बघेली कविता htpp;//baghelihemraj.blogspotbagheli sahitya
हमरे घर के आगी का
बदला नाव बैसुन्दर होइगा।
जे आने का हड़पिस हीसा
ओही आज भगन्दर होइगा। ।
लोभ दिहिन उई बन के बदरी
फसल जमी ता निचंदर होइगा। ।
बन गा सोने का मृग मामा
औ साधू दसकंधर होइगा। ।
पुन के छली जई अब वृंदा
आतताई जलंधर होइगा। ।
चुहकै लगे ख़ून जनता का
उनखर पेट सिकंदर होइगा। ।
जहा समाती है सब नदिया
वाखर नाव समन्दर होइगा
हेमराज त्रिपाठी