लगथै उनखर उतरिगा जादू।
हेरा आन गुनिया अब दादू।।
कब तक सूख पेड़ का द्याहा
पुन पुन पानी पुन पुन खादू।।
बजरंगी का कब तक छलिहै
कालनेम बन ज्ञानी साधू ।।
एक न मानिस हिरना कश्यप
खुब समझा के हार कयाधू।।
बघेली साहित्य -का संग्रह हास्य व्यंग कविता गीत ग़ज़ल दोहा मुक्तक छंद कुंडलिया
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शनिवार, 29 अप्रैल 2023
लगथै उनखर उतरिगा जादू।
गुरुवार, 27 अप्रैल 2023
गदहा का कहिहैं बाप। आसव चुनाव है।
काव्य संध्या एवं सम्मान समारोह मैहर KAVI LAHARI JI MAIHAR
मंगलवार, 4 अप्रैल 2023
शनिवार, 1 अप्रैल 2023
रविवार, 26 मार्च 2023
गाँव -गाँव बोबा जबा पंडा दे थें हूम।
गाँव -गाँव बोबा जबा पंडा दे थें हूम।
लोक धरम कै देस मा चारिव कईती धूम। ।
बाना खप्पड़ कालका जबा देवारे हांक।
बिन प्रचार के चल रही लोक धर्म कै धाक। ।
आठैं अठमाइन चढ़ै खेर खूंट का भोग।
जलसा का कलसा धरे ''राम जनम का जोग ''। ।
नौ रात्रि
सोमवार, 20 मार्च 2023
गुरुवार, 23 फ़रवरी 2023
औ कोऊ आंसू ढारत अउलाद का तरसा थै।।
राजनीत चढाथी जब जब पाप मा।
तब नेतागीरी सेराथी सिताप मा।।
तुलसी के मानस कै सदा होई आरती
पै उइ न हेरे मिलिहैं कउनौ़ किताप मा।
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कोउ दहिना कोउ बइता हेरा थें।
चचरी मचामै का रइता हेरा थें। ।
उनखर सोच बड़ी प्रगत शील ही
धानमिल के जुग मा कोनइता हेरा थें। ।
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किसान बिचारा खाद का तरसा थै।
निर्बल बपुरा फरिआद का तरसा थै।।
कोऊ जीबन काटा रहा है बृद्धाआश्रम मा
औ कोऊ आंसू ढारत अउलाद का तरसा थै।।
हम समाज के मिल्लस कै आसा करी थे।
ता अपना हमरे ऊपर इस्तगांसा करी थे।।
बहुरुपियव लजाय जाय अपना का देख के
निकहा नाटक नेरुआ औ तमासा करी थे। ।
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तसला ता मिला खूब तसल्ली नहीं मिली।
हमरे खिआन पनही का तल्ली नहीं मिली।।
कउड़ा ताप ताप के गुजारी रात हम
जाड़े मा कबौं ओड़य का पल्ली नहीं मिली। ।
रक्छा के इंतजाम केर दाबा बहुत हें
घर से जो निकरी बपुरी ता लल्ली नहीं मिली। ।
वा नामी धन्ना सेठ है धरमात्मा बहुत
पै दुआरे मा गरीब का रुपल्ली नहीं मिली।।
रिकॉड मा गुदाम लबालब्ब भरी हय हंस
जब जांच भै त एकठे छल्ली नहीं मिली।।
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आहट पाके प्यास की गढ़ता घड़ा कुम्हार
तृष्णा को तृप्ती मिले शीतल जल की धार
गढ़ते गढ़ते गढ़ गया जीवन का सोपान
समय चाक पर चल रहा माटी का दिनमान
पानी जब बिकने लगा बोतल पाउच बंद
प्यासे को मिलता नही मटके सा आनंद
प्यास बुझाने के घड़े गढ़े जो माटी पूत
आंसू पीकर जी रहा बन कर एक अछूत
हेमराज हंस
खेत बिका कोलिया गहन बिकिगा झुमका टाप।
पट्टीदार बिदुराथें सिसकै बिटिअय बाप।
