बघेली साहित्य -का संग्रह हास्य व्यंग कविता गीत ग़ज़ल दोहा मुक्तक छंद कुंडलिया
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शनिवार, 9 दिसंबर 2023
भइलो चलें देखामय भाटा।।
मंगलवार, 29 अगस्त 2023
जइसा गदिया गोर
शुक्रवार, 16 जून 2023
शनिवार, 10 जून 2023
उमिर भै अस्सी पार तउ, रोगी हमैं बिचार।
बुधवार, 7 जून 2023
बघेली साहित्य bagheli sahitya हेमराज हंस : जाति बाद मा बंद
शनिवार, 20 मई 2023
शनिवार, 29 अप्रैल 2023
लगथै उनखर उतरिगा जादू।
लगथै उनखर उतरिगा जादू।
हेरा आन गुनिया अब दादू।।
कब तक सूख पेड़ का द्याहा
पुन पुन पानी पुन पुन खादू।।
बजरंगी का कब तक छलिहै
कालनेम बन ज्ञानी साधू ।।
एक न मानिस हिरना कश्यप
खुब समझा के हार कयाधू।।
गुरुवार, 27 अप्रैल 2023
गदहा का कहिहैं बाप। आसव चुनाव है।
काव्य संध्या एवं सम्मान समारोह मैहर KAVI LAHARI JI MAIHAR
मंगलवार, 4 अप्रैल 2023
शनिवार, 1 अप्रैल 2023
रविवार, 26 मार्च 2023
गाँव -गाँव बोबा जबा पंडा दे थें हूम।
गाँव -गाँव बोबा जबा पंडा दे थें हूम।
लोक धरम कै देस मा चारिव कईती धूम। ।
बाना खप्पड़ कालका जबा देवारे हांक।
बिन प्रचार के चल रही लोक धर्म कै धाक। ।
आठैं अठमाइन चढ़ै खेर खूंट का भोग।
जलसा का कलसा धरे ''राम जनम का जोग ''। ।
नौ रात्रि
सोमवार, 20 मार्च 2023
गुरुवार, 23 फ़रवरी 2023
औ कोऊ आंसू ढारत अउलाद का तरसा थै।।
राजनीत चढाथी जब जब पाप मा।
तब नेतागीरी सेराथी सिताप मा।।
तुलसी के मानस कै सदा होई आरती
पै उइ न हेरे मिलिहैं कउनौ़ किताप मा।
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कोउ दहिना कोउ बइता हेरा थें।
चचरी मचामै का रइता हेरा थें। ।
उनखर सोच बड़ी प्रगत शील ही
धानमिल के जुग मा कोनइता हेरा थें। ।
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किसान बिचारा खाद का तरसा थै।
निर्बल बपुरा फरिआद का तरसा थै।।
कोऊ जीबन काटा रहा है बृद्धाआश्रम मा
औ कोऊ आंसू ढारत अउलाद का तरसा थै।।
हम समाज के मिल्लस कै आसा करी थे।
ता अपना हमरे ऊपर इस्तगांसा करी थे।।
बहुरुपियव लजाय जाय अपना का देख के
निकहा नाटक नेरुआ औ तमासा करी थे। ।
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तसला ता मिला खूब तसल्ली नहीं मिली।
हमरे खिआन पनही का तल्ली नहीं मिली।।
कउड़ा ताप ताप के गुजारी रात हम
जाड़े मा कबौं ओड़य का पल्ली नहीं मिली। ।
रक्छा के इंतजाम केर दाबा बहुत हें
घर से जो निकरी बपुरी ता लल्ली नहीं मिली। ।
वा नामी धन्ना सेठ है धरमात्मा बहुत
पै दुआरे मा गरीब का रुपल्ली नहीं मिली।।
रिकॉड मा गुदाम लबालब्ब भरी हय हंस
जब जांच भै त एकठे छल्ली नहीं मिली।।
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आहट पाके प्यास की गढ़ता घड़ा कुम्हार
तृष्णा को तृप्ती मिले शीतल जल की धार
गढ़ते गढ़ते गढ़ गया जीवन का सोपान
समय चाक पर चल रहा माटी का दिनमान
पानी जब बिकने लगा बोतल पाउच बंद
प्यासे को मिलता नही मटके सा आनंद
प्यास बुझाने के घड़े गढ़े जो माटी पूत
आंसू पीकर जी रहा बन कर एक अछूत
हेमराज हंस
खेत बिका कोलिया गहन बिकिगा झुमका टाप।
पट्टीदार बिदुराथें सिसकै बिटिअय बाप।
लेखन जब करने लगा कागद लहूलुहान।
ब्रह्म शब्द तक रो पड़ा धरा रह गया ज्ञान।।
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पहिले जब खड़े होकर लघु शंका करना निषिद्ध माना जाता था। तब की बात है।एक बालक खड़े होकर लघुशंका कर रहा था। गांव के एक बुजुर्ग ने देखा तो उसे...
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BAGHELI SAHITYA बघेली साहित्य : bagheli kavita नाती केर मोहगरी ''आजा'' जुगये आस कै... : बघेली कविता www.baghelisahitya.co...
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श्री शिवशंकर सरस जी
श्री शिवशंकर सरस जी, बोली के चउमास। उनसे छरकाहिल रहैं, तुक्क बाज बदमास।। सादर ही सुभकामना, जनम दिना कै मोर। रिमही मा हें सरस जी , जस पा...

