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शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2024

वा ता निकहा बीज रहा।

 वा ता  निकहा  बीज रहा। 
देस  प्रेम  मा  भीज  रहा।। 

चुइगा जलेबी का रस सगला 
अब   हाथे  का  मीज  रहा। । 

भीड़ छटी  ता जाने पायन 
मंदिर  नहीं  टाकीज  रहा।। 

बस्ती  बस्ती  भटकैं  बांदर   
अँकड़ा के नहीं तमीच रहा।।  

कहैं  उतारन काही  आड़र
उनखर  हिदय  पसीज  रहा। ।  

हंस के पेटे  मुसबा  लोटय 
पीठ मा आखा  तीज रहा। ।  
हेमराज हंस 

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