लेखन जब करने लगा कागद लहूलुहान।
ब्रह्म शब्द तक रो पड़ा धरा रह गया ज्ञान।।
गुरुवार, 26 जनवरी 2023
महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला" की जयंती
माँ शारदा की पावन नगरी मैहर की साहित्यिक सांस्कृतिक सामाजिक संस्था "अंकुर " के तत्वावधान में देश के ७४वे गणतंत्र दिवस एवं " महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला"जी की जयंती के अवसर पर , साहित्यानुरागी राधव जैन जी के निवास में , देश की वरिष्ठ कवियित्री विदुषी मनीषा श्री मति मधु माधवी जी के संयोजन में काव्य गोष्ठी का आयोजन संपन्न हुआ। जिसमे अंकुर के अध्यक्ष श्रीयुत रामनरेश तिवारी जी , अंकुर के संस्थापक सदस्य वरिष्ठ गीतकार कुशवाहा हरि जी , अंकुर के संयोजक सचिव श्री वीरेंद्र प्रताप सिंह जी ,अंतरराष्ट्रीय कवि श्री आचार्य रामाधार अनंत जी वरिष्ठ नवगीतकार श्री भोला नाथ जी ,मैहर के लाड़ले शायर साहिर रिवानी जी , श्री मति बाला शुक्ल जी , श्री मति दिति सिंह कुशवाह जी ,श्री घनश्याम सोनी जी , श्री रामेशवर लहरी जी , श्री ठाकुर प्रसाद कुशवाहा जी , श्री शिवम् चौरसिया जी , हेमराज हंस , ने काव्य सुमन से काव्य गोष्ठी को सुरभित किया। संचालन युवा कवि आशीष त्रिपाठी द्वारा किया गया। मैहर के गणमान्य नागरिक डॉ. अशोक अवधिया जी , डॉ गया प्रसाद चौरसिया जी , भाजपा नेता , श्री सत्यभान सिंह पटेल जी सरस्वती विद्यालय उंचेहरा के आचार्य जी राज कुमार जैन जी सहित अन्य सुधि श्रोताओं की उपस्थिति में कार्यक्रम संपन्न हुआ।
सोमवार, 2 जनवरी 2023
हम दयन नये साल कै बधाई।
हम दयन नये साल कै बधाई।
फलनिया कहिस तोहइ लाज नहीं आई।।
पाँव हें जोंधइया मा हाथे परमानु बम
पै देस मा घ्रिना कै खासा जबर खाई। ।
शुक्रवार, 30 दिसंबर 2022
बघेली साहित्य bagheli sahitya हेमराज हंस : चढ़य मूँड़ घर मा मालकिन का
सोमवार, 19 दिसंबर 2022
राबन जब राजा बना,
सोमवार, 12 दिसंबर 2022
सरी ब्यबस्था गाँव कै,
रविवार, 6 नवंबर 2022
बाबूलाल दाहिया
बघेली कविता के जेष्ठ और श्रेष्ठ कवि
(39 वी क़िस्त)
श्री हेमराज 'हंस '
आज यदि पुरानी कविताओ से नई कविताओ का तुलनात्मक अध्ययन किया जाय तो ऐसा लगता है कि नए युवा कवियों के कहन में और तीखा यथार्थ व कविताओ में ज्यादा पैना पन है।
मनुष्य के क्रमिक विकास को यदि देखे तो उसने जो भी अनुभव और अनुसंधान किया उसे नई पीढ़ी को बताया। नई पीढ़ी ने उसकी समीक्षा की। परिस्थिति जन्य कारणों से जो छोड़ने लायक था उसे छोड़ा और शेष में अपना अनुभव तथा अनुसंधान जोड़ती चली गई।
ठीक उसी प्रकार हमारे युवा कवियों ने पुराने कवियों की कविताए तो पढा ही उनने चार कदम आगे बढ़ते हुए यह भी सोचा कि अब हमें वर्तमान परिस्थितियों को देखते और क्या क्या लिखना चाहिए जो आज के समाज के माप डंडों में खरा उतरे ?
