बघेली साहित्य -का संग्रह हास्य व्यंग कविता गीत ग़ज़ल दोहा मुक्तक छंद कुंडलिया
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सोमवार, 3 जून 2024
गुरुवार, 30 मई 2024
छठ सातैं की भमरी देखा।
छठ सातैं की भमरी देखा।
तोहसे या न थम्हरी देखा।।
एक बाल्टी पानी खातिर
उचत भरे कै जमरी देखा।।
सउंज उतार रही तुलसी कै
या गंधइली ममरी देखा। ।
पसगइयत मा परगा पादन
चिलकत चरमुठ चमरी देखा।।
कांखय लगिहा चुनुन दार मा
कामड़ेरा औ कमरी देखा।।
हंस अबरदा जब तक वाखर
रोये गीध के ना मरी देखा।।
हेमराज हंस
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ममरी= तुलसी जैसे दिखने बाली झाड़ी
पसगइयत=आसपास
परगा पादन= तिकड़मी दंदी फन्दी
चिलकत=चमकती हुई
चरमुट= स्वस्थ्य एवं शक्तिवान, शरीर हृष्ट पुष्ट,
चुनुन दार = शीघ्र
अबरदा= आयु
बुधवार, 29 मई 2024
शनिवार, 25 मई 2024
जे दसा सुधारय गे रहे, गरीब सुदामा कै।
जे दसा सुधारय गे रहे, गरीब सुदामा कै।
उइ तार दइ के आय गें कुरथा पइयामा कै।।
अनभल तुकिन ता आपरूभ नस्ट होइगे उइ
घर घर मा पूजा होथी बसामान मामा कै।।
उइ कहा थे दोस्ती का हाथ बढ़ा ल्या
करतूति नहीं बिसरय हमीं पुलबामा कै।।
धइ धइ के ओहटी टोर भांज कइ रहें हें जे
बांच बांच कबिता इकबाल अल्लामा कै। ।
आपन इलिम लगाय के जब हीच उचे हंस
सगली पोलपट्टी खुलगै कारनामा कै।।
हेमराज हंस
बुधवार, 22 मई 2024
उइ तखरी मा गूलर का तउल रहे हें।।
साहुत बनामय खातिर जे कउल रहे हें।
उइ तखरी मा गूलर का तउल रहे हें।।
कान बहय लागी जो सुन ल्या हा फुर
हेन जात बाले जातै का पउल रहे हें।।
आपुस मां कइसा माहुर घोराथी इरखा
भुक्त भोगी आपन "हरदउल" रहे हें।।
प्रथ्बी औ जयचन्द कै मुखागर ही किसा
सुन सुन के भारतिन के खून खउल रहे हें।।
कल्हव रहें देस मा उइ आजव हेमैं 'हंस'
जे बिषइले उरा बाले डील डउल रहे हें।।
हेमराज हंस
सोमवार, 20 मई 2024
दार महँगी है खा ल्या बलम सुसका। दार महँगी ।
*लोकगीत *
दार महँगी है खा ल्या बलम सुसका। दार महँगी ।
भाव सुनत मा लागय ठुसका।। दार महँगी ।।
किधनव बनाउब पानी पातर।
एक दुइ दिन का दइ के आंतर।।
लड़िकन के मुंह दइ के मुसका। दार महँगी ।
दार महँगी है खा ल्या बलम सुसका। दार महँगी ।।
गुजर करब खा लपटा मीजा।
दार बनी जब अइहैं जीजा।।
करंय का मजूरी कहूं खसका। । दार महँगी।
दार महँगी है खा ल्या बलम सुसका। दार महँगी ।।
कइसा चलय अटाला घर का।
अइसा पाली पोसी लरिका ।।
जइसा सीता मइया लउकुस का। दार महँगी।
दार महँगी है खा ल्या बलम सुसका। दार महँगी ।।
हेमराज हंस
शुक्रवार, 10 मई 2024
बंदन है जयराम जी, बिन्ध्य के बानी पूत।।
जेखे आंखर बने हें, जनता के स्वर दूत।
बंदन है जयराम जी, बिन्ध्य के बानी पूत।।
सादर ही शुभ कामना बरिस गाँठ के हेत।
करत रहै लेखनी सदा सबका सजग सचेत।।
सोमवार, 6 मई 2024
जेखे आँखी कान नही, ओही नव ठे कजरउटा है।
लगें बनामय बार
रविवार, 5 मई 2024
शासक जब कीन्हिन बहुत, सोसन अत्याचार।
भारतीय स्वाभिमान के प्रतीक परशुराम
मंगलवार, 30 अप्रैल 2024
हम मजूर बनिहार बरेदी आह्यन लेबर लगुआ।
सोमवार, 29 अप्रैल 2024
पइ महलन के कोंख से आये सब दिन बुद्ध।।
पूंछ रही ही दलन से, लोक सभा कै ईंट।
रविवार, 28 अप्रैल 2024
गरीबन के खातिर सब मनसेरुआ हें।
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