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हे जग जननी सारदे, मै मांगों कर जोर।
भारत मा सुख संच कै,पबन बहै चहुओर।।
माता जू किरपा किहिन बइठीं आके कंठ।
तब कविता गामैं लगा हेमराज अस लंठ।।2
श्री गनेस बाधा हरैं जय जय उमा महेश।
सिउ जी के परिवार, अस सुखी रहय य देस।।3
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गनपति जू हैं देस मा, रास्ट बाद के मान।
साक्षी है पूना अबै , अउर तिलककै आन। ।4
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भरिन तिलक जी भक्ति मा, देस भक्ति का रंग।
जग मा न हेरे मिली , या इतिहास प्रसंग। ।।5
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रिद्धि सिद्धि सुभ लाभ लै ,आबा हे गनराज।
अपना का स्वागत करै ,भारत केर समाज। ।6
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धन्न राष्ट्र के रीत का , धन्न है भारत देस।
देस भक्ति के रूप मा ,हाजिर स्वयं गनेस। ।7
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राम कबिन का शब्द हैं ,राम संत का ब्रम्ह।
हुलकी काही आग हें ,औ प्रहलाद का खंभ। । 8
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नबा साल मा सब जने, रहैं निरोग प्रसंन्न।
सब काही रोजी मिलय, खेतन मा हो अन्न।।9
राम देस कै आतिमा, राम देस के प्रान ।
हमरे भारत देस कै, राम से ही पहिचान ।।10
अबधपुरी मा पूर भा, मंदिर का निरमान।
सदिअन के बलिदान का, अबै मिला है मान।।11
केत्तेव पुरखा गुजरिगें लये हिदय मा हूक।
आजु तृप्त भै आतिमा लउलितिया कै भूख।।12
जय जय पाबन अबध कै जय जय भारत बर्ष।13
मंदिर के निरमान का जन जन मा है हर्ष।।
आदि पुरुस जहाँ मनू भें, करिन सृष्टि निरमान।
अजोध्या पाबन धाम है , मनुज का मूल अस्थान।।14
किहिस सनातन सब दिना, जन मंगल का गान।
प्राणी मा सद भावना, बिस्व केर कल्यान।।15
केत्तव पुरखा गुजरिगें, मन मा लये रहस्स।
बरिस पांच सै मा मिला ,देखैं का शुभ द्रस्स।। 16
अपने भुंइ मा राम जू , मना रहे हें पर्ब ।
सत्य सनातन धर्म का, आज हिदय मा गर्ब।। 17
आँखिन से देख्यन हमूं ,पहिल नमै तिथि जोग।
खूब सराही भाग का , हम भारत के लोग। । 18
कुछ जन मुंह ओरमा लइन, देख के अबध उराव।
जे भारत के पर्ब से, राखंय कपट दुराव।। 19
हमहूं साक्षी बन गयन, समय लइस जब मोड़।
पूरी दुनिया का दिहिस, श्री राघव से जोड़।। 20
राम देस कै आतिमा, राम देस के प्रान ।
अपने भारत देस कै, रामै से पहिचान ।।21
जब परछन भै अबध कै, ता उइ रहें रिसान।
अब सत्ता का स्वाद है, खट्टा करू कसान।। 22
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कृष्णपक्ष भादव दुइज का दिन सुभ भा बाह।
जब पूंछी इतिहास ता देई वहै गवाह।। 23
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सदिअन के बलिदान का आजु मिला तै मान।
अबधपुरी मा सुरू भा मंदिर का निरमान।। 24
अपने रीत रिबाज से ओही आबै बास।
ज्याखर गुरुद्वारा हबै चीनी दूताबास।। 25
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अब भादों के चउथ का होय दुइज से ईस।
वा कलंक ढोउत फिरै या सुभ सुदिन रहीस।। 26
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पुन स्थापित अबध मा राम सहित सब अंस।
पूरी दुनिया कइ रही जय जय भारत बंस।। 27
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भले करोना काल है, पै संबत सुभ नीक।
पूर पांच सै बरिस मा अबध कै भै तस्दीक।। 28
जे जनता के भाबना, केर करी तउहीन।
ता फुर माना राम दै, रही न कउनव दीन।।29
हम आपन पूजा करी औ उइ पढ़ै नमाज।
ईश्वर कै आराधना अलग अलग अंदाज।। 30
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राम देस के प्रान औ, राम बिश्व के गर्व।
राम ऋचा ऋगवेद कै साम यजुर्व अथर्व। । 31
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राघव मरजादा दिहिन, औ माधव जी कर्म।
दुइ लीखन मा चलि रहा,सत्य सनातन धर्म।। 32
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रिमझिम बदरी कइ रही भींजै नगरी गाँव।
मानो भादव कइ रहा कान्हा जनम उराव।। 33
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महादेव हैं बिश्व मा, समता बादी ईश।
चाहे पूजैं राम जू ,या पूजै दशशीश। । 34
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बेल पत्र गंगा जली चाउर चंदन रास।
शंकर जी पूजैं लगा भारत का बिस्वास ।। 35
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कासी पुनि के सजी ही,दुइ सौ सालन बाद।
गुंजै डमरू शंख औ, हर हर भोले नाद। । 36
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किहिस सनातन सब दिना, जन मंगल का गान।
प्राणी मा सद भावना, बिस्व केर कल्यान।।37
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भिन्न भिन्न भाखा हईं ,अलग अलग है भेस।
एक सनातन मा गुहा , पूरा भारत देस।। 38
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देस भक्ति औ धरम कै, मूल भाबना एक।
उत्तर कै गंगा करै ,दाख्खिन का अभिषेक। ।39
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तीर्थ हमारे देश में, हैं संस्कृति के अक्ष।
वसुधैव कुटुम्बं भावना , जिनका पावन लक्ष।। 40
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चह कामिल बुल्के रहैं या रहिमन रसखान।
सब कै मासियानी लिखिस भारत का गन गान। । 41
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उनही सौ सौ नमन जे कीन्हिन जीबन हूम।
बंदे मातरं बोल के गें फाँसी मा झूम।। 42
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जिनखे माथे पूर भा आजादी का जग्ग।
हम भारत बासी हयन उनखर रिनी कृतग्ग।। 43
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गाँव नगर पूजन भजन दुर्गा जी का बास।
कहूं राम लीला शुरू कहूं कृष्ण कै रास। । 44
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जहां बिराजीं सारदा धन्न मइहर कै भूम।
भक्तन का तांता लगा नाचत गाबत झूम।। 45
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जहाँ बिराजीं शारदा धन्न मइहर का भाग।
बंदूखै तक बन गईं नल तरङ्ग का राग।। 46
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पाबन मइहर धाम है सिद्ध शारदा पीठ।
