यह ब्लॉग खोजें

शनिवार, 18 अप्रैल 2015

मुंह माही महिपर धरे मन मा भरे कुनैन।

दोहा 

मुंह माही महिपर धरे मन मा भरे कुनैन। 
अहित करै जे आन का ओही सुक्ख न चैन। । 
         हेमराज हंस ---                              

कोई टिप्पणी नहीं:

पबरित परसाद भंडासराध कइ रहे हें।।

 जे मंदिर कै हमरे खंडित मरजाद कइ रहे हें।  पबरित   परसाद    भंडासराध   कइ  रहे  हें।।  उनहीं   पकड़  के  सीधे  सूली  मा  टांग  द्या  हमरे  धर...