मुक्तक
मोटाई हरबी चढ़ा थी सत्ता के बसा मा।
उई दहाई तक आय गें यहै दशा मा। ।
जनता कबहू कहू कै सगही नही भै
छिन मा उतरा थी जे रहा नशा मा। ।
हेमराज हंस
बघेली साहित्य -का संग्रह हास्य व्यंग कविता गीत ग़ज़ल दोहा मुक्तक छंद कुंडलिया
जे मंदिर कै हमरे खंडित मरजाद कइ रहे हें। पबरित परसाद भंडासराध कइ रहे हें।। उनहीं पकड़ के सीधे सूली मा टांग द्या हमरे धर...
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