  का  बीमा  करी , जेब  कतरा  एजेण्ट।।