शहीदन कै वंदना
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धन्न धन्न सौ बेर धन्न य देस कै पावन माटी।
हमरे पुरखन का प्रताप औ भारत कै परिपाटी। ।
कहय लाग भारत माता धन्न बहिनी डोर कलाई का।
जे सीमा मा संगीन लये दइन जीवन देस भलाई का। ।
धन्न कोख महतारी कै जे पूत दान दइन मूठी मा।
मातृभूमि के देस प्रेम का दूध पिआइन घूंटी मा। ।
धन्न धन्न वा छाती का जेहि एकव है संताप नही।
बलिदान पूत भा देस निता धन्न धन्न वा बाप कही। ।
धन्न धन्न वा येगुर काहीं वा सेंदुर कै मांग धन्न।
ज्याखर भा अहिवात अमर वा नारी केर सोहाग धन्न। ।
उई भाईन कै बांह धन्न मारिन सुबाहु मरीची अस।
बइरी वृत्तासुर मरै का जे बन गें वज्र दधीची अस। ।
औ अपने अपने रक्तन से वन्दे मातरम उरेह दइन.।
जब भारत माता मागिस ता उई हँसत निछावर देह दइन। ।
बोली हर हर महादेव कै बोल ऊचें सरहद्दी मा।
औ बैरिन का मार भगाइन खेलै खेल कबड्डी मा। ।
धन्न उई अमर जबानन का जेहिं कप्फन मिला तिरंगा का।
जब राख फूल पहुंची प्रयाग ता झूम उचा मन गंगा का। ।
ताल भैरवी देश राग तब गूंजी घाटी घाटी।
धन्न धन्न सौ बेर धन्न या देस कै पावन माटी। ।
गरजै लगे सफ़ेद शेर औ बांधव गढ़ के हिरना।
फूली नही समतीं बीहर औ केवटी के झिरना। ।
बीर सपूतन के उरांव मा डुबी गइया बछिया।
बीर पदमधर के बलिदानव का खुब सुमिरै बिछिया। ।
बीर विंध्य कै सुनै कहानी नानी मुन्ना मुन्नी।
गद्गद होइ गें चित्रकूट औ धार कुड़ी पयसुन्नी।।
अमरकंटक मा बिह्वल रेवा सुन के अमर कहानी।
विंध पूत सीमा मा जाके बने अमर बलिदानी। ।
कलकल करत चली पछिम का दुश्मन कई दहाड़ी।
सीना तानै'' नरो'' ''पनपथा'' औ" कैमोर' पहाड़ी। ।
तबहिंन हिन्द महा सागर मा बड़ बडबानाल धंधका।
दुश्मन के भें ढ़ील सटन्ना हिन्दू कुश तक दंदका। ।
गोपद बनास टठिया साजै औ सोन करै पूजा पाती।
औ रेवा खुद धन्न होइ गई कइ के उनखर सँझबाती। ।
हे !उनखे तरबा का धूधुर हमरे लिलार का चन्दन बन।
ओ कवि !तहू दे खून कुछू तबहिन होइ उनखर वंदन। ।
देस भक्ति जनसेवा बाली ही जिनखर परिपाटी।
धन्न धन्न सौ बेर धन्न या देश कै पावन माटी। ।
हेमराज हंस 9575287490
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