कोउ बाहन से जा रहा कोउ आबै हीट। । 47
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गाँव -गाँव मा जबा देबारे पंडा दे थें हूम।
लोक धरम कै चैत मा चारिव कईतीधूम। । 48
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आठैं अठमाइन चढ़ै खेर खूंट का भोग।
जलसा का कलसा धरे ''राम जनम का जोग ''। । 49
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बाना खप्पड़ कालका जबा देवारे हांक।
बिन प्रचार के चल रही लोक धर्म कै धाक।1 50
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गाँव गाँव बोबा जबा पंडा दे थें हूम।
लोक धरम कै देस मा चारिव कइती धूम।। 51
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नारी सूचक गालियां दिन भर देते साठ।
वे भी सादर कर रहे दुर्गा जी का पाठ।। 52
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इंदिरा सुषमा चावला, औ मेधा अस तेज।
हे ईशुर मोरे देस मा, पुन पुन उनही भेज।। 53
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या लोपा मुद्रा गारगी , मैत्रेयी का देस।
जहां नारि कै ताड़ना, अत्याचार कलेस। । 54
बिटिआ बेदन कै ऋचा साच्छात इस्लोक।
दुइ कुल का पामन करइ अउ साथै मा कोंख।।55
दादू के सुख संच मा जे मानय आनंद।
अम्मा अस कउनौ नहीं दुनिआ का संबंध।। 56
अम्मा अपने आप मा सबसे पाबन ग्रंथ।
माता से बढि के नही कउनौ ज्ञानी पंथ।। 57
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पण्डा बइठ देवार मा बजै नगरिया झांझ।
हांक परी ओच्छा मोरी गूँजे नौ दिन साँझ।। 58
जबा देबारे बोबरि गा होय हूम अस्थान।
संझा से लै रात तक मढ़ई भगत कै तान।। 59
नारी के सम्मान से,सम्बत कै सुरुआत।
दुनिआ का संदेस है, भारत का नवरात। । 60
श्री राघव जू खुद कहिन, तमिलनाडु मा साफ।
जे अइ उनखे सरन मा, सगले अइगुन माफ।। 61
कागा से कोयल कहिस, दिहा काहे खुरखुन्द।
तोहरव प्रिय बोली लगी, बन जा काग भुसुंड।।62
जब मतलब पूछय लगें, रामराज्ज का मित्र।
हम निकार के धइ दिहन,अबधपुरी का चित्र।।63
*पर्यावरण के दोहा ************
परयाबरनी प्रेम कै देखी भारतीय खोज।
अमरा के छहियां करी अपना पंचे भोज।। 64
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पीपर मा बसदेव जू बधी बरा के सूत।
तुलसी जू कै आरती आमा मानैं पूत।। 65
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नीम बिराजैं सीतला औ जल बरुन का बास।
परयाबरन मा पुस्ट है भारत का बिस्वास।।66
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हमरे भारत का रहै चह कउनौ तेउहार।
सब दिन हम पूजत रह्यन बिरबा नदी पहार। ।67
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फुन्नी ता चिकनान ही लगा है जर मा रोग।
भारत अउर बसंत का या कइसा संजोग। । 68
अपना हयन गुलाब अस, हम कनेर के फूल।
कोउ दिहिस मछेह के, छतना काही गूल। । 69
अस कागद के फूल मा, गमकैं लाग बसंत।
जस पियरी पहिरे छलय, पंचबटी का संत।।70
हबा बसंती चूम गै, जब गुलाब के ओंठ।
ता भमरा का झार भै, जिव का रहा कचोट।।71
जब फागुन दसकत किहिस,गड़ी गाँव मा डाँड़।
चिनी केर रंग बदलिगा , लागै जइसा खांड।। 72
जिधना से फागुन लगा, बागै मन बउरात ।
दिन गउरइंया अस लगै, औ जिंदबा कस रात।।73
भमरा तक सूंघय लगा अब चम्पा का फूल।
अइसा मउसम मा भला कासे होय न भूल।।74
पुष्पवाटिकै मा मिली, सहज प्रीत का नेम।
सुरपंखा हेरत फिरय, पंचबटी मा प्रेम।।75
फगुनहटी बइहर चली ,गंध थथोलत फूल।
भमरा पुन पुन खुइ करै, तितली पीठे गूल।।76
सनकिन सनकी बात भै, आगू पाछू देख।
कब आंसू मा भींज गै लखिस न काजर रेख ।।77
बड़ी ललत्ती लग रही, अमराई कै भूंख।
असमव ओखे डाल मा, नहीं कोयलिया कूंक।।78
महुआ अस महकैं लगा, जब मन मा मधुमास।
ता आँखिन के नेत का, भा खंडित संन्यास।।79
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बीस जघा करजा किहिन, ता होइ सका प्रबंध।
अपना का आबा नहीं, नेउता मा आनंद।।80
बिन गोनरी गगरी धरे रही प्यास का साध।
तोहरे निता श्रृंगार रस ओखे जिव का ब्याध। । 81
काहू का घंटा बजै औ काहू का ढोल।
पै किसान के खेत से होइगै यूरिया गोल।। 82
हमरे भारत देस मा कबिता बड़ी लोलार।
छत्रसाल राजा बने कबिता केर कहार।।83
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मन माही माहुर भरे मुंह मिसरी अस मीठ।
अपना के बेउहार का लगै कहूं न डीठ।। 84
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हमरे देस मा होइ चुके अइसा निर्मल गाँव।
लोटिआ लै बाहर चलीं बहू बराये पांव।। 85
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गाँव गाँव आमै लगा जबसे य अख़बार।
मिर्रा तक जानैं लगा सब आपन अधिकार। । 86
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बड़े जबर संगठन हें जात बाद के हेत।
तउ बिटिया के बाप का बिकिगा सगला खेत। । 87
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पता नही कउने जघा को कर दे इंसल्ट
घर से निकरा पहिर के बिन कालर कै सल्ट। । 88
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बड़ा भयानक लगि रहा लोकतंत्र का चित्र।
गंधइलन के कान मा खोंसा फूहा इत्र । । 89
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जेखे पीठे म बजा बारां का घरियार।
ओहिन की दारी सुरिज कढ़ई खूब अबिआर। 90
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पेटहा जब मुखिया बना लुक लुक के खुब खाय।
अस्पताल हिंठै लगा तउ न मन पछताय। । 91
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राखी टठिया मा धरे बहिनी तकै दुआर।
रक्षा बंधन के दिना उई पहुंचे ससुरार।।92
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खजुलइयां लइके मिला, हमरे गांव का नेम।
द्यखतै जिव हरिआय गा, परिपाटी का प्रेम।। 93
सनकिन सनकी बात भै आगू पाछू देख।
आँसू माही भीज गय तब काजर कै रेख ।।94
हाथे मा मेंहदी रची लगा महाउर पाँव।
सावन मा गामै लगा कजरी सगला गांव।।95
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पाथर परिगा फसल मा अब भा मरे बिहान।
हाय !!दइव !या का किहा कहि के गिरा किसान। ।96
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करहा आमा नीझरि गा ठूठ ठाढ़ मउहार।
