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शुक्रवार, 1 मई 2015

हम मजूर बनिहार बरेदी आह्यन लेबर लगुआ।



बघेली कविता 





मजूर   [बघेली कविता ]



हम मजूर बनिहार बरेदी आह्यन लेबर लगुआ।
करी मशक्क़त तनमन से हम गरमी जाड़े कदुआ। ।
माघ पूस कै ठाही हो चह नव तपा कै दुपहरिया। 
सामान भादौ के कादौ मा बे पनही बे छतरिया। ।
मिलब कहू हम पाथर फोरत करत कहू हरवाही।
खटत खेत खरिहान खान म काहू ताके पाही। ।
हम कहू का काम निकारी औ काहू के बंधुआ।

''कर्म प्रधान विश्व करी राखा ''कहि गें तुलसी दास। 
कर्म देव के हम विश्कर्मा देस मा पाई त्रास। । 
शोषक चुसि रहे हे हमही अमर बेल की नाइ। 
अउर चुहुकि के करै फराके गन्ना चीहुल घाई। । 
दुधिआ दातन मा बुढ़ाय गा हमरे गाँव का गगुआ। 
हम पसीना से देस का सीच्यन हमरै किस्मत सूखी। 
देस कोष मा भरयन लक्ष्मी घर कै लक्ष्मी भूखी। । 
घूंट घूँट अपमान पिअत हम गढ़ी प्रगति कै सीढ़ी। 
मन तक गहन है बेउहर के हेन रिन मा चढ़ गयीं पीढ़ी। । 
फूका परा है हमरे घर मा तउ हम गाई फगुआ। । 
हम मजूर ------------

हमिन बनायन लालकिला खजुराहो ताज महल। 
हमिन बनायन दमदम पालम सुघर जिहाज महल। । 
हमहिंन बाँध्यन नदिया नरबा तलबा अउर तलइया। 
हमिन बनायन धमनी चिमनी लखनऊ भूल भुलइया। । 
हम सिसकत सीत ओसरिया माहीं धइ के सोई तरुआ। 
कहै क त गंगा जल अस है पबरित हमार पसीना। 
तउ ''कर्मनाशा ''अस तन है पीरा पाले सीना।।
बड़े लगन से देश बनाई मेहनत करी आकूत। 
मेहनत आय गीता रामायन हम हन तउ अछूत। । 
छुआछूत का हइया दाबे देस समाज का टेटुआ। 
हम मजूर ---
बिन खाये के गंडाही का है छप्पन जेउनार। 
कनबहिरे भोपाल औ दिल्ली को अब सुनै गोहर। । 
जब जब माग्यन उचित मजूरी तब तब निथरा खून। 
पूंजी पति के पॉय तरी है देस का श्रम कानून। । 
न्याय मांगे मा काल्ह मारे गें दत्ता नियोगी रघुआ। 
हम मजूर ---------------------------------
 भले ठेस ठेठा कराह से हाँकी आपन अटाला। 
पै हम करब न घात देस मा भ्रष्टाचार घोटाला। । 
जे खून पसीना अउंट के माड़ै रोटी केर पिसान। 
हमी उराव है अइसन माई बाप कै हम संतान। । 
हमरे कुल मा पइदा नहि होंय डाकू गुंडा ठगुआ। 
हम मजूर बनिहार बरेदी आह्यन लेबर लगुआ। । 
 हेमराज हंस ----------9575287490  bagheli sahitya

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