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शनिवार, 2 मई 2015

धन्न धन्न सौ बेर धन्न या देश कै पावन माटी। ।

शहीदन कै वंदना 

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धन्न धन्न सौ बेर धन्न य देस कै पावन माटी। 
हमरे पुरखन का प्रताप औ भारत कै परिपाटी। । 
कहय लाग भारत माता धन्न बहिनी डोर कलाई का। 
जे सीमा मा संगीन लये दइन जीवन देस भलाई का। । 
धन्न कोख महतारी कै जे पूत दान दइन मूठी मा। 
मातृभूमि के देस प्रेम का दूध पिआइन घूंटी मा। । 
धन्न धन्न वा छाती का जेहि एकव है संताप नही। 
बलिदान पूत भा देस निता धन्न धन्न वा बाप कही। । 

धन्न धन्न वा येगुर काहीं  वा सेंदुर कै मांग धन्न। 
ज्याखर भा अहिवात अमर वा नारी केर सोहाग धन्न। । 

उई भाईन कै बांह धन्न मारिन सुबाहु मरीची अस। 
बइरी वृत्तासुर मरै का जे बन गें वज्र दधीची अस। । 
औ अपने अपने रक्तन से वन्दे मातरम उरेह दइन.। 
जब भारत माता मागिस ता उई हँसत निछावर देह दइन। । 

बोली हर हर महादेव कै बोल ऊचें सरहद्दी मा। 
औ बैरिन का मार भगाइन खेलै खेल कबड्डी मा। । 
धन्न उई अमर जबानन का जेहिं कप्फन मिला तिरंगा का। 
जब राख फूल पहुंची प्रयाग ता झूम उचा मन गंगा का। । 
ताल भैरवी देश राग तब गूंजी घाटी घाटी। 
धन्न धन्न सौ बेर धन्न या देस कै पावन माटी। । 

गरजै लगे  सफ़ेद शेर औ बांधव गढ़ के हिरना। 
फूली नही समतीं बीहर औ केवटी के झिरना। । 
बीर सपूतन के उरांव मा डुबी गइया बछिया। 
बीर पदमधर के बलिदानव का खुब सुमिरै बिछिया। । 

बीर विंध्य कै सुनै कहानी नानी मुन्ना मुन्नी। 
गद्गद होइ गें चित्रकूट औ धार कुड़ी पयसुन्नी।।
अमरकंटक मा बिह्वल रेवा सुन के अमर कहानी। 
विंध पूत सीमा मा जाके बने अमर बलिदानी। । 
 
कलकल करत चली पछिम का दुश्मन कई दहाड़ी। 
सीना तानै'' नरो'' ''पनपथा'' औ" कैमोर' पहाड़ी। । 
तबहिंन हिन्द महा सागर मा बड़ बडबानाल धंधका। 
दुश्मन के भें ढ़ील सटन्ना हिन्दू कुश तक दंदका। ।  

गोपद बनास टठिया साजै औ सोन करै पूजा पाती। 
औ रेवा खुद धन्न होइ गई कइ के उनखर सँझबाती। । 
हे !उनखे तरबा का धूधुर हमरे लिलार का चन्दन बन। 
ओ कवि !तहू दे खून कुछू तबहिन होइ उनखर वंदन। । 
देस भक्ति जनसेवा बाली ही जिनखर परिपाटी। 
धन्न धन्न सौ बेर धन्न या देश कै पावन माटी। । 

हेमराज हंस 9575287490 

















 

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