चौपट होइ गै फसल सब अइसा मारिस वार। । 97
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टप टप अँसुआ बहि रहें खेतिहर परा सिकिस्त।
खाद बीज का ऋण चढ़ा औ टेक्टर कै क़िस्त। । 98
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आरव मिला चुनाव का जागा जनगण देव।
राजनीत ख्यालैं लगी मेर मेर फउरेब। । 99
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कहूं कहूं बूड़ा चढा भरे खेत औ ताल।
हमरे बिंध मा चल रही बदरी कै हरताल।। 100
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न सामन कै हरिअरी न नदिअन मा धार।
बइठ किसनमा मेंड़ मा गदिआ धरे कपार।। 101
चीता आबा देस मा सीगट भा नाराज।
कहिस कि अब कइसा बनब जंगल का महराज। । 102
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सीगट कै ही चाहना रहै जंगली शान।
बन का राजा जब रहै सीगट लोखरी श्वान। ।103
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जंगल मा साहुत बनी ,सीगट लोखरी केर।
देख देख बिदुरा थै ,बन का राजा शेर।। 104
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दहसत माही कलम ही, कागद करै रिपोट।
राजनीत कब तक करी, गुंडन केर सपोट।। 105
गाहिंज करै गरीब कै करय दीन का ख्याल।
'अन्त्योदय' के मंत्र हें पंडित दीनदयाल। । 106
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जे कबहूँ खाइन नही, रोटी भाई साथ।
देस मा उइ बांटत फिरैं जगन्नाथ का भात। ।107
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बेउहर के भीती लिखा ''अति गरीब परिवार ''।
पानी पानी होइ रही बाँच बाँच सरकार।108
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खड़ी जलाका जेठ कै औ भै बिजली गोल।
कूलर से बिजना कहिस जान्या हमरिव मोल। । 109
मघा नखत बदरी करय धरती का खुशहाल।
महतारी के हाथ कै जइसा परसी थाल।। 110
ऊपर दउअय रुठि गा औ नीचे दरबार।
धरती पुत्र किसान कै को अब सुनै गोहर। । 111
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धन्ना सेठन के निता गर्मी बरखा जाड़।
हमही एक मउसम हबै रोटी केर जुगाड़। । 112
कउड़ा के नियरे संघर अपना सेकी देह।
हम धांधर के आग का लिखी उरेह उरेह।। 113
फसलन मा पाला लगा परी ठंड कै मार।
भितरघात मउसम करै खेत कहै आभार।। 114
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नेता जी के नाव से उभरै चित्र सुभाष।
अब के नेता लगि रहें जइसा नहा मा फांस।। 115
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चुटकी भर के ज्ञान का झउआ भर परमान।
तउअव अपने आप का हंस कहै बिद्वान।। 116
अस छरकाहिल मनई भा निठमोहिल बेउहार।
अब ता कारिव के परे हिरकै नहीं दुआर।। 117
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पूरी दुनिया कइ रही जउने रंझ बिलाप।
कारन लुच्चा चाइना गुड़ का कोल्हू बाप।। 118
बिस्व मा हाहाकार है धरी मउत कै सीन ।
वाखर जुम्मेदार है घिनहा घाती चीन।। 119
दुस्ट चाइना बिस्व मा छोड़िस अइसा गाज।
त्राहि त्राहि जनता करै किलपै सकल समाज।120
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नीच चीन के पाप का, देस रहा है भोग।
रजधानी से गाँव तक बगरा छुतिहा रोग।। 121
कहां बची केसे बची, लुकी कहां ठे ओंट।
पेट धंधा से लगि रहा, हमी करोना छोटे।। 122
ठाँव ठाँव करी परी बढ़े करोना केस ।
भारत माता बिकल ही बांच सोक संदेस। ।123
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मिली करोना कै दबा, बरियत्तन हे राम।
अब ता चीन के पाप का, होई काम तमाम।। 124
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परी करोना रोग कै, दुनिया भर मा हाक।
मुँह मा मुसका बांध के, दुइ गज रखी फराक।। 125
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शुभ सदेश मिलते नहीं कहीं किसी भी ठौर।
हे ! प्रभु कब तक चलेगा श्रद्धांजलि का दौर। । 126
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बढ़ा करोना का कहर सावधान प्रिय मीत।
मुंह ढकें दूरी रखें होगी अपनी जीत। । 127
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देख रहा है देस या उनहूँ कै करतूत।
माओ बदिन के निता जे हैं साहुल सूत। । 128
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बहुत सहि चुका देस या नक्सल अत्याचार।
अब ता ओखे रीढ़ मा हरबी कारी प्रहार। ।129
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कहां धरोगे ऎसे धन को जिसमें लगी हो आह।
स्वयं ढूढ़ता वह चलने को घर में बारह राह। 130
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सूरज नेता विश्व का सबका पालनहार।
मानसून हित तिप रहा करने को उपकार। । 131
हमरे लोक के तंत्र का,देखा त अंधेर।
साहब आगू भींज बिलारी,चपरासी का शेर॥132
गददारी उंइ करथें, खांय देस का नून।
लोकतंत्र के देह मां,भ्रस्टाचार का खून॥133
गदियन मां मेहदी रची,लगा महाउर पांव।
सावन मां गामय लगा,कजरी सगला गांव॥134
अस कागद के फूल मां,गमकैं लाग बसंत।
जस पियरी पहिरे छलै,पंचवटी का संत।135
जुगनू जब खेलिस जुआं,लगी जोधइया दांव।
पुनमांसी पकडै.लगी,अधियारे के पांव ॥136
घ्वान्घा मा तइती बधी मुदरी नव ग्रह केर।
बागै पीर मजार तउ लिहिस सनीचर गेर।। 137
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बेमतलब के बहस मा दहकैं ठोंकैं ताल।
महगाई मा मीडिआ पूँछै नहीं सबाल। । 138
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महगाई जब जब किहिस जनता का हलकान।
हष्ट पुष्ट सरकार तक लइ लीन्हिन बइठान। । 139
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चुटकी भर के ग्यान का, झउआ भर परमान।
तउअव अपने आप, का हंस कहै बिद्वान।।140
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भारत माता ही बिकल,सुन के दुःख सन्देश।
सेना पति का खोय के, शोकाकुल है देस।।141
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टूटी फूटी सड़क मा, टोल बरिअ र शुल्क।
जय हो नेता आप कै, सिसकै बपुरा मुल्क। ।142
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अपना कहि के चल दिहन, टी बी मा दुइ टूक।
कोउ भरा उराव मा, उचै काहु के हूक । ।143
