मुक्तक
चेतना के देह का उई झुन्न न करैं।
हाथ जरै ज्यमा अइसा पुन्न न करैं। ।
इन्द्र कै बस्यार ही घर के नगीच मा
''गौतम ''से जाके कहि द्या उच्छिन्न न करैं। ।
हेमराज हंस
बघेली साहित्य -का संग्रह हास्य व्यंग कविता गीत ग़ज़ल दोहा मुक्तक छंद कुंडलिया
जे मंदिर कै हमरे खंडित मरजाद कइ रहे हें। पबरित परसाद भंडासराध कइ रहे हें।। उनहीं पकड़ के सीधे सूली मा टांग द्या हमरे धर...
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