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गुरुवार, 23 जुलाई 2015

पै न कह्या हरामी भाई। ।

बघेली गजल 

ठोंका तुहू सलामी भाई। 
भले देखा थी खामी भाई। । 
केत्तव मूसर जबर होय पै 
वमै लगा थी सामी भाई। । 
सत्तर साल के लोक तंत्र का 
ग्यारै लाग बेरामी भाई। । 
एक कइ पचके हें गलुआ 
औ एक कइ ललामी भाई। । 
पता नही धौ घुसे हें केत्ते 
बड़ी जबर ही वामी भाई। । 
केखर केखर मुँह सी देहा 
सबतर ही बदलामी भाई। । 
भले खा थें उई हराम का 
पै न कह्या हरामी भाई। । 
'हंस 'करय अनरीत अम्मलक 
भरा हुंकारी हामी भाई। । 

हेमराज हंस --9575287490 

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