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मॅहगी जबक चीज भै, महग तेल पिटरोल।
तउ रजधानी मउन ही, कढ़ै न एकव बोल। । 144
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जनता काही बजट या, लागा थै या मेर।
जइसा क़्वामर पान मा, ब्याड़ै लउग चरेर। । 145
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सम्पाती के दंभ कै, द्याखा ऊंच उड़ान।
जो जटायु अस उड़त ता, करत देस गुनगान। ।146
दियना कहिस अगस्त से, दादा राम जोहार।
तुम पी लिहा समुद्र का, हम पी ल्याब अधिआर। । 147
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दस दुष्कर्मिन का टिकस, हत्तियार का बीस।
लोक तंत्र के सदन के, उचै हिदय मा टीस। । 148
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केतू घिनही लग रही, राजनीत कै चाल।
टुकुर टुकुर जनता लखै, दइके नाक रुमाल। । 149
हे ! पुरुषोत्तम राम जू ,हती दशानन मार।
ताकी कुछ हलुकाय अब, भू मइया का भार। । 150
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गाँधी वाद है बिस्व मा एक बिचार अजोर।
जिनखे बल आई हिआ, आजादी कै भोर। । 151
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जिआ सौ बरिस पार तक, जननायक परधान।
भारत के खातिर हयन, अपना शुभ बरदान। । 152
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जेखे आपन बिछुरिगें, सुधि म भीजै आँख।
उनही है श्रद्धांजली, के दिन पीतर पाख।। 153
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पुरखन के सम्मान का, पितर पाख है सार।
जे हमका जीबन दयिन,उनखे प्रति आभार। । 154
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राष्ट्र गान के हिदय मा, है ज्याखर अस्थान।
पुनि के चाही प्रान्त वा, आपन विंध्य महान। । 155
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बिन इस्नु बिन पाउडर, फागुन गमकै गंध।
द्यांह धरे बगै जना , रीत काल का छंद।।156
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अस कागद के फूल मा, महकैं लाग बसंत।
जस पियरी पहिरे छलय , पंचबटी का संत।।157
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फगुनहटी बइहर चली ,गंध थथ्वालत फूल।
भमरा पुन पुन खुइ करै, तितली पीठे गूल। । 158
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मन मेहदी अस जब रचा, आँखिन काजर कोर।
सामर सामर हाथ मा, जइसन गदिया गोर। । 159
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असमव उनखे बाग, मा नहीं कोयलिया कूंक।
मन मसोस रहि जाय औ, उचय हदय मा हूक। ।160
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सड़क छाप हम आदमी, उइ दरबारी लोग।
हम ता बिदुर के साग अस अपना छप्पन भोग। । 161
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भेद भाव बाली रही , ज्याखर क्रिया कलाप।
हर चुनाव के बाद वा, बइठे करी बिलाप। । 162
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नेतन काही फ्री मिलै , ता लागै खूब उराव।
जनता के दारी उन्ही , लागै मिरची घाव। । 163
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चह जेही थुर देंय उइ ,याकी कहैं कुलांच।
नेता जी के नाव से, अयी न कऊनव आंच। ।164
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सुनिस घोसना कापि गा, थर थर बपुरा पेण्ट।
खीसा का बीमा करी , जेब कतरा एजेण्ट।। 165
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सरबर मा चाकी परै, जब देखा तब जाम।
ओखे बिन सब अरझ गें , बड़े जरुरी काम। । 166
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धन्न बिन्ध्य कै भूमि या, धन्न हें बाबूलाल।
गदगद माटी होइ रही , गांव गली चौपाल।। 167
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भूखों की ए बस्तियाँ , औ फूलों के जश्न।
ओ माली तेरी नियत पर ,क्यों न उठेंगे प्रश्न। । 168
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जंगल बिरबा कटरिगे ,मिली कहा अब मित्र।
फेसबुक मा द्याखत रही , निल कण्ठ के चित्र। ।169
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नील कंठ औ शमी मा ,देखा गा देवत्व।
दसराहा का शुभ हबै ,दरसन करब महत्त्व। । 170
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अपने छाती हाथ धर , खुदै करा महसूस।
अइसन कउन किसान है, जे नहि दीन्हिस घूस। । 171
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जिधना से भृगु जी हनिंन , श्री हरि जू का लात।
लछमी जी रिसिआय के चली गयीं गुजरात।। 172
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बहुत बड़े धर्मात्मा बड्डे धन्ना सेठ।
पै ओखर नोकर रहैं बपुरे भूखे पेट।। 173
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जे कबहूँ खाइस नही रोटी भाइन साथ।
ओखे हाथे मा हबै जगन्नाथ का भात। । 174
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कबहूँ कुरुआ मा नपयन ,कबहूँ नपयन कुरई।
बासमती उनखे निता, हमरे निता कोदई। । 175
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हाँ हजूर हमहूं हयन , फाँसी के हकदार।
हमसे कहबररै नहीं , रिक्शा काहीं कार। । 176
नेता जी के नाव से , उभरै चित्र सुभाष।
अब के नेता लागि रहें, जइसा नहा मा फास।। 177
*********************************
गांव गांव मदिरा बिकै , दबा शहर के पार।
कउने सब्दन मा करी अपना का आभार। । 178
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दारू बंद बिहार मा, लागू कड़क अदेस।
भर धांधर जो पिअय खय ,आबा मध्यप्रदेश।।
आबा मध्य प्रदेश ,हिया ता खुली ही हउली।
पानी कै ही त्रास खुली मदिरा कै बउली। ।
पी के चह जेतू मता ,कउनव नहीं कलेस।
कबहूँ पाबन्दी नहीं अपने मध्य प्रदेश। ।179
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बड़े अदब से बोलिए, उनखर जयजयकार।
गाँव गाँव मा चल रही गुंडन कै सरकार ।। 180
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मुलुर मुलुर जनता लखै , बन के बाउर मूक।
साइत ज्यतबव जाय उड़ , अउर जोर से फूंक। । 181
हा हजूर हम गॉव के शुद्ध देहाती ठेठ।
अपना अस काटी नहीं हम गरीब का पेट। । 182
भारत के मरजाद कै जेहि न एकव ग्यान।
