बघेली गजल
ठोंका तुहू सलामी भाई।
भले देखा थी खामी भाई। ।
केत्तव मूसर जबर होय पै
वमै लगा थी सामी भाई। ।
सत्तर साल के लोक तंत्र का
ग्यारै लाग बेरामी भाई। ।
एक कइ पचके हें गलुआ
औ एक कइ ललामी भाई। ।
पता नही धौ घुसे हें केत्ते
बड़ी जबर ही वामी भाई। ।
केखर केखर मुँह सी देहा
सबतर ही बदलामी भाई। ।
भले खा थें उई हराम का
पै न कह्या हरामी भाई। ।
'हंस 'करय अनरीत अम्मलक
भरा हुंकारी हामी भाई। ।
हेमराज हंस --9575287490
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें