वा ता निकहा बीज रहा।
देस प्रेम मा भीज रहा।।
चुइगा जलेबी का रस सगला
अब हाथे का मीज रहा। ।
भीड़ छटी ता जाने पायन
मंदिर नहीं टाकीज रहा।।
बस्ती बस्ती भटकैं बांदर
अँकड़ा के नहीं तमीच रहा।।
कहैं उतारन काही आड़र
उनखर हिदय पसीज रहा। ।
हंस के पेटे मुसबा लोटय
पीठ मा आखा तीज रहा। ।
हेमराज हंस
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