तउ चाहा थी ''हेलना'', बेटा बनै महान। । 183
चह कामिल बुल्के रहैं या रहिमन रसखान।
सब कै मासियानी लिखिस भारत का गन गान। । 184
नीचन मा सत्सङ्ग का , एकव नहीं प्रभाव।
जस घिनहाई मा रमै , कुकूर सुमर सुभाव।। 185
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राजनीत औ मीडिआ ,दुनहु का दिल फ्यूज।
इनही चाही बोट औ ,उनही ब्रेकिंग न्यूज़। । 186
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अंतस मा पीरा करै, अपनेन का बेउहार।
लंका जीते राम जू , औ गें अबध मा हार। । 187
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चोरन का चोट्टा दिखय ,औ शाहन का शाह।
पै झरहन कै रात दिन ,सुलगै छाती डाह। । 188
आसव के सामन मा सजनी , भा येतू बदलाव।
तुम लगत्या हा खजुराहो अस ,औ हम देवतलाव।। 189
************************
धनहन मा दर्रा परा ,पाबस मरै पिआस।
दम्भी बादर कइ रहें , सामान का उपहास।। 190
**********************
ऊपर दउअय रुठि गा ,औ नीचे दरबार।
धरती पुत्र किसान कै , को अब सुनै गोहर।। 191
*********************
रुपया किलो अनाज मा ,जबसे जांगर टूट।
दिन भर ख्यालै तास उइ ,साँझ पिअयं दुइ घूंट। । 192
**************************
दिल्ली ललकारै लगी ,सुन रे बीजिंग नीच।
जो तै ब्रातासुर हये , ता हम बज्र दधीच। । 193
*************************
हर हर महादेव से , गूंज उचा गलबान।
ललकारिस जब इंडिया , चीनी पेल परान। । 194
**************************
दगा बाज ओ चाइना ,तोही दई तिलाक।
अब भारत के हद्द मा , चली न एकव धाक। ।195
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बांसठ का भउसा नहीं , सुन ले जाहिल चीन।
अब भारत समरथ हबै , घुस के लेइ बीन। । 196
*************************
कोउ हिंदू मुस्लिम करै ,कोऊ आर्य अनार।
दोउ जन का चलि रहा ,है घिनहा ब्यापार। । 197
*************************
किहिन मजुरै देस का ,सबसे ज्यादा काम।
तउअव जस मानै नहीं ,मालिक नामक हराम।। 198
**************************
धोखा दीन्हिस इंडिया ,भरी बिपत के ठाँव।
तब आंसू पीरा लये , भारत पहुंचा गांव। । 199
************************
हमरे हियाँ गरीब कै, सब दिन आँखी भींज।
धन्ना से ठ कै आत्मा , कबहूँ नहीं पसीझ। । 200
*******************************
रोटी से बढ़ के हिबै ,जेखे नित अमलास।
वा कइसा अनुभव करी ,पीरा आंसू त्रास।। 201
*************************
हमरे हियाँ मनइन कै ,गजब निराली शान।
पेटे मा दाना नहीं , मुँह मा दाबे पान। । 202
*******************
भाई चारा प्रेम का , चला लगाई रंग।
तबहिन अपने देस मा बाजी झांझ मृदंग। । 203
***************************
जनता से बढ़ के नहीं ,लोकतंत्र मा धाक।
रय्यात से गर्रान जे , बागा रगड़त नाक।। 204
***********************
क्यत्ता बड़ा बिचित्र है ,देस भक्त दरबार।
जे हाँ मा हाँ न कही ,वा घोसित गद्दार। । 205
***************************
दीपदान कै लालसा , तीरथ का अनुराग।
चित्रकोट कोउ जा रहा कोऊ चला प्रयाग। । 206
***************************
धरमराज कै फड़ सजी , चलै जुआं का खेल।
गाँव गाँव मा झउडि गय , शकुनी बाली बेल। । 207
*************************
राबन के भय से लुका , जब से बइठ कुबेर।
तब से धनी गरीब कै अलग अलग ही खेर। । 208
********************
उल्लू का खीसा भरा , छूंछ हंस कै जेब।
या भोपाल कै चाल की, दिल्ली का फउरेब। । 209
********************
जब सागर का मथा गा ,कढ़े रतन दस चार।
ओहिन मा धन्वन्तरी , मिलें हमी उपहार। । 210
****************************
दुनिआ भर कै औषधी , रोग बिथा संताप।
धनबन्तरि का सब कहै , आयुर्बेद का बाप। ।211
**********************
तिली मूंग उर्दा सरा , भा यतरन झरियार।
बरा मुगउरा के निता , परी कहाँ से दार। ।212
*************************
भारत कै पहिचान हें ,राम बुद्ध औ कृष्न।
इन माही स्वीकार नहि ,कउनव चेपक प्रश्न।। 213
*****************************
हिन्दी डाक्दरी पढ़ रही,गदगद मध्यप्रदेस।
पै अंगरेजी से लड़ै , हाई कोट मा केस।।214
**********************
उइ ठेगरी लगबा रहें मार मार के ख्वाँग।
औ जनता बिदुराथी देखि देखि के स्वाँग। । 215
************************
ख़बरदार होइ के मिल्या बहुत न मान्या सूध।
वा गुलदस्ता मा धरे है गोली बम बारूद।। 216
*********236****************
जेही सब मानत रहें जादा निकहा सूध।
ओखे डब्बा म मिला सबसे पनछर दूध।।217
*************************
गदिअय खजुलइया धरे, कजरी गाबै पर्व।
अपने तिथ तिउहार का, गाँव समेटे गर्व। । 218
*************
साहब सलाम औ पैलगी, गूंजै राम जोहर।
अबहूँ अपने गाँव मा, बचा हबै बेउहार। । 219
*************************
भाई चारा प्रेम का खजुलइयां तिउहार।
बढ़ै अपनपौ देश मा मेल-जोल बेउहार। । 220
********************
छुरा घोंपते पेट में चढबाते परसाद।
जैसे लेखनी पूजता हो कोई जल्लाद। । 221
*********************
धर फूलों के बीच में जिसने ठोकी फ़ांस।
हमने देखा आँख से उसका होते नाश। ।222
************************
त्राहिमाम जनता करय गुंडा हाकै राज।
मुड़धारियन के कण्ठ से निकरै नही अबाज। । 223
*******************
बने हितैषी घूमते रचते नाना ढोंग।
शोषण करते जाति का स्वयं जाति के लोग। । 224
*************************
जिसने कभी विकास पर दिया तनिक न ध्यान।
जाति वाद उनके लिए सत्ता का सोपान। ।225
*****\****************
'हंस ' योग्यता का सदा रहा सुखद परिणाम।
अफजल को फाँसी मिली राष्ट्राध्यक्ष कलाम। । 226
*******\*********************
भले अभावों से सदा रहे जूझते जंग।
पर जीवन के चित्र में हो ईमान का रंग। । 227
******\********************
उनखर हिबै समाज मा सबसे लम्बी पूछ।
जे बैभव से भरे हें संवेदना से छूछ। । 228
********\*********************
लेखनी जब करने लगी कागद लहू लुहान।
ब्रह्म शब्द तक रो पड़ा धरा रह गया ज्ञान। । 229
****************************
बपुरा सुविधा संच का तरसै हिंया मजूर।
अपना का आँसै नही वा भर मुंह कहै हजूर। । 230
************************
सत्ता अउर साहित्त कै बस येतू बिरदन्त।
उनखे कई 'जयन्त ' औ हमरे ठई ''दुष्यंत "। । 231
*****************************
दशा देखिये श्रमिक की या उसका उन्माद।
