भाई अस दूसर नही जो भउजाई बांख न होय।
बाउर अस है वा समाज जेखर आपन भाख न होय। ।
देस कै जनता नेम प्रेम भाई चारा से रहि तो लेय
जो हमरे देस मा नफरत कै कारी अँधिआरी पाख न होय। ।बघेली साहित्य -का संग्रह हास्य व्यंग कविता गीत ग़ज़ल दोहा मुक्तक छंद कुंडलिया
श्री शिवशंकर सरस जी, बोली के चउमास। उनसे छरकाहिल रहैं, तुक्क बाज बदमास।। सादर ही सुभकामना, जनम दिना कै मोर। रिमही मा हें सरस जी , जस पा...