बघेली
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पूछी अपना बपुरी से कि कइसा जी रही
जेही कोऊ गारी दइस होय बाँझ कै।
बीर पदमधर का या पीढ़ी नहीं जानै
उनही मुखागर हें किस्सा हीर रांझ कै। । ------------
हेमराज हंस
बघेली साहित्य -का संग्रह हास्य व्यंग कविता गीत ग़ज़ल दोहा मुक्तक छंद कुंडलिया
श्री शिवशंकर सरस जी, बोली के चउमास। उनसे छरकाहिल रहैं, तुक्क बाज बदमास।। सादर ही सुभकामना, जनम दिना कै मोर। रिमही मा हें सरस जी , जस पा...
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