साहब सलामऔ पइलगी, गूंजै राम जोहर।
अबहूँ अपने गाँव मा, बचा हबै बेउहार। ।
गदिअय खजुलइया धरे, कजरी गाबै पर्व।
अपने तिथ तिउहार का, गाँव समेटे गर्व। ।
खजुलइयां लइके मिला, हमरे गांव का नेम।
द्यखतै जिव हरिआय गा, परिपाटी का प्रेम।।
बघेली साहित्य -का संग्रह हास्य व्यंग कविता गीत ग़ज़ल दोहा मुक्तक छंद कुंडलिया
लगथै उनखर उतरिगा जादू।
हेरा आन गुनिया अब दादू।।
कब तक सूख पेड़ का द्याहा
पुन पुन पानी पुन पुन खादू।।
बजरंगी का कब तक छलिहै
कालनेम बन ज्ञानी साधू ।।
एक न मानिस हिरना कश्यप
खुब समझा के हार कयाधू।।
गाँव -गाँव बोबा जबा पंडा दे थें हूम।
लोक धरम कै देस मा चारिव कईती धूम। ।
बाना खप्पड़ कालका जबा देवारे हांक।
बिन प्रचार के चल रही लोक धर्म कै धाक। ।
आठैं अठमाइन चढ़ै खेर खूंट का भोग।
जलसा का कलसा धरे ''राम जनम का जोग ''। ।
नौ रात्रि
राजनीत चढाथी जब जब पाप मा।
तब नेतागीरी सेराथी सिताप मा।।
तुलसी के मानस कै सदा होई आरती
पै उइ न हेरे मिलिहैं कउनौ़ किताप मा।
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कोउ दहिना कोउ बइता हेरा थें।
चचरी मचामै का रइता हेरा थें। ।
उनखर सोच बड़ी प्रगत शील ही
धानमिल के जुग मा कोनइता हेरा थें। ।
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किसान बिचारा खाद का तरसा थै।
निर्बल बपुरा फरिआद का तरसा थै।।
कोऊ जीबन काटा रहा है बृद्धाआश्रम मा
औ कोऊ आंसू ढारत अउलाद का तरसा थै।।
हम समाज के मिल्लस कै आसा करी थे।
ता अपना हमरे ऊपर इस्तगांसा करी थे।।
बहुरुपियव लजाय जाय अपना का देख के
निकहा नाटक नेरुआ औ तमासा करी थे। ।
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तसला ता मिला खूब तसल्ली नहीं मिली।
हमरे खिआन पनही का तल्ली नहीं मिली।।
कउड़ा ताप ताप के गुजारी रात हम
जाड़े मा कबौं ओड़य का पल्ली नहीं मिली। ।
रक्छा के इंतजाम केर दाबा बहुत हें
घर से जो निकरी बपुरी ता लल्ली नहीं मिली। ।
वा नामी धन्ना सेठ है धरमात्मा बहुत
पै दुआरे मा गरीब का रुपल्ली नहीं मिली।।
रिकॉड मा गुदाम लबालब्ब भरी हय हंस
जब जांच भै त एकठे छल्ली नहीं मिली।।
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आहट पाके प्यास की गढ़ता घड़ा कुम्हार
तृष्णा को तृप्ती मिले शीतल जल की धार
गढ़ते गढ़ते गढ़ गया जीवन का सोपान
समय चाक पर चल रहा माटी का दिनमान
पानी जब बिकने लगा बोतल पाउच बंद
प्यासे को मिलता नही मटके सा आनंद
प्यास बुझाने के घड़े गढ़े जो माटी पूत
आंसू पीकर जी रहा बन कर एक अछूत
हेमराज हंस
खेत बिका कोलिया गहन बिकिगा झुमका टाप।
पट्टीदार बिदुराथें सिसकै बिटिअय बाप।
लेखन जब करने लगा कागद लहूलुहान।
ब्रह्म शब्द तक रो पड़ा धरा रह गया ज्ञान।।
माँ शारदा की पावन नगरी मैहर की साहित्यिक सांस्कृतिक सामाजिक संस्था "अंकुर " के तत्वावधान में देश के ७४वे गणतंत्र दिवस एवं " महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला"जी की जयंती के अवसर पर , साहित्यानुरागी राधव जैन जी के निवास में , देश की वरिष्ठ कवियित्री विदुषी मनीषा श्री मति मधु माधवी जी के संयोजन में काव्य गोष्ठी का आयोजन संपन्न हुआ। जिसमे अंकुर के अध्यक्ष श्रीयुत रामनरेश तिवारी जी , अंकुर के संस्थापक सदस्य वरिष्ठ गीतकार कुशवाहा हरि जी , अंकुर के संयोजक सचिव श्री वीरेंद्र प्रताप सिंह जी ,अंतरराष्ट्रीय कवि श्री आचार्य रामाधार अनंत जी वरिष्ठ नवगीतकार श्री भोला नाथ जी ,मैहर के लाड़ले शायर साहिर रिवानी जी , श्री मति बाला शुक्ल जी , श्री मति दिति सिंह कुशवाह जी ,श्री घनश्याम सोनी जी , श्री रामेशवर लहरी जी , श्री ठाकुर प्रसाद कुशवाहा जी , श्री शिवम् चौरसिया जी , हेमराज हंस , ने काव्य सुमन से काव्य गोष्ठी को सुरभित किया। संचालन युवा कवि आशीष त्रिपाठी द्वारा किया गया। मैहर के गणमान्य नागरिक डॉ. अशोक अवधिया जी , डॉ गया प्रसाद चौरसिया जी , भाजपा नेता , श्री सत्यभान सिंह पटेल जी सरस्वती विद्यालय उंचेहरा के आचार्य जी राज कुमार जैन जी सहित अन्य सुधि श्रोताओं की उपस्थिति में कार्यक्रम संपन्न हुआ।
हम दयन नये साल कै बधाई।
फलनिया कहिस तोहइ लाज नहीं आई।।
पाँव हें जोंधइया मा हाथे परमानु बम
पै देस मा घ्रिना कै खासा जबर खाई। ।
कीर्तिमान निश दिन बढ़े, गढ़ें नये सोपान। जन्म दिन की शुभकमना, आये नया बिहान।। आये नया बिहान शारदा के प्रिय लालन । मैहर का हो आपके ...