ऐसे ही सम्भावनाओ से युक्त आज हम जिस कवि से आप की भेट करा रहे है वे है श्री हेमराज त्रिपाठी 'हंस' श्री हंस सतना जिले के मैहर ब्लाक के भेड़ा गाँव के निवसी है।
उनने मुक्तक ग़जल दोहे घनाक्षरी आदि अनेक बिधाओ में अपनी बघेली कविताए लिखी है।
आइये सब से पहले उनके कुछ मुक्तक देखिये।
फलाने कै भंइसी निकहा पल्हाथी,
लगाथै आँगनबाड़ी कै दरिया वा खाथी।
गभुआर बहुरिगें धांधर खलाये ,
सरकारी जोजना ठाढ़े बिदुराथी।।
नल तरंग बजाऊ थें बजबइया झांझ के,
देस भकती चढा थी फलाने का सांझ के।
उनही ईमानदार कै उपाधि दीन गै,
जे आंधर बरदा बेंच दइन काजर आंज के।।
सनीचर का पता अढइया से पुंछत्या हय,
सांन्ती का पाठ लड़इया से पुंछत्या हय।
भोपाल से चला औ चउपाल मां हेराय गा,
बिकास का पता मड़इया से पुंछत्या हय।।
या बिपत के धरी मां तुमहूं भजामैं आय गया।
तरबार फरगत के जघा पायल मजामै आय गया।
अबहिन एक किसान कै लहास उची ही दुवरा से,
तुम खेती क लाभ का धंधा बतामैं आय गया।।
समाज मा दहेज कै जबर दुकान होथी।
नींद नही आबै जब बिटिया सयान होथी।।
उंइ देस से कहिन तै कि भागबत सुनबाउब
हेन किसानन के घर मा गरुड़ पुरान होथी।
अगली कड़ी में आप श्री हेमराज हंस जी का एक घनाक्षरी छन्द देखे।
उंइ कहा थें देस से गरीबी हम भगाय देब,
गरीबी य देस कै लोगाई आय नेता जी।
गरीबी भगाय के, का खुदै तुम पेटागन मरिहा,
तोहई पालैं निता, बाप माई आय नेता जी।।
गरीबी के पेंड़ का मंहगाई से तु सींचे रहा ,
तोंहरे निता कल्प बिरिक्ष नाई आय नेता जी ।
भांसन के कबीर से अस्वासन के अबीर से ,
तोहरे बोलिआंय का भउजाई आय नेता जी।।
अब लगे हाथ श्री हंस जी के दोहो के भी तीखे तेवर देखे ?
राखी टठिया मा धरे बहिनी तके दुआर।
रक्षाबंधन के दिना उंइ पहुंचे ससुरार।।
बड़ी जबर साहुत हिबै जातिबाद के हेत।
तउ बिटिया के बाप का बिकगा सगला खेत।।
जेही सब मानत रहें जादा निकहा सूध।
ओखे डब्बा मा मिला सबसे पंच्छर दूध।।
जबसे कुरसी मा चढा आपन मूसर चंद।
अपने का मानैं लगा बड़ा बिबेकानंद ।।
भृष्टाचार का होइ रहा देस मा यतर निदान।
जइसा जींस क पहिर के काटै फसल किसान।।
उनकी एक ग़जल का जायका लेना भी उपयुक्त रहेगा?
बारजा बचा हय ओरिया कहां ही,
चंदा मामा दूध कै खोरिया कहां ही।
रासन कारड हलाबत तिजिया चली गै,
कोटा बाली चिनी कै बोरिया कहां ही।।
नोकरी लगबामै का कहि के लइ गया तै,
वा गरीब कै बड़मंसी टोरिया कहां ही ।
आजादी के अस्वमेघ कै भभूत परी ही ,
लिंकन के लोकतंत्र कै अंजोरिया कहां ही।।
वा परदूसन कै पनही पहिरे मुड़हर चलागा,
गांव के अदब कै ओसरिया कहां ही ।
घर के सुख संच कै जे जपत रहें माला ,
वा पिता जी कै लाल लाल झोरिया कहां ही।।
इस तरह श्री हेमराज त्रिपाठी ,हंस ,ने बघेली की अनेक बिधाओ में अपने हास्य ब्यङ्ग और तीखे तेवर की कविताए लिखी है।
✍️ बाबूलाल दाहिया
धन्न बिंध्य कै भूमि या धन्न श्री बाबूलाल।
गदगद माटी होइ रही गाँव गली चउपाल।।
बघेली केर बिश्वबिद्यालय रिमही केअक्कास ।
बोली माता सारदा बाह बेटा सब्बास। ।
धन्न पिथौराबाद का बनगा एक मिसाल।
बसकट कै सुभकामना लेब श्री बाबूलाल।।
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