बघेली गजल
उई शबरी के बेर का अमचुर बना के बेंचा थें।
सरासरीहन लबरी का फुर बना के बेंचा थें। ।
जे जीते के बाद हार गें जनता के विश्वास से
अइसा कायर का बहादुर बना के बेंचा थें। ।
हेमराज हंस 9575287490
बघेली साहित्य -का संग्रह हास्य व्यंग कविता गीत ग़ज़ल दोहा मुक्तक छंद कुंडलिया
श्री शिवशंकर सरस जी, बोली के चउमास। उनसे छरकाहिल रहैं, तुक्क बाज बदमास।। सादर ही सुभकामना, जनम दिना कै मोर। रिमही मा हें सरस जी , जस पा...
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