पीड़ा में मावाद है मुंह में जिन्दावाद। । 232
**************************
है प्रत्यक्ष प्रमाण सी , श्रम की साधक आह।
खड़ा हुआ ये ताज है, वो हो गये तवाह। । 233
******\***********************
ऐसा जीवन दीजिये हे राम तुम्हें सौगन्ध।
मेरे रिश्तों से कभी आये न दुर्गन्ध। । 234
***\******************
घातक भ्रष्टाचार से यहाँ मिलावट खोर।
करते है ये देश का तन मन धन कमजोर। ।235
******पंडित दीनदयाल **********
गाहिंज करै गरीब कै, करै दीन का ख्याल।
अंत्योदय के मंत्र हें, पंडित दीन दयाल।। 236
***************
जब भारत माही मची, सामाजिक दहचाल।
मानववाद लइ आय गें, पंडित दीन दयाल।। 237
***********************
अपने तीरथ बरथ मा, राष्ट्र वाद का प्रेम।
'एकात्म' के ग्रंथ मा, सबका हित औ क्षेम।। 238
************************
बसै देस कै आतिमा, टोला गाँव देहात।
पंडित जी के सूत्र हें, जगन्नाथ अस भात।। 239
***********************
राष्ट्र वाद के कलश अस, एकात्म के मूल।
पंडित जी शतशत नमन, करै बघेली फूल।।240
***************************
चाहे ये सत्ता रहे या कि और विधान।
पंडित दीनदयाल का बिखरे न अभियान। । 241
**********************************
आंसू क्रंदन का यहां मत कीजै व्यापार।
अन्य दिशा में मोड़िये राजनीति की धार। । 242
**************************
सदा गरीबों ने लड़ा लोकधर्म का युद्ध।
पर कुलीन की कोख से आये सब दिन बुद्ध। । 243
**************************
पूंजी पति की देखिये सूझ बूझ तरकीब।
हरे लाल के रंग में बंटता रहा गरीब। । 244
********************
वैचारिक सी वामियां सिद्धांतों के पाप ।
जनमेजय को डस रहे नाप नाप कर सांप । । 245
***************************
हाथे मा मेंहदी रची ,कर स्वारा सिगार।
गउरी पूजैं का चली ,सजी सनातन नार। । 246
******************
भले छह्याला मा रहा ,सत्त सनातन बीज।
आपन सत छाड़िस नहीं ,परिपाटी अस चीज। । 247
जनता के हाथे हबय लोकतंत्र का मान।
चला चली सब जन करी सौ प्रतिशत मतदान।। 248
***************************
चुनकी मा चुकरी धरे ,भरे सतनजा भूंज।
दाऊ कै मइया चली , अगना हरछठ पूज।। 249
***************************
छुला जरिया कांस औ ,पसही महुआ फूल।
हरछठ प्रकृति अभार कै ,हिबै भाबना मूल। । 250
जिधना जमुना जी किहिन, यम के तिलक लिलार।
भाई बहिन के प्रेम कै , बन गय दुइज लोलर। । 251
********************************
हयी हमारे देस मा , बहिनी बिटिआ पूज।
भाई बहिन के प्रेम का ,पाबन भाई दूज। । 252
****************************
ईसुर से बिनती करी , यहै लालसा मोर।
अपना का जीबन रहै , जगमग सदा अजोर। । 253
*************************
विवेका नंद जी
पूज विवेकानंद मा है भारत का गर्व।
उनखे बसकट मा रमा जुवा दिवस का पर्व।।254
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रचिन विवेकानंद जी एक नबा इतिहास।
भारत केर महानता का बगरा परकास।।255
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जुरे शिकागो मा रहें दुनिया के बिद्वान।
एक सुर मा ब्वालैं लगें जय जय हिन्दुस्तान।।256
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चाह शंकराचार हों चाह विवेका नंद।
भारत के जसगान का रचिन ऋचा औ छंद।।257
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भारत माता के रतन लाड़िल अटल लोलार।
जन जन के हिरदय बसें दीन्हिस देस दुलार।।258
*******************************
अटल बिहारी देस के उज्जर एक चरित्र।
उनखे अस को देस मा भला बताबा मित्र।। 259
****************************
भारत के नेतन निता अटल एक इसकूल।
देस देय श्रद्धांजली सादर आंखर फूल।। 260
पन्नी बीनत बीत गै ज्याखर उमिर किसोर।
ओखे दुअरै कब अइ बाल दिबस कै भोर।। 261
जे कबहूं जानिस नही पोथी अउर सलेंट।
बूटन मा पालिस किहिस होटल घसिस पलेट।। 262
हिंआ ब्यबस्था खाय गै पंजीरी औ खीर।
गभुआरन के भाग मा बदी कुपोसित पीर।। 263
दरबारी जेही कहै बोटहाई मा नात।
पै कबहूं देखिन नही वाखर दुधिया दांत।। 264
हबैकुपोसित देस मा जेखर ल्यादा घींच।
ओ! बालदिबस फुरसत मिलै ता उनहूं का सींच।। 265
***************************
जातिहाई का जानिगें उइ अटकर अंदाज।
सुदिन देख ह्यराय चलें जब बिटिया का काज। ।
जब बिटिया का काज जबर है दइजा नाहर।
सुन दहेज़ का भाव थूंक न निकरै बाहर। ।
बिन दइजा के बड़ मंशी का को अपनाई।
हंस कहिन बस वोट के खातिर ही जातिहाई।।266
चांदी कै चम्मच करै , पतरी केर दुलार।
या बरबस्ती देख के , दोनिआ परी उलार।। 267
****************************
बड़ा अमारक जाड़ है ठठुरा है परधान।
उइं बिदुराती हईं कह 'दुइ रूई 'का उपखान।।268
***************************
बने हितैषी घूमते , रचते नाना ढोंग।
शोषण करते जाति का स्वयं जाति के लोग। ।269
***********************
उनखर हिबै समाज मा सबसे लम्बी पूछ।
जे बैभव से भरे हें संवेदना से छूछ। । 270
*************
नफरत कै खेती करैं ,मन के रोगी लोग।
हे धनबंतर जी करा ,उनखर हिदय निरोग।। 271
*****************
देस मा भ्रस्टाचार का, ह्वाथै यतर निदान।
जइसा जींस पहिर के काटै फसल किसान।।272
******** ************
ओतुन परबस्ती करा , जेतू कूबत पास।
परोपकार मा चला गा ,भोले का कैलास।। 273
****** ***********
रहिमन पनही राखिये ,बिन पनही सब सून।
दिल्ली से देहात तक ,पनही का कानून।। 274
******** **********
श्री राघव जू आ रहें बीते चउदह साल।
या उराव मा जलि रहे घर घर दीप मशाल।।275
*****************************
येतू दीन्हिस देस का, आभारी है हिंद ।
तउअव रोजी के निता , तरसै बपुरा बिंध । । 276
****************************
पहिले प्रेम प्रसंग का ,खूब भा लोकाचार।
फेर ओही लुच्ची कहिस ,वा ओहि दहिजार।। 277
***************************
बिद्या का मंदिर दिहिन उंइ निकहा के लीप।
कोऊ लइगा जंगला, कोऊ सरिआ चीप।।278
*******************************
वा कुपंथ कै देख ल्या केतू कुटिल हिआव।
आर्य द्रबिन मा भेद कइ ,बाँट रहें हें गॉव।। 279
देखा केतू गहिर है लोकतंत्र का कुण्ड।
राजकुमार जयंत तक बनगे कागभुसुण्ड।।280
बब्बा जी कीन्हिन रहा खसरा केर अपील।
नाती तक पेसी चली बिदुराथी तहसील।। 281
