मुक्तक
जनता देख रही ही नाटक राजनीत के खादी मा ।
नही जना तै एकव आतर जुर्मी औ फरियादी मा।।
उनखर धरना अउर प्रदर्शन देख के अइसा लागा थै
जइसा भूखा कथा सुनै औ चित्त धरा परसादी मा। ।
हेमराज हंस
बघेली साहित्य -का संग्रह हास्य व्यंग कविता गीत ग़ज़ल दोहा मुक्तक छंद कुंडलिया
जे मंदिर कै हमरे खंडित मरजाद कइ रहे हें। पबरित परसाद भंडासराध कइ रहे हें।। उनहीं पकड़ के सीधे सूली मा टांग द्या हमरे धर...
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