बघेली
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पूछी अपना बपुरी से कि कइसा जी रही
जेही कोऊ गारी दइस होय बाँझ कै।
बीर पदमधर का या पीढ़ी नहीं जानै
उनही मुखागर हें किस्सा हीर रांझ कै। । ------------
हेमराज हंस
बघेली साहित्य -का संग्रह हास्य व्यंग कविता गीत ग़ज़ल दोहा मुक्तक छंद कुंडलिया
कीर्तिमान निश दिन बढ़े, गढ़ें नये सोपान। जन्म दिन की शुभकमना, आये नया बिहान।। आये नया बिहान शारदा के प्रिय लालन । मैहर का हो आपके ...
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