*********************************
भारत के इतिहास मा आबा अइसा बक्त।
महबूबा तक बन गयीं महादेव कै भक्त।। 282
हाथे मा मेंहदी रची , कर स्वारा सिगार।
गउरी पूजैं का चली ,सजी सनातन नार। ।283
खूब फलिहाइस रात भर, दिन निर्जला उपास।
देखा भारतीय प्रेम के , अंतस केर मिठास ।। 284
जबसे उंइ डेहरी चढ़ीं , छूट हिबय सरफूंद ।
हमरे जीबन के दिहिन , सगले अबगुन मूंद।। 285
*****************************
कहिस कुलांचै धरम का, दिहिस आतिमा रोय।
जइसा कउनव बाप कै, बिटिआ भागी होय।। 286
****************************
जउनै दल हेन न करी, धरम कै जय जयकार।
बामपंथ अस होइ जई, वाखर बंटाधार।। 287
****************************
राजनीत कै नीचता, देखि के जुग चउआन।
गांधी बादी देंह मा, बाम पंथ के प्रान।।288
********************************
तानासाही सोच का लोकतंत्र न रास।
पेटे मा अकरास ही मुंह माही उपहास।।289
****************************
बंदेमातरम जब कहिन, हमरे देस के पूत।
सुन बइरी थर्राय गा , हेराय लाग भभूत ।। 290
*******************************
दुनिआ माही को करी, हमरे देस कै सउज।
हर हर महादेव जब, ब्वालै आपन फउज।। 291
*******************************
मोदी हमरे देस के, स्वाभिमान परतीक।
भुट्टो कै अउकात ही, जइसा पान कै पीक।। 292
***************************
भारत कै ही कामना, अपनव बनी नजीर।
जइसा माता इंदिरा, दिहिन "पाक" का चीर।। 293
********************************
न सामन कै हरिअरी न नदिअन मा धार।
बइठ किसनमा मेंड़ मा गदिआ धरे कपार।।294
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बड़ा अमारक जाड़ है, ठठुराबय दहिजार।
साजन से सजनी कहिस, लगत्या आजु पिआर। । 295
*********************************
जाड़े का ओरहन दइस,भींज वास कै रात।
ता संज्ञा का छोड़ के, सुरिज कढ़ा बिदुरात।। 296
******************************
राजनीत औ धरम का, जुगन जुगन से साथ।
अजुअव हें उइ साथ मा, भला कउन नई बात।। 297
*************************
नबा साल मा सब जने, रहैं निरोग प्रसंन्न।
सब काही रोजी मिलय, खेतन मा हो अन्न।।298
****************************
बड़ी बड़ाई का लगै अपना का जो मोह।
ता कुछ जन का जोर के लेई बनै गिरोह।।299
********************************
कूकुर का कूकूर लगै, दिखय सिंह का शेर।
यातो ओछाहिल सोच ही,याकि नजर का फेर।। 300
****************************
सत्य अहिंसा प्रेम का गाँधी एक बिचार।
गाँधी दरसन मा हबै जीवन का सुख सार।।301
लिहे किसनमा ठाढ़ है, खेते कै फ़रियाद।
बिजली घाई गोल ही, मोरे बीज कै खाद।।302
संत सताबत देख के,लगी हिदय मा ठेस।
केतू नामक हराम है, जालिम बांग्ला देस।।303
जेखर उपरउझा लिहिस, जूझा भारत देस।
वहय सनातन का बना, सबसे बड़ा कलेस।।304
जे गरीब तक से लिहिन, अपने पुरबी घूंस।
देशभक्ति के सभा मा, ओखर जबर जलूस।।305
जे कबहूं घोरिस नहीं, पानी माही हींग।
भा निनार ता जम गयीं, ओखे मूड़े सींग।।306
नल कुबेर के हिदय मा, काहे उचय न टीस।
वा एक तो बड़मंसी लिहिस, औ मागै बकसीस।। 307
भला बताई आप से, कउन ही आपन सउंज।
अपना बोतल का पियी, हम पी पानी अउंज।।308
छोहगइली लये चांदनी, जागी सगली रात।
नदी तीर गोठत रहा, चन्दा रोहणी साथ । । 309
जब से पोखरी ताल का, होइगा पानी थीर।
ता चकबा निरखैं लगा, चंदा कै तसबीर।। 310
प्रेम भरी पोखरी रही, कोउ दिहिस घघोय।
जस बिजली के तार का, जम्फर टूटा होय।। 311
पहिले लड़ीं गिलास खुब, नेम प्रेम सम भाव।
फेर गारी गुझुआ भयीं, होय लाग जुतहाव।। 312
बांध फूट पुलिया बही गिरी कहूं स्कूल।
दरबारी कहि रहें हें यमै दइव कै भूल।। 313
संकट मा भारत दइस, सरना गत का टेक।
चाह दलाईलामा हों, याकि हसीना सेख।। 1314
हमरे भारत मा हबै, मउसम केर बिभाग।
होय देबारी देस मा, ता वा बताबय फाग।। 315
लिपटिस पीपर से कहिस, है उपयोग हमार।
पै भारत मा हर जघा, पूजा होय तुम्हार।। 316
पीपर बोला सुन सखा, हम भारत के बीज।
हम हन मंदिर अस हिया, औ तुम जस टाकीज।। 317
राघव के दरसन निता, आँखी रहीं बेचैन।
जब मंदिर के पट खुलें, छलक परे दोउ नैन।।318
जुग जलसा भा अबध मा, उइ लीन्हिन मुँह फेर ।
तबय कुसाइत आय गै, लिहिस सनीचर गेर।।319
भले लगा लें जोर सब, उनही दई तिलाक।
करके चूर घमंड का, टोरिहै राम पिनाक।। 320
सुनतै जेखे नाव का, जांय मुगलिया कांप।
भारत के वा बीर हैं, महराणा परताप।।321
भ्रस्टाचार मा डूब गा, जब मगधी दरबार।
धनानन्द सैलून मा, लगें बनामय बार।।322
कहिन फलाने हम हयन, पढ़े लिखे भर पूर।
पै अब तक आई नहीं, बोलय केर सहूर।।323
भारत पूजिस सब दिना,रिसी कृसी के साथ।
एक हाथे मा शास्त्र का, शस्त्र का दूजे हाथ।।324
चिलचिलात या घाम मा, मिली कहूं न छाह।
चिटका फोरत चली गय, एक पिआसी डाह।।325
तुम रहत्या जब साथ ता , पता चलय न बाट।
औ रस्ता छोह्गर लगै, मानो मोहनिया घाट।। 326
लेत रहें जे थान के, लम्बाई कै नाप।
अर्ज देख लोटय लगा,उनखे छाती सांप।।327
भला बताई आप से, कउन ही आपन सउंज।
अपना बोतल का पियी, हम पी पानी अउंज।।328
न मात्रा का ज्ञान है, न हम जानी वर्ण।
पारस के छुइ दये से, लोहा होइगा स्वर्ण।। 329
जेखे मूड़े मा रहय, अपना का आशीष ।
वा बन जाय कनेर से , गमकत सुमन शिरीष। । 330
चाहे कोऊ कवि लिखय, चह शायर श्रीमान।
सब्द सक्ति जब तक नहीं, तब तक नही प्रमान।। 331
राजमार्ग मा चल रहें , बड़े बेढंगे यान।
चालक काही है नहीं, अपर डिपर का ज्ञान।।
जे आँख मिलाइस सुरिज से भा अपंग वा गिद्ध। ।332
जो जटायु अस रहत ता जग मा होत प्रसिद्ध।।
एक गंधाइला जेल का एक अतर कन्नउज।
भ्रष्टाचार से कइ रहें शिष्टाचार कै सउंज।। 333
सब दिन लड़ें गरीब हेन लोक धरम का जुद्ध।
पइ महलन के कोंख से आये सब दिन बुद्ध।।334
भारत के पहिचान हें राम बुद्ध औ कृष्न।
इन माही स्वीकार नहि कउनौं क्षेपक प्रश्न।।335
पूंछ रही ही दलन से, लोक सभा कै ईंट।
केतने दुष्कर्मी निता, है आरक्षित सींट।।336
केबल हबै चुनाव तक, जातिबाद का ढोंग।
जनता ही उनखे निता , चेचर अउर चिपोंग।।337
अपने छाती हाथ धर, खुदै करा महसूस।
को ठीहा मा बइठ के, लिहिस न जात से घूंस।। 338
सूरज नेता बिस्व का, सबका दे उजिआर।
पै उल्लू गरिआ रहें, उनही रात पिआर।। 339
सगले उल्लू समिट के, दिन का कहैं कुलांच।
कहिन कि अब हमहूं करब, सुरिज के रथ कै जाँच।। 340
राहू से केतू कहिन, हम पंचे सब एक।
चला चली मिल के कारी, खुद आपन अभिषेक।। 341
अबै ता चीन्हय दूर से, जाति बाद का जिंद।
फेर चुनाव के बाद मा , उनखे मोतियाबिंद।। 342
गदगद होइगै आतिमा ,देख अबध पुर पर्व।
सगले दानव दुखी हें , मानव का है गर्व। । 343
आदि पुरुस जहाँ मनू भें, करिन सृष्टि निरमान।
अजोध्या पाबन धाम है , मनुज का मूल अस्थान।। 344
अबै गरीबन के लगी टप टप अंसुअन धार।
अइसा मा कइसा लिखी पायल कै झंकार।।345
रहा गरीबन से सदा बोटन का बेउहार।
दूबर कै एकादशी मोटन का तेउहार।।346
राष्ट्रबाद से सुरू भा ,जाति बाद मा बंद।
केत्ते सुर बदलय परें, गामय का एक छंद।।347
भारत का गउरव बढ़ा, बढ़ा तिरंगा मान।
अभिनंदन दुनिया करै, जय खगोल बिज्ञान।।348
दुनिआ मा हो शान्ती, हे ! माता स्कंद।
हे ! दुरगा दुरगति हरा, बाढ़य प्रेम आनंद।। 349
गुँजय मइहर धाम मा ,भगत ऋचा श्लोक।
हरतीं मइया सारदा, भक्त के संकट सोक। । 350
श्रद्धा औ संगीत का, सपना भा साकार।
नल तरङ्ग संतूर संग, बाजैं लाग सितार।।351
मइहर घोसित भा जिला, जनता करै उराव।
पांच सितंबर लिख दइस, स्वर्णाक्षर मा नाव।।352
गदगद मइहर धाम है, पूर भा मन कै टेक ।
मेघा बरखें झूम के दइव करै अभिषेक। । 353
कालनेमि पुन देश मा, रचे हें मायाजाल।
जनता कै रक्षा करा, हे अंजनि के लाल।।354
दुनिया मा सब दिन लड़ें, धरम औ रीत रिबाज।
शाकाहारी सुआ के, बीच रहै न बाज।। 355
हमी न नजरा तुम यतर दरबारी सरदार ।
दुइ कउड़ी के हयन पै मन के मालगुजार। । 356
जबसे वा कनमा भरिस हिरनकच्छ के कान।
तबसे प्रेम प्रहलाद कै खतरे मा ही जान। । 357
पहिले प्रेम प्रसंग का ,खूब भा लोकाचार।
फेर ओही लुच्ची कहिस ,वा ओहि दहिजार।। 358
भमरा तक सूंघय लगा अब चम्पा का फूल।
अइसा मउसम मा भला कासे होय न भूल।।349
ठूठन मा फुटकी कली यतरन आबा जोस।
तन कै हालत देखि के मन का रह्यान मसोस ।।350
जय जय अमर सहीद कै, आजादी के मूल।
अपना का अर्पित करी,आंखर आंखर फूल।। 351
जिनखे माथे पूर भा, आजादी का जज्ञ।
हम भारत बासी हयन, उनखर रिनी कृतज्ञ।।352
थइली ही उनखे निता, रइली हमरे नाम।
कइसा हीसा बाँट के, दीन्ह्या हमही राम।।353
देस मा भ्रस्टाचार का , ह्वाथै यतर निदान।
जइसा जीन्स पहिर के , काटै फसल किसान। । 354
चह जेखर जलसा रहै, मिलैं गरीबय थोक।
हर रइली के बाद मा, आँसू पीरा सोक। । 355
खेत बिका कोलिया गहन बिकिगा झुमका टाप।
पट्टीदार बिदुराथें सिसकै बिटिअय बाप।।356
मानस माही जे रहें ,कांदव कीच उलीच।
उइ मनई लागैं हमीं, उच्च कोटि के नीच।। 357
बड़ा अमारक जाड़ है, ठठुराबय दहिजार।
साजन से सजनी कहिस, लगत्या आजु पिआर।358
ओतुन परबस्ती करा , जेतू कूबत पास।
परोपकार मा चला गा ,भोले का कैलास।। 359
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आरव मिला चुनाव का, जुरय लाग सहदेब ।
राजनीत ख्यालैं लगी, मेर मेर फउरेब। ।360
हे लछिमी जू आइये , साथै सिरि गनेस।
मोरे भारत देस मा , दालिद बचै न शेष।। 361
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-कीर्तिशेष -कवि -लछिमन सिंह परिहार-
किहिन बघेली का सुघर , हस्ट पुस्ट दिढ़बार।
आंखर आंखर मा अमर ,लछिमन सिंह परिहार। ।362
अपने बोली का दिहिन, जिवभर खूब दुलार।
पयसुन्नी रेबा कहै , जय महराज कुमार । । 363
समय लिखी इतिहार जब , कबौ बघेली सूत।
बांच बांच बिंध्या कही , धन्न हे ! बानी पूत। ।364
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भारत रतन पटेल
आजादी के दिआ मा, भरिन जे बाती तेल।
देस करै सत सत नमन ,भारत रतन पटेल।। 365
पांच सै बांसठ राज मा, अइसा कसिन लगाम।
सब उनखे ललकार से ,लिहिन तिरंगा थाम। ।366
सिरि सरदार पटेल कै , सूझ बूझ औ ढंग।
देख के साहस बीरता ,दुनिया रहि गय दंग।367
गुरिआ गुरिआ गुहि दिहिन ,देस का साहुत सूत।
जय बल्लभ 'सरदार' जी, भारत रतन सपूत। ।368
हम भारत बासी करी ,शत शत नमन अभार।
जब तक चंदा सुरिज हें, नाव चली सरदार। । 369
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शम्भू काकू
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जहां बघेली आय के, होइगै अगम दहार।
वा रिमही के शम्भू का, नमन है बारम्बार।। 370
बघेली साहित्त के, शम्भू काकू सिंध।
देह धरे गाबत रहा, मानो कबिता बिंध। । 371
गांव गली चउपाल तक, जेखर बानी गूंज।
श्री काकू जी अमर भें, ग्राम गिरा का पूज। । 372
लिहे घोटनी चल परैं, जब कबिता के संत।
सब कवि काकू का कहैं, रिमही केर महंत। ।373
न चुट्कुल्ला उइ कहिन, ना अभिनय परपंच।
बड़ा मान आदर दइस,तउ कबिता का मंच। । 374
जेखे कबिता के बिषय, आंसू आह कराह।
अच्छर फरयादी बने, काकू खुदै गबाह। ।375
कबिता का पेसा नहीं, जेखे कबहूं चित्त।
बिन्ध्य लिलारे मा, लिखे, काकू केर साहित्त। । 376
आंखर आंखर मा बसय,काकू कै कहनूत।
हंस बंदना कइ रहा, धन्न बघेली पूत। । 377
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भगवान परशुराम
शासक जब कीन्हिन बहुत, सोसन अत्याचार।
तब ईस्वर का लें परा, फरस राम अबतार।। 378
दुस्टन काही काल अस, औ सज्जन का संत ।
भृगु नंदन श्री राम हैं, स्वाभि मान श्री मंत ।।379
भारत पूजिस सब दिना,रिसी कृसी के साथ।
एक हाथे मा शास्त्र का, शस्त्र का दूजे हाथ।। 380
जुग नायक ता भे नहीं, कबौं जात मा कैद।
उइं बीमार समाज के, हें सुभ चिंतक बैद।। 381
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देस मा केतू होइ चुका, भ्रष्टाचार निलज्ज।
अब ता शक माही हमय , न्यायधीश अउ जज्ज।। 382
जन मानस मा बसे हें परम ब्रह्म श्री राम।
जे उनसे भा बिमुख ता समझा काम तमाम।।383
हिरणाकश्यप जब किहिस, धरम केर उपहास।384
दुष्ट राक्षसन मा लिखा,है वाखर इतिहास।।
पहिले हिरदय मा किहिन, सब्द बान से घाव।385
अब पुटियामै के निता, हेरय लाग हिआव।।
बंदनीय जे जगत मा, चढै रोज जल फूल।पाबन तुलसी का कहै, रेंणा ऊल जलूल।। 386
धन्न है उनखे ग्यान का, देस करी उल्लेख।
जे जनता से कहि रहें ,मगरोहन का मेंख ।।
सोसन किहिन गरीब का, पी गें पसीना रक्त।
उंइ बहुरुपिया बनि रहें, भीमराव के भक्त।।
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