यह ब्लॉग खोजें

रविवार, 12 अप्रैल 2015

हम फुर कही थे ता कान उनखर बहा थै।

मुक्तक 


हम फुर कही थे ता कान उनखर बहा थै। 
पता नही तन मा धौ कउन रोग रहा थै। । 
तन   से हें  '' बुद्ध ''  मन   से   बहेलिया 
पंछी अस पीरा या लोकतंत्र सहा थै। । 
             हेमराज हंस  9575287490

कोई टिप्पणी नहीं:

पबरित परसाद भंडासराध कइ रहे हें।।

 जे मंदिर कै हमरे खंडित मरजाद कइ रहे हें।  पबरित   परसाद    भंडासराध   कइ  रहे  हें।।  उनहीं   पकड़  के  सीधे  सूली  मा  टांग  द्या  